Study Abroad : रुपये में गिरावट से भारतीय छात्रों की बढ़ी मुसीबतें, खर्च पूरा करने के लिए करना पड़ रहा है पार्ट टाइम जॉब
Study Abroad : विदेश में पढ़ने वाले छात्रों पर खर्च का दबाव 20 से 25 फीसदी तक बढ़ गया है। इन खर्चों को पूरा करने के लिए छात्र पार्ट टाइम जॉब का सहारा ले रहे हैं।
Study Abroad : डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमतों में जारी रिकॉर्ड गिरावट और पश्चिमी देशों में मुद्रास्फीति में लगातार बढ़ोतरी, विदेशों में पढ़ने वाले मध्यम और निम्न आय वर्ग के भारतीय परिवार के बच्चों के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं है। इससे न केवल पढ़ाई पर होने वाले खर्च का दबाव 20 से 25 फीसदी बढ़ गया है, बल्कि इन खर्चों को पूरा करने के लिए काफी संख्या में छात्रों को पार्ट टाइम जॉब करने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
खर्च में 20 से 25% की बढ़ोतरी
जिन छात्रों ने अगामी ट्यूशन फीस का भुगतान कर रखा है उन्हें इस बात की चिंता है कि अगले सेमेस्टर में उन्हें बढ़ी हुई फीस का भी भुगतान करना पड़ सकता है। रुपये में गिरावट के असर का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि पिछले साल की तुलना में इस साल पढ़ाई और रहने के खर्च के लिए कम से कम 20-25 फीसदी अधिक खर्च करना पड़ रहा है।
इलिनोइस में पढ़ने वाले एक छात्र के अभिभावकों का कहना है कि उन्होंने पहले ही वर्तमान सेमेस्टर के लिए फीस का भुगतान कर रखा है, लेकिन उन्हें महंगाई और रुपये में गिरावट की वजह से जनवरी में अतिरिक्त भुगतान करना होगा। ऐसा इसलिए कि जब आप विदेशी मुद्रा में भुगतान करते हैं तो तो आपको मुद्रा में उतार-चढ़ाव का ध्यान में रखना होता है।
एक अन्य अभिभावक ने बताया कि वो अमेरिका में अपने बेटे की मास्टर डिग्री की योजना बनाते समय पिछले साल किए गए खर्च से लगभग 20-25% अधिक खर्च कर रहे हैं। जुलाई में जब उन्होंने फीस का भुगतान किया तब रुपया 79 पर था, जो अब अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 83 है। उनका बेटा अभी इंटर्नशिप की तलाश में है लेकिन चिंता इस बात की है कि स्थिति ठीक होने से पहले और कितना खराब होगा।
छात्रों की संख्या में कमी के मिले संकेत
फारेन स्टडी एडवाइजर करण गुप्ता का कहना है कि अमेरिका अब अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए अधिक महंगा हो गया है। कई छात्र अपनी शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति और ऋण पर निर्भर हैं। छात्र कम ट्यूशन फीस वाले विश्वविद्यालयों में शिफ्ट करने की योजना बना रहे हैं। अल्पावधि में हम वहां प्रवेश पाने वाले छात्रों पर कोई प्रभाव नहीं देख रहे हैं, लेकिन अगर रुपए में गिरावट जारी रहा तो इसका सीधा असर नामांकन की दरों में गिरावट के रूप में देखने को मिल सकता है।
पहले से ही अपने खर्चों को पूरा करने के लिए पार्ट टाइम जॉब कर रहे छात्रों का कहना है कि अब आवास की लागत बढ़ गई है क्योंकि कई छात्रों ने महामारी के कारण दो साल के अंतराल के बाद आवेदन किया है। ट्यूशन फीस भी हर साल औसतन पांच प्रतिशत बढ़ जाती है। अमेरिकी मुद्रास्फीति की दर अब तक के उच्चतम स्तर पर है। बर्गर खाने या मूवी देखने जैसी साधारण चीजें भी अब कई छात्रों के लिए सस्ती नहीं रही।
पार्ट टाइम जॉब
एक अभिभावक ने बताया कि उनका बेटा हॉस्टल में रहता है। पिछले साल किराये की लागत डॉलर 750 प्रति माह थी जो अब डॉलर 1,000 हो गई है। साथ ही छात्रों को अब अतिरिक्त किराये का भुगतान करना होगा। गनीमत यह है कि मेरा बेटा पार्ट टाइम जॉब कर विश्वविद्यालय का खर्च उठा रहा है लेकिन मुझे पता है कि काफी संख्या में छात्र परेशानी का सामना कर रहे हैं।