शिक्षा को स्टेट से समवर्ती सूची में शिफ्ट करना राज्य के क्षेत्राधिकार में विधायी आक्रमण जैसा : कपिल सिब्बल
स्वास्थ्य ( Health ) और शिक्षा ( Education ) लोगों की प्राथमिक जरूरतों में शामिल है। इसके पूर्ण प्रबंधन का अधिकार राज्य सरकारों के पास होनी चाहिए।
नई दिल्ली। आपातकाल ( Emergency era ) के दौरान संवैधानिक संशोधन ( Constitutional amendment ) के जरिए शिक्षा ( Education ) को राज्य सूची ( State list ) से समवर्ती सूची ( Concurrent list ) में शिफ्ट करने के खिलाफ गैर सरकारी संगठन अराम सेया विरुम्बु ट्रस्ट की ओर से दायर याचिका पर मंगलवार को मद्रास हाईकोर्ट ( Madras High Court ) में सुनवाई हुई। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ( Kapil sibbal ) ने मंगलवार को मद्रास हाईकोर्ट के सामने दलील पेश करते हुए कहा कि स्वास्थ्य और शिक्षा लोगों की दो प्राथमिक जरूरतों में शामिल है, इसका पूर्ण प्रबंधन का अधिकार राज्य सरकारों ( State government ) के पास ही होनी चाहिए।
कपिल सिब्बल ( Kapil sibbal ) ने कहा कि संवैधानिक संशोधन के जरिए शिक्षा को राज्य से समवर्ती सूची में शिफ्ट करना माता-पिता, बच्चों और राज्य के अधिकार के खिलाफ एक विधायी हमलों के समान है।
केंद्र यह तय नहीं कर सकती कि बच्चों को क्या सीखना चाहिए
उन्होंने कहा कि संसद शिक्षा के स्तर को नियंत्रित कर सकती है, लेकिन यह तय नहीं कर सकती कि तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश या केरल के बच्चों को क्या सीखना चाहिए। यह पाठ्यक्रम तय नहीं कर सकता है। ऐसा हुआ तो तमिलनाडु के लोगों को हिंदी में करनी पड़ेगी मेडिकल की पढ़ाई। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से शिक्षा में एकरूपता लाने के प्रयास के बारे में उन्होंने कहा कि एकरूपता का शिक्षा से कोई लेना-देना नहीं है। एकरूपता भारतीय संविधानिक व्यवस्था के मूल स्वरूप के खिलाफ है। केंद्र केवल शिक्षा के स्तर का समन्वय और निर्धारण कर सकता है। इससे ज्यादा कुछ नहीं।
देश के संघवादी ढांचे को प्रभावित करेगा
इससे पहले वरिष्ठ अधिवक्ता एनआर एलंगो ने तर्क दिया कि संविधान निर्माताओं ने परिकल्पना की थी कि शिक्षा राज्य सूची में होनी चाहिए लेकिन संशोधन बिना किसी बातचीत के किए गए हैं और यह राज्य की संप्रभुता का उल्लंघन करता है। शिक्षा अपने स्वरूप और उद्देश्य में ऐतिहासिक रूप से राज्य का विषय है। इसे बदलना निश्चित रूप से देश के संघवाद को प्रभावित करेगा।
फिलहाल, मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस आर महादेवन, न्यायमूर्ति एम सुंदर और सेंथिलकुमार राममूर्ति की पूर्ण पीठ ने इस मसले में दलीलों को सुनने के बाद 9 दिसंबर तक के लिए सुनवाई स्थगित कर दी।