Right To Information : सूचना के अधिकार को लेकर गूगल में सबसे ज्यादा क्या पूछे जाते हैं सवाल

RTI अधिनियम को सरकारी कामों में भ्रष्टाचार के राकथाम और कार्यों में पारदर्शिता लाने के लिए 2005 में बनाया गया था जिसे सूचना का अधिकार नाम दिया गया... आरटीआई के अंतर्गत भारत का कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी डिपार्टमेंट से जानकारी लेने का हक रखता है...

Update: 2021-10-14 07:28 GMT

(साल 2005 में लागू किया गया था आरटीआई अधिनियम)

जनज्वार: भारत का संविधान (Indian Constitution) अपने नागरिकों को कई तरह के अधिकार देता है, उन्हीं अधिकारों में से एक है 'सूचना का अधिकार' (RTI) है। 15 जून 2005 को इस एक्ट को अधिनियमित किया गया और 12 अक्टूबर 2005 को सम्पूर्ण धाराओं के साथ लागू कर दिया गया। इसलिए 12 अक्टूबर को इसे 'सूचना का अधिकार दिवस' के रूप में भी मनाया जाता है। सूचना के अधिकार के जरिए देश या राज्य की सरकार अपने नागरिकों के सामने अपने कार्य और शासन प्रणाली को सार्वजनिक रुप से पेश करते हैं।

RTI अधिनियम को सरकारी कामों में भ्रष्टाचार (Corruption) की राकथाम और कार्यों में पारदर्शिता लाने के लिए 2005 में बनाया गया था जिसे सूचना का अधिकार नाम दिया गया। आरटीआई (RTI) के अंतर्गत भारत का कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी विभाग से जानकारी लेने का हक रखता है। सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत आप किसी भी सरकारी विभाग से विकास कार्यों में आने वाले फंड, खर्च आदि के बारे में पता कर सकते हैं। इसके लिए कुछ जरूरी बातें हैं जो ध्यान में रखनी होंगी जैसे आरटीआई के तहत कोई भी सूचना पाने के लिए आवेदन कैसे करना है, कहां करना है और किस तरह की जानकारियां आपको मिल सकती हैं, वगैरह। तो जानिए महत्वपूर्ण बातें जिससे आप भी सूचना के अधिकार का लाभ उठा सकते हैं।

आरटीआई के बारे में कुछ जरूरी बातें- 

• अगर आप भारत के नागरिक हैं तो आप आरटीआई के अंतर्गत आवेदन करके किसी भी सरकारी दफ्तर से महत्वपूर्ण जानकारी 30 दिनों के भीतर प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि यह जानकारी प्राप्त करना आम आदमी का अधिकार है।

• आप किसी भी पब्लिक/सरकारी अथॉरिटी से जानकारी हासिल कर सकते हैं। इस एक्ट के तहत सभी केंद्रीय, राज्य और स्थानीय संस्थाएं आते हैं जिनकी स्थापना संविधान के अंतर्गत हुई है।

• प्रत्येक सरकारी विभाग में एक या एक से अधिक जनसूचना अधिकारी रहते हैं, जो सूचना के अधिकार के तहत नागरिकों से आवेदन स्वीकार करते हैं। मांगी गई सूचनाएं इकट्ठा करते हैं और उसे आवेदनकर्ता को उपलब्ध कराते हैं।

• आवेदक को आवेदन के साथ एक निर्धारित शुल्क भी जमा करना होता है। किसी भी व्यक्ति के लिए यह रकम 10 रूपए की होती है और बीपीएल कार्ड धारकों के लिए यह शुल्क माफ है। हालांकि, अलग अलग राज्यों में यह शुल्क 8 से 100 रूपए तक का होता है। दस्तावेजों की प्रति लेने के लिए भी फीस देनी होती है। केन्द्र सरकार ने यह फीस 2 रुपए प्रति पृष्ठ रखी है।

• आरटीआई के अंतर्गत आवेदन करने के बाद 30 दिन के अंदर परिणाम मिल जाता है। बहुत महत्वपूर्ण मामलों में परिणाम 48 घंटे के भीतर भी उपलब्ध कराया जाता है।

• लेकिन, कुछ कारणों के कारण आरटीआई आवेदन कैंसिल भी किया जा सकता है। आवेदन में किसी तरह की गलती, स्पष्ट तरीके से नहीं भरने पर या फिर डिटेल अधूरी हो या आवेदन की राशि गलत भर दी गई है तो आवेदक का आवेदन रिजेक्ट कर दिया जाता है।

• आप अपना आवेदन किसी भी सरकारी विभाग के जन सूचना अधिकारी को दे सकते हैं। आवेदन कैसे करना है, उसका फॉर्मेट क्या होगा है, ये सभी चीजें इंटरनेट पर आसासनी से उपलब्ध हो जाती है। अगर फिर भी कोई एप्लीकेशन लिखने में सक्षम नहीं हैं तो इसके लिए जन सूचना अधिकारी से सहायता प्राप्त कर सकते हैं।

• एप्लीकेशन को लिखने के लिए किसी भी स्थानीय भाषा का उपयोग किया जा सकता है। आरटीआई आवेदन जन सूचना अधिकारी को देने से पहले उसकी एक ज़िरोक्स कॉपी जन सूचना अधिकारी से साइन जरूर कराकर अपने पास जरूर रख लें। इससे आपके पास पक्का सबूत हो जाएगा कि आपने आवेदन जमा किया है।

RTI में जन सूचना अधिकारी की भूमिका

• सभी सरकारी विभाग में जनसूचना अधिकारी होते हैं, जिनका काम आम व्यक्तियों द्वारा प्राप्त आरटीआई आवेदनों को स्वीकर करके उन्हें 30 दिनों के अंदर जानकारी उपलब्ध कराना है। यदि कोई जन सूचना अधिकारी आपका आवेदन लेने से इंकार करता है या किसी भी तरह से परेशान करता है, तो उसकी शिकायत सीधे सूचना आयोग से की जा सकती है।

• सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचनाओं को अस्वीकार करने, भ्रम में डालने वाली, आधी या गलत सूचना देने या सूचना के बदले अधिक फीस मांगने के खिलाफ केन्द्रीय या राज्य सूचना आयोग के पास शिकायत करने का प्रावधान है।

• कई बार देखा जाता है कि जनसूचना अधिकारी कुछ मामलों में धारा 8 का हवाला देकर सूचना देने से मना कर देता है। दरअसल, जिन मामलों से सम्बंधित सूचना नहीं दी जा सकती उसका विवरण सूचना के अधिकार कानून की धारा 8 में दिया गया है। लेकिन यदि मांगी गई सूचना जनहित में हो तो धारा 8 के तहत मना की गई सूचना भी लोगों को उपलब्ध कराई जा सकती है।

• कई बार लोक सूचना अधिकारी निर्धारित समय-सीमा के भीतर सूचना नहीं देते है या धारा 8 का गलत इस्तेमाल करते हुए सूचना देने से मना करता है, तो ऐसे मामलों में सम्बंधित जनसूचना अधिकारी के वरिष्ठ अधिकारी के समक्ष प्रथम अपील की जा सकती है।

• यदि कोई लोक सूचना अधिकारी यह कहता है कि मांगी गई सूचना उसके विभाग से सम्बंधित नहीं है तो यह उसका कर्तव्य है कि उस आवेदन को पांच दिन के अन्दर सम्बंधित विभाग को भेज दे। साथ ही उसके आवेदक को भी सूचित करे। लेकिन ऐसी स्थिति में सूचना मिलने की समय सीमा 30 की बढ़कर 35 दिन होगी।

सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम का उद्देश्य

सूचना का अधिकार समाज सभी वर्गों को सार्वजनिक नीतियों और कार्यों के बारे में जानकारी मांगने और प्राप्त करने के लिए सक्षम और सशक्त बनाता है। यह अधिनियम सरकार द्वारा किए जा रहे सभी कामों को आम जनता के समक्ष जांच के दायरे में लाता है। इससे सरकार और सरकारी विभाग आम जनता के प्रति जवाबदेह बनते हैं और उनके कार्यों में पारदर्शिता आती है। RTI अधिनियम एक तरह से लोकतंत्र की प्रक्रिया में नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित करता है। यह सार्वजनिक प्राधिकरण द्वारा गैर जरूरी गोपनीयता को हटाकर निर्णयन में सुधार करता है।

सूचना मिलने की तय सीमा

सूचना के अधिकार (Right To Information) की खासियत बात यह है कि आवेदन देने के बाद एक तय समय के भीतर ही सूचना ली जा सकती है। पीआईओ यानि जन सूचना अधिकारी को आवेदन देने के 30 दिनों के भीतर सूचना मिल जानी चाहिए। यदि आवेदन सहायक पीआईओ को दिया जाता है तो सूचना 35 दिनों के भीतर मिलती है।

जनसूचना आधिकारी को सूचना देने में यदि किसी कारण देर की जाती है या सूचना की प्राप्ति से सूचना लेने वाला व्यक्ति जानकारी से संतुष्ट नहीं है तो अधिनियम के अनुच्छेद 19 (1) के तहत एक अपील दायर की जा सकती है। सूचना प्राप्ति के 30 दिनों के भातर और आरटीआई (RTI) के आवेदन दाखिल करने के 60 दिनों के भीतर वरिष्ठ जन सूचनाअधिकारी के समक्ष प्रथम अपील दायर की जा सकती है और यदि सूचना लेने वाला व्यक्ति सूचना से संतुष्ट नहीं है तो उस राज्य के स्टेट इन्फर्मेशन कमिशन से या केंद्रीय प्राधिकरण के लिए सेंट्रल इन्फर्मेशन कमिशन के पास द्वितीय अपील भी कर सकता है।

कैसे बना आरटीआई अधिनियम

भारत को स्वतंत्रता (Indias Independence) मिलने बाद 26 जनवरी 1950 को संविधान बना। लेकिन उस वक्त संविधान में सूचना के अधिकार का कोई वर्णन नहीं था और न ही अंग्रेज़ो द्वारा बनाया गया शासकीय गोपनीयता अधिनियम 1923 में संशोधन किया। सत्ता में बैठी सरकारे गोपनीयता अधिनियम 1923 की धारा 5 और 6 के प्रावधानों का लाभ उठकार जनता से जरूरी सूचनाओं को छुपाती रही। लेकिन वर्ष 1975 के शुरूआत में 'उत्तर प्रदेश सरकार बनाम राज नारायण' केस से सूचना के अधिकार की शुरुआत हुई। इस मामले की सुनवाई में उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में लोक प्राधिकारियों द्वारा सार्वजनिक कार्यो का ब्यौरा जनता को प्रदान करने का व्यवस्था पहली बार शुरू की। इस निर्णय ने भारतीय नागरिकों को संविधान के अनुच्छेद 19(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दायरा बढ़ाकर सूचना के अधिकार को शामिल किया।

फिर 1989 में कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद बीपी सिंह की सरकार सत्ता में आई और सूचना का अधिकार का कानून बनाने का वायदा किया। लेकिन बीपी सिंह की सरकार द्वारा तमाम कोशिशों के बावजूद भी इस कानून को लागू नहीं किया जा सका। राजस्थान में सूचना के अधिकार के लिए 1990 के दशक में जन आंदोलन की शुरूआत हुई।

साल 1997 में केन्द्र सरकार ने एच.डी शौरी की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित करके सूचना की स्वतंत्रता का प्रारूप प्रस्तुत किया, किन्तु शौरी कमेटी के इस प्रारूप को संयुक्त मोर्चे की दो सरकारों ने दबाए रखा।

वर्ष 2002 में संसद ने 'सूचना की स्वतंत्रता विधेयक' पारित किया। 2003 में बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली, लेकिन तब इसे लागू नहीं किया जा सका। वर्ष 2005 में की यूपीए की सरकार (UPA Govt) ने 12 मई को सूचना का अधिकार अधिनियम संसद में पारित किया। इस बिल को 15 जून, 2005 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली और 12 अक्टूबर 2005 को यह कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू किया गया।

आपको बता दें कि इस कानून के राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने से पहले नौ राज्यों ने पहले से सूचना अधिकार कानून को लागू कर रखा था, जिनमें तमिलनाडु और गोवा ने 1997, कर्नाटक ने 2000, दिल्ली 2001, असम, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र ने 2002, और जम्मू-कश्मीर ने 2004 से ये कानून लागू था।

RTI अधिनियम में संशोधन

साल 2019 में सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 को पारित किया गया। लोकसभा (Loksabha) में पारित इस विधेयक में सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act 2005) को संशोधित करने का प्रस्ताव किया गया है।

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अनुसार मुख्य सूचना आयुक्त (Chief Information Commissioner) और सूचना आयुक्तों का कार्यकाल 5 साल का होता है, लेकिन 2019 में पारित संशोधन के तहत इसे परिवर्तित करने का प्रावधान किया गया है। प्रस्तावित संशोधन के अनुसार, मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का कार्यकाल केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जाएगा। साथ ही, नए विधेयक के तहत केंद्र और राज्य स्तर पर मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते तथा अन्य रोजगार की शर्तें भी केंद्र सरकार द्वारा ही तय की जाएंगी।

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