रामनगर के वन गांव पटरानी में खुला बालिका शिक्षा के लिए सावित्रीबाई फुले स्कूल, रचनात्मक शिक्षक मण्डल की पहल पर हुई शुरुआत
भारतीय समाज की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले की 191वीं जयंती की पूर्व संध्या पर वन गांव पटरानी में आरम्भ इस स्कूल का नाम "सावित्रीबाई फुले सांयकालीन स्कूल" रखा गया...
Ramnagar news : खनन कार्य में जुटे मजदूरों के बच्चों को शैक्षिक रूप से लैस किए जाने के लिए कोसी नदी के रोखड़ में संचालित किए जा रहे सांयकालीन स्कूलों की अगली श्रंखला में रचनात्मक शिक्षक मण्डल की पहल पर वन गांव पटरानी में भी बालिकाओं के लिए एक सांयकालीन स्कूल की शुरुआत की गई। भारतीय समाज की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले की 191वीं जयंती की पूर्व संध्या पर गांव में आरम्भ इस स्कूल का नाम "सावित्रीबाई फुले सांयकालीन स्कूल" रखा गया।
रचनात्मक शिक्षक मण्डल उत्तराखण्ड की पहल पर बालिका शिक्षा को प्रेरित करने के लिए खुले इस स्कूल की शुरुआत सांस्कृतिक टीम उज्यावक दगडी द्वारा हीरा सिंह राणा के गीत "लस्का कमर बांधा" से हुई, जिसके बाद टीम के सदस्य प्राची बंगारी, हिमानी बंगारी, आकांक्षा सुंदरियाल, खुशी बिष्ट द्वारा वीरेन डंगवाल, बाबा नागार्जुन, गिरीश तिवारी गिर्दा के गीतों की भी शानदार प्रस्तुति की गई।
कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि बोलते हुए एडवोकेट गिरीश चन्द्र गोपी ने कहा सावित्रीबाई फुले ने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर 170 साल पहले बालिका शिक्षा के लिए जो काम किया वह आज भी अनुकरणीय है। ब्राह्मणवादी,जातिवादी समाज से लड़ते हुए ज्योतिबा ने अपनी पत्नी सावित्रीबाई को शिक्षित करने की ठानी, जिसका विरोध उनके घर में ही हुआ और उन्हें घर से निकाल दिया गया। फुले दंपती को शरण दी उस्मान शेख और उनकी बहन फातिमा शेख ने। उन्हीं के घर में फुले दंपती ने लड़कियों के लिए पहला कन्या स्कूल खोला और हिंदू-मुस्लिम एकता के दम पर समाज में फैली रुढ़ियों पर गहरी चोट की।
सावित्रीबाई जब लड़कियों को पढ़ाने जाती थीं, तब उन पर पुरातनपंथी विचारों के लोग कीचड़ व गोबर फेंकते थे इसलिए वह अपने थैले में बदलने के लिए अतिरिक्त साड़ी लेकर जाती थीं। इस सबके बावजूद भी सावित्रीबाई ने पुणे में 18 से ज्यादा स्कूल खोले तथा लड़कियों को पढ़ाना जारी रखा। उन्होंने समाज सुधार के लिए भी कई कार्य किए। उन्होंने दलितों के लिए अपने घर का कुआं खोल दिया तथा विधवाओं के लिए आश्रम चलाया। समाज के तथाकथित कुलीन वर्ग के लोग समाज की ऐसी महिलाओं का शारीरिक शोषण करते थे जो परित्यक्ता या विधवा होती थीं। जब वह गर्भवती हो जाती थीं तो उनके पास अपनी जान देने के अलावा और कोई चारा नहीं होता था। ऐसी स्त्रियों को सावित्रीबाई ने आश्रय दिया, उनके लिए उन्होंने बाल हत्या प्रतिबंध गृह खोले।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि एडवोकेट विक्रम मावड़ी ने कहा सावित्रीबाई फुले के संघर्षों की वजह से स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार मिला और आज बड़ी संख्या में शिक्षित होकर उन्होंने समाज में अपनी जगह बनाई है। लेकिन आज विश्व गुरु का दावा करने वाले हमारे देश के बहुत सारे स्कूल ऐसे हैं जिनकी कक्षाओं में गुरु नहीं हैं। कहीं स्कूल की बिल्डिंग नहीं है तो कहीं शौचालय नहीं है। शिक्षा का बाजारीकरण होने के कारण आज शिक्षा महंगी हो गई है, जिसकी वजह से एक बार फिर स्त्रियों को शिक्षा के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। लाखों रुपए की फीस देकर उच्च शिक्षा में प्रवेश कर पाना महिलाओं के लिए चुनौती है। लिंगभेद पर टिके इस समाज में शिक्षा के बाजारीकरण और निजीकरण की पहली मार महिलाओं और वंचित तबकों पर ही पड़ रही है।
कार्यक्रम में शिक्षक मण्डल संयोजक नवेन्दु मठपाल ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। भोजनमाता जानकी देवी की अध्यक्षता में स्कूल का विधिवत रिबन काटकर उद्घाटन इंकलाबी नौजवान सभा की रेखा आर्या के हाथों हुआ। रचनात्मक शिक्षक मण्डल द्वारा बड़े बच्चों को आईटी शिक्षा में पारंगत करने के लिए एक कम्प्यूटर भी भेंट किया गया।इस मौके पर हरीश आर्या, रिंकी, हरुली देवी, चनुली देवी, देवकी देवी, मानुली देवी, लवली, वंशिका लोहनी, दीपाली समेत बड़ी संख्या में स्थानीय ग्रामीण मौजूद रहे।