ग्लासगो में चल रही जलवायु परिवर्तन पर COP26 बैठक, भारत में हिमालय का कलेजा ठंडा रखने की तैयारी
जब पूरे विश्व में पर्यावरण को लेकर इतनी बात हो रही है, तब अनिरुद्ध जडेजा जैसों का उदाहरण उस बात को सिर्फ़ चर्चाओं तक ही सीमित नही रखता, बल्कि लोगों को पर्यावरण के प्रति सभी की कुछ जिम्मेदारियों की याद दिलाने का काम भी करता है....
हिमांशु जोशी की टिप्पणी
जनज्वार। जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर बीते दो हफ़्तों से स्कॉटलैंड के ग्लासगो में चल रहा अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन COP26 अब ख़त्म होने की तैयारी में है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सम्मेलन में पहुंच भारत की तरफ़ से इस चुनौती से निपटने के लिए पांच अमृत तत्व रखे।
भारत के लिए हिमालय
जमीनी स्तर पर बात की जाए तो हिमालयी क्षेत्र पूरे देश के पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण है। हिमालयी नदियां तो करोड़ों भारतीयों की जीवनरेखा है, पर पहाड़ों में लगती आग पिछले कुछ सालों से हिमालय को लील रही है।
हिमालय के जंगलों में लग रही आग से उत्तर भारत का तापमान 0.2 डिग्री सेल्सियस तो बड़ा ही है, साथ ही उससे निकल रहे स्मॉग से ग्लेशियरों के पिघलने का खतरा भी बना हुआ है। वहीं अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन COP26 का मुख्य मुद्दा भी वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का है।
चाल-खाल
ऐसे समय में उत्तराखंड में विश्वविख्यात पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा का सानिध्य पाए अनिरुद्ध जडेजा, पीएसआई (PSI) देहरादून और जीवन मांगल्य ट्रस्ट उत्तराखंड के साथ उत्तराखंड के नैनीताल जिले में चाल-खाल बनाने में लगे हुए हैं। इसी के साथ वह और उनकी टीम जन भागीदारी से नौले-धारों का नवसृजन भी कर रही है।
उत्तराखंड में पारंपरिक रूप से पानी रोकने के लिए बनाए जाने वाले तालाबों को चाल व खाल कहते हैं, इनकी वजह से जमीन में नमी बनी रहती है और आग कम फैलती है।
जब पूरे विश्व में पर्यावरण को लेकर इतनी बात हो रही है, तब अनिरुद्ध जडेजा जैसों का उदाहरण उस बात को सिर्फ़ चर्चाओं तक ही सीमित नही रखता, बल्कि लोगों को पर्यावरण के प्रति सभी की कुछ जिम्मेदारियों की याद दिलाने का काम भी करता है।