जनमुद्दों पर जेल में बंद बुद्धिजीवियों पर चुप्पी, मगर संभ्रांत तबके के बुद्धिजीवी मेहता के इस्तीफे पर इतनी हाय-तौबा!
आम लोगों के मुद्दों पर संघर्ष कर रहे बुद्धिजीवियों को झूठे साक्ष्यों और फर्जी आरोपों के सहारे जेल में बंद कर रखा है, उनके साथ हो रहे दमन के खिलाफ कहीं कोई बेचैनी दिखाई नहीं दे रही है, लेकिन मेहता के इस्तीफे पर शोर मच गया है....
दिनकर कुमार की टिप्पणी
जनज्वार। अशोका यूनिवर्सिटी से दो मशहूर प्रोफेसर के इस्तीफे का मामला काफी सुर्खियों में है। यूनिवर्सिटी से इस्तीफा देने वालों में प्रो. प्रताप भानु मेहता और पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मणयन शामिल हैं। दरअसल प्रताप भानु मेहता के इस्तीफे के दो दिन बाद ही उनके समर्थन में देश के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार और यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अरविंद सुब्रह्मणयन ने भी इस्तीफा दे दिया।
इस पूरे मामले को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जोड़ा जा रहा है। जिस तरह से मेहता के इस्तीफ़े को लेकर हाय-तौबा मचाई जा रही है उससे यह संदेश देने का प्रयास किया जा रहा है कि मेहता देश की आम जनता के दुख-दर्द का प्रतिनिधित्व करने वाले कोई प्रतिबद्ध बुद्धिजीवी हैं, जबकि जमीनी हकीकत इसके विपरीत है।
मेहता देश के संभ्रांत वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले बुद्धिजीवी हैं। उनको 'प्रगतिशील दक्षिणपंथी' माना जाता रहा है। हाल के कुछ वर्षों तक मोदी के समर्थक रहे मेहता ने जब मोदी सरकार की आलोचना करते हुए लेख लिखना शुरू किया तो चिरपरिचित अंदाज में मोदी ने उनकी नौकरी छीन ली। यह कोई नई बात नहीं है।
मोदी सरकार ने सैकड़ों पत्रकारों और आम लोगों के हितों के लिए लड़ रहे बुद्धिजीवियों को अर्बन नक्सल बताकर देशद्रोह के मामलों में फंसा रखा है। भीमा कोरेगांव मामले में जिस तरह मोदी सरकार ने दर्जनों आम लोगों के मुद्दों पर संघर्ष कर रहे बुद्धिजीवियों को झूठे साक्ष्यों और फर्जी आरोपों के सहारे जेल में बंद कर रखा है, उनके साथ हो रहे दमन के खिलाफ कहीं कोई बेचैनी दिखाई नहीं दे रही है। लेकिन मेहता के इस्तीफे पर शोर मच गया है।
इससे साफ है कि इस देश में आम लोगों के बुद्धिजीवियों और संभ्रांत वर्ग के बुद्धिजीवियों में जमीन आसमान का अंतर है। मेहता शुरू से निजीकरण का समर्थन करते रहे हैं। वह जिस अशोका यूनिवर्सिटी में काम करते रहे हैं वह अमीर वर्ग के छात्रों के लिए खोला गया ऐसा संस्थान है जिसमें सालाना शुल्क कई लाख रुपए हैं। इस देश के अधिकतर लोग दस हजार रुपए से भी कम उपार्जन करते हैं और वे अपनी संतान को ऐसे संस्थान में भेजने की कल्पना भी नहीं कर सकते।
अमीरों के विशिष्ट बुद्धिजीवी होने के नाते मेहता को विशिष्ट समर्थन भी मिल रहा है। प्रोफेसर्स के इस्तीफे के बाद संस्थान के स्टूडेंट्स यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन के विरोध में उतर गए हैं। यूनिवर्सिटी की बाकी फैकल्टी भी प्रो. मेहता के समर्थन में आ गई है। कांग्रेस ने भी इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए इसे राजनीति से जोड़ दिया है।
आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी इस मामले में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। ऑक्सफोर्ड, येल, कोलंबिया, हार्वर्ड, प्रिंसटन और कैंब्रिज आदि यूनिवर्सिटीज से जुड़े 150 से अधिक शिक्षाविदों ने अशोका यूनिवर्सिटी से इस्तीफा देने वाले प्रोफेसर प्रताप भानु मेहता का का समर्थन किया है। इनका कहना है कि यूनिवर्सिटी के संस्थापकों ने यह साफ कर दिया था कि मेहता का यूनिवर्सिटी के साथ जुड़ा रहना एक 'राजनीतिक जवाबदेही' थी।
इन शिक्षाविदों ने यूनिवर्सिटी के ट्रस्टीज, प्रशासकों और अध्यापकों को खुला पत्र लिखकर मेहता के प्रति अपना समर्थन जाहिर किया है।
प्रताप भानु मेहता ने मंगलवार 16 मार्च को अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के पद से इस्तीफा दे दिया था। वो मई, 2017 में कुलपति के तौर पर यूनिवर्सिटी के साथ जुड़े थे। हालांकि दो साल बाद जुलाई, 2019 में उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया और तभी से यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के तौर पर पढ़ा रहे थे।
प्रोफेसर मेहता के समर्थन में जारी पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले शिक्षाविदों ने कहा कि वो यह जानकर हैरान हैं कि राजनीतिक दबाव के चलते मेहता को यूनिवर्सिटी से इस्तीफा देना पड़ा। पत्र में आगे लिखा गया है कि मौजूदा भारतीय सरकार के मुखर आलोचक और अकादमिक स्वतंत्रता के प्रहरी मेहता अपने लेखों के कारण निशाने पर आ गए। ऐसा लग रहा है कि यूनिवर्सिटी के ट्रस्टी ने उनका बचाव करने की जगह उन्हें इस्तीफा देने पर मजबूर किया।
पत्र में लिखा गया है कि मेहता ने स्वतंत्र विचार, सहिष्णुता और सम्मान नागरिकता की लोकतांत्रिक भावनाओं की बात कही है। जब किसी विद्वान को सार्वजनिक तौर पर कही गई उसकी बातों के लिए दंडित किया जाता है तो इन मूल्यों पर भी हमला होता है। जब ये बातें संवैधानिक मूल्यों के बचाव में कही होती हैं तो इस तरह का हमला और भी शर्मनाक हो जाता है।
मेहता एक स्तंभकार भी हैं। वह अपने रेगुलर कॉलम में सरकार की नीतियों पर समय-समय पर सवाल उठाते रहते हैं। प्रो. मेहता ने कई मुद्दों पर खुलकर मोदी सरकार की आलोचना भी की है। बताया जा रहा है कि सरकार की नीतियों की आलोचना की वजह से ही उन्होंने इस्तीफा दिया है। मेहता ने लिखा, फाउंडर्स से मिलने के बाद ऐसा लगता है कि मेरा यूनिवर्सिटी से जुड़े रहना पॉलिटिकल लायबिलिटी समझा जा सकता है। ऐसे में आजादी और समान अधिकारों वाले संवैधानिक मुद्दों के पक्ष में लिखना विश्वविद्यालय के लिए खतरा हो सकता है।
अशोका यूनिवर्सिटी हरियाणा के सोनीपत में स्थित है। यह एक प्राइवेट लिबरल आर्ट्स यूनिवर्सिटी है। यूनिवर्सिटी खुद को 'दुनिया में सबसे अच्छी उदार शिक्षा' उपलब्ध कराने में अग्रणी बताती है।
मेहता के इस्तीफे के बाद पूर्व आईपीएस वीएन रॉय टिप्पणी करते हैं, अशोका यूनिवर्सिटी के प्रताप भानु मेहता के इस्तीफे पर प्राइम टाइम में रवीश कुमार का रोना और अपूर्वानन्द की सिसकी समझ से बाहर है। बेशक, मेहता को मोदी विरोध की सजा मिली है, लेकिन छात्रों से 15 लाख वार्षिक फीस वसूलने वाले इस संस्थान के कुलपति रहे मेहता किस वर्ग के लिए अपनी अभिव्यक्ति की आजादी का इस्तेमाल करते रहे होंगे?'