अब PGI चंडीगढ़ में गड़बड़ी, BJP शासित राज्यों में नौकरियों में आरक्षण से वंचित करने को लेकर उठ रही उंगलियां

अभ्यर्थियों का कहना है कि 69 हजार सहायक शिक्षक भर्ती के मामले में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को भेजी थी। इस अंतरिम रिपोर्ट में कहा गया है कि 5844 सीटों का आरक्षण में अनिमित्ताएं हुई हैं....

Update: 2021-07-21 08:17 GMT

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

जनज्वार। बेसिक विद्यालय हो या उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की भर्ती में मनमानी का खेल जारी है। इन भर्तियों में आरक्षण में खेल करने का आरोप लगाते हुए सरकारी एजेंसीयां संस्थान व सरकार को कटघरे में खड़ा कर रही हैं। भाजपा शासित राज्यों में मिल रही इन शिकायतों को लेकर सरकार जहां चुप्पी साधे हुए हैं वहीं अभ्यर्थी इसको लेकर सड़कों पर हैं। ताजा मामला है, पी.जी.आई.चंडीगढ़ का। यहां अस्सिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्तियों में अनुसूचित जाति को आरक्षण न देने को लेकर संबंधित अभ्यर्थी आंदोलन की राह पर है। इसको लेकर राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग दिल्ली ने पी.जी.आई.चंडीगढ़ के निदेशक से जवाब मांगा है।

आयोग का मानना है कि आरक्षण की अनदेखी की शिकायत पर आयोग ने जब परिणाम निकालने पर रोक लगा दिया। इसके बावजूद कैसे परिणाम जारी कर दिया गया। इस संबंध में पीजीआई के निदेशक से आयोग ने जवाब तलब किया है। रेडियोलॉजी एवं ओंकोलाजी विभाग पी जी आई चंडीगढ़ के प्रोफेसर नरेंद्र कुमार ने पहले यह शिकायत की थी कि सेंट्रल एजुकेशनल इंस्टिट्यूशंस एक्ट 2019 के तहत जब आरक्षण का पालन विलासपुर और भटिंडा पी जी आई ने किया तो पी जी आई चंडीगढ़ ने क्यों नहीं किया?

गौरतलब हो कि गड़बड़ी का मामला भाजपा शासित राज्य का है। जिस पर केंद्र सरकार की ही एजेंसी ने सवाल उठाया है। उधर उत्तर प्रदेश में भर्ती में नियमों की अनदेखी व वर्ग विशेष को लाभ पहुंचाने की शिकायतें लगातार मिलती रही है। 69 हजार सहायक शिक्षक भर्ती के मामले में ओबीसी को मानक के अनुसार सीटें न दिए जाने का प्रकरण लंबे समय से चल रहा है। हालांकि पिछड़ा वर्ग आयोग की आपत्ति के बाद भी भर्ती की प्रक्रिया जारी है तथा शासन किसी भी तरह का भेद भाव न करने की दलील देकर लगातार आरोपों से पल्ला झाड़ते रहा है।

उधर अभ्यर्थियों का कहना है कि 69 हजार सहायक शिक्षक भर्ती के मामले में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को भेजी थी। इस अंतरिम रिपोर्ट में कहा गया है कि 5844 सीटों का आरक्षण में अनिमित्ताएं हुई हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि ओबीसी वर्ग को 21% आरक्षण नही मिला और उन्हें अपने कोटे की 18598 सीट में से केवल 2637 सीट ही दी गई हैं।

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. लोकेश कुमार प्रजापति की अंतरिम रिपोर्ट के अनुसार राज्य सरकार की ओर से प्रस्तुत जिलावार सूची का उद्धरण यह दर्शाता है कि अनारक्षित उम्मीदवारों को आरक्षित उम्मीदवारों के बजाय नियुक्तियां दी गई हैं। चयन प्रक्रिया में आरक्षण नीति का घोर उल्लंघन हुआ है।

आयोग के समक्ष राज्य का उत्तर विरोधाभासों से भरा है और यह संदेश व अनुमानों पर आधारित है। वर्तमान चयन प्रक्रिया में आरक्षण नियमों को कैसे और किस तरह से लागू किया गया है, यह दिखाने में राज्य विफल रहा है। अंतिम चयन सूची में चयनित उम्मीदवारों की श्रेणी का उल्लेख नहीं किया गया। हालांकि जब सूचियों को जिलेवार प्रकाशित किया गया था तब चयनित उम्मीदवारों की श्रेणी का उल्लेख किया गया था।

सभी जिलों में प्रकाशित सूचियों के आधार पर और उम्मीदवार की श्रेणी के आधार पर चयन प्रक्रिया में व्यापक अनियमितता दिखती है। ओबीसी श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित 18598 सीटों में से 5844 सीटें ऐसी हैं जो ओबीसी श्रेणी के उम्मीदवारों की बजाय अनारक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को दी गई और इस प्रकार ओबीसी उम्मीदवारों के अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।

इसको लेकर डिप्टी सीएम के घर के बाहर भी अभ्यर्थियों ने प्रदर्शन किया था। अभ्यर्थियों की मांग है कि इस भर्ती में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट को लागू किया जाए। साथ ही जिन अभ्यर्थियों ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग में शिकायत दर्ज कराई है, उन सभी को इस भर्ती में शामिल किया जाए, साथ ही उन अभ्यर्थियों को भी शामिल किया जाए, जो इस मामले में हाई कोर्ट पहुंचे हैं। बेसिक शिक्षा मंत्री के आवास के बाहर भी प्रदर्शन कर अभ्यर्थी अपना आक्रोश जता चुके हैं।

दिल्ली सरकार के मंत्री राजेन्द्र पाल गौतम के इस बयान से भी अंदाजा लगा सकते हैं कि सब कुछ सामान्य नहीं है। उन्होंने एक बयान में कहा है कि अनुसूचित जाति/जनजाति व अन्य पिछड़ा वर्ग के अभ्यर्थियों की जाति की जानकारी साक्षात्कार लेने वालों को पहले से होती है तथा साक्षात्कार में अंक देने में भेदभाव की खबरें अक्सर आती रहती हैं। अभ्यर्थी की जाति का पता साक्षात्कार लेने वाले को पहले से न हो। इसका प्रयास होना चाहिए।

बांदा कृषि विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर के चयन में 15 पदों में से 11 पदों पर एक ही जाति के लोगों रखने का मामला दो माह पूर्व सुर्खियों में रहा। इसको लेकर भाजपा नेता बृजेश कुमार प्रजापति ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर आरक्षण की अनदेखी की शिकायत की थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि संबंधित मंत्री ने अपनी ही जाति के लोगों को नौकरी से नाम पर लाभ पहुंचाया है तथा योग्य वह प्रतिभावान अभ्यर्थियों की अनदेखी की गई है। यह कार्य उस समय किया गया है जब राज्य में विधानसभा चुनाव करीब है। इसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ सकता है।

इसके पूर्व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर में भी ऐसे मामले सामने आए थे। गोरखपुर विश्वविद्यालय में शिक्षकों की भर्ती में आरक्षण व योग्यता की अनदेखी का सवाल खुद विश्वविद्यालय कार्य परिषद के सदस्यों ने उठाई थी। इसके बाद भी शिकायतों को लेकर न तो राजभवन संज्ञान लिया और न ही सरकार ने।

सामाजिक न्याय की बात करने वाली बीजेपी शासित राज्यों में आरक्षण में हकमारी उनके लिए महंगी पड सकती है। उत्तर प्रदेश में छह माह बाद चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में आरक्षण का सवाल गरमाने से दलित पिछड़े की नाराजगी बढ़ सकती है। जिसका खामियाजा भाजपा को उठानी पड़ सकती है।

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