Haryana : बॉन्ड पॉलिसी के खिलाफ सड़कों पर उतरे आरएमसी के MBBS छात्र, आईएमए ने रद्द करने की मांग की
MBBS Students Protest Rohtak : आईएमए ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से अपील की है कि सरकार और छात्रों दोनों के हित में बांड सिस्टम को खत्म करे।
MBBS Students Protest Rohtak : मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए हरियाणा सरकार की एक बॉन्ड पॉलिसी के खिलाफ एमबीबीएस की छात्र सड़कों पर उतर आये हैं। पीजीआई रोहतक के एमबीबीएस सरकार की इस नीति का खुला विरोध किया। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने भी भाजपा सरकार की पॉलिसी से असहमति जताते हुए इसे रद्द करने या उसमें संशोधन करने की मांग की है। साथ ही छात्रों के प्रदर्शन का समर्थन किया है।
आईएमए ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से अपील की है कि सरकार और छात्रों दोनों के हितों का ध्यान रखते हुए बांड सिस्टम को खत्म या संशोधित किया जाना चाहिए। पूरा देश इस बात से हैरानी में है कि इस तरह के कदमों का विरोध करने के लिए लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए छात्र पुलिस की बर्बर कार्रवाई का शिकार हुए। महिला डॉक्टरों के साथ हाथापाई की गई। राज्य पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया और ठंडी रात में उनपर पानी की बौछारें की गई। यह घटना न केवल राज्य में और विशेष रूप से देश में डॉक्टरों के मनोबल को नीचे लाएगी। यह डॉक्टरों और सरकार के बीच की खाई को भी चौड़ा करेगी।
गुरुवार को भी रोहतक के पंडित भगवत दयाल शर्मा पोस्ट ग्रेजुएट यूनिवर्सिटी (PGIMS) रोहतक के छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया। कॉलेज के दीक्षांत समारोह में सीएम खट्टर के दौरे को देखते हुए रोहतक पुलिस ने छात्रों को बलपूर्वक हिरासत में ले लिया। दिल्ली के विभिन्न सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों ने भी हरियाणा के रोहतक में MBBS छात्रों के आंदोलन का समर्थन किया है।
MBBS Students Protest Rohtak : बॉन्ड पॉलिसी क्या है
हरियाणा सरकार की नई बॉन्ड पॉलिसी के अनुसार मेडिकल कोर्स में दाखिले के दौरान छात्र को लगभग 10 लाख रुपए प्रति वर्ष यानि 4 वर्ष के लिए 40 लाख के बॉन्ड पर हस्ताक्षर करना होगा। इसके तहत हर छात्र को अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद सरकारी अस्पतालों में ही कम से कम 7 साल सेवाएं देनी होंगी। ऐसा न करने पर छात्र को बॉन्ड के मुताबिक 40 लाख रुपए सरकार को देने होंगे।
छात्र बाहर चले जाएंगे तो सरकारी अस्पतालों का क्या होगा
इस बारे में हरियाणा सरकार का कहना है कि सरकारी अस्पतालों में अभी भी लगभग 28 हजार डॉक्टरों की जरूरत है। ऐसे में अगर कॉलेजों से पढ़कर स्टूडेंट्स बाहर चले जाएंगे और प्राइवेट कॉलेजों में प्रैक्टिस करने लगेंगे तो सरकारी अस्पतालों का भार कम नहीं होगा। सभी मेडिकल स्टूडेंट्स से कम से कम 7 साल के लिए सरकारी अस्पतालों में काम करने का बॉन्ड भरवाया जा रहा है।