बहुत महंगा नहीं पर्यावरण को सुरक्षित रखना, ईमानदारी से खर्च करें तो 2050 तक होगा समस्याओं का समाधान

पहले अनुमान किया गया था कि कोविड 19 के दौर में जब अर्थव्यवस्था फिर से पटरी पर आयेगी, तब सरकारें पर्यावरण अनुकूल विकास पर ध्यान देंगीं, पर सरकारों ने यह मौका गवां दिया है....

Update: 2021-05-30 10:45 GMT

(वर्ष 2030 तक पर्यावरण संरक्षण में निवेश तीन गुना बढाने की आवश्यकता है)

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

हाल में ही संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, वर्ल्ड इकनोमिक फोरम और इकोनॉमिक्स ऑफ़ लैंड डीग्रेडेशन इनिशिएटिव द्वारा संयुक्त तौर पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार यदि दुनिया अपने सकल घरेलू उत्पाद का महज 0.13 प्रतिशत प्रतिवर्ष पर्यावरण-अनुकूल खेती, वन संरक्षण, प्रजातियों के संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण पर ईमानदारी से खर्च करे तो निश्चित तौर पर पर्यावरण से सम्बंधित अधिकतर समस्याओं का समाधान वर्ष 2050 तक किया जा सकता है। यह राशि भले ही छोटी दिखाई दे, पर तथ्य यह है कि इस समय दुनिया में इसका एक-चौथाई ही खर्च किया जा रहा है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार दुनिया की जैव-विविधता बचाने के लिए वर्ष 2050 तक लगभग 8 खरब डॉलर इस काम के लिए खर्च करने की आवश्यकता होगी। इसमें से एक बाद हिस्सा जीवाश्म इंधनों और पर्यावरण का विनाश करने वाले औद्योगिक खेती पर सरकारों द्वारा दी जाने वाली रियायतों को समाप्त कर प्राप्त किया जा सकता है।

स्टेट ऑफ़ फाइनेंस फॉर नेचर नामक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 में पर्यावरण को विनाश से बचाने के लिए दुनिया ने महज 133 अरब डॉलर का खर्च किया, और इसमें भी अधिकतर राशि जलवायु परिवर्तन रोकने के उपायों पर खर्च की गयी। समस्या यह है कि पर्यावरण की हरेक समस्या एक-दूसरे से जुडी है, और इसमें से किसी एक का अलग से समाधान समग्र पर्यावरण पर विशेष प्रभाव नहीं डालता। इसीलिए जलवायु परिवर्तन, जैव-विविधता, प्रदूषण और पर्यावरण का विनाश करने वाली प्रोद्योगिकी – सभी क्षेत्रों में एक साथ काम करने की जरूरत है, इन सभी को राष्ट्रीय कार्ययोजना में शामिल करने की जरूरत है।

रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2030 तक पर्यावरण संरक्षण में निवेश तीन गुना बढाने की आवश्यकता है और वर्ष 2040 से 2050 तक इसे वर्त्तमान से चार गुना अधिक यानि, 536 अरब डॉलर तक पहुंचाने की जरूरत है। इसके लिए वर्ष 2050 तक अतिरिक्त 4 खरब डॉलर प्रतिवर्ष की आवश्यकता होगी, जिसे देशों द्वारा सतत विकास का रास्ता अपनाकर और पर्यावरण विनाश वाली गतिविधियों में सरकारी रियायत को बंद कर आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।

इस काम के लिए निजी क्षेत्र को भी अपना निवेश तेजी से बढाने की जरूरत है। वर्तमान में पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने के लिए दुनिया में जितना निवेश किया जा रहा है, उसमें से महज 14 प्रतिशत निवेश निजी क्षेत्रों से आ रहा है। दूसरी तरफ ग्रीनहाउस गैसों का वायुमंडल में उत्सर्जन रोकने के क्षेत्र में निजी क्षेत्र का निवेश 56 प्रतिशत से भी अधिक है। निजी क्षेत्र को अपने निवेश को पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने में भी तेजी से बढ़ाना होगा।

पहले अनुमान किया गया था कि कोविड 19 के दौर में जब अर्थव्यवस्था फिर से पटरी पर आयेगी, तब सरकारें पर्यावरण अनुकूल विकास पर ध्यान देंगीं, पर सरकारों ने यह मौका गवां दिया है। कोविड 19 के पहले दौर के बाद दुनियाभर के देशों में जितनी भी राहत पैकेज की घोषणा की गयी है उसमें से महज 2.5 प्रतिशत पर्यावरण संरक्षण के लिए है।

समग्र पर्यावरण संरक्षण के अनेक फायदे हैं – इससे मानव स्वास्थ्य सुधरता है, जीवन स्तर में सुधार आता है, रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं और पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र का स्वास्थ्य सुधरता है। अनुमान है की केवल जैव विविधता में कमी के कारण पूरी दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद में 10 प्रतिशत से अधिक का नुकसान हो रहा है।

1980 के दशक से पूरी दुनिया पर्यावरण संरक्षण पर चर्चा कर रही है – पर तापमान बढ़ रहा है, हरेक तरह का प्रदूषण भी लगातार बढ़ रहा है और जैव सम्पदा का लगातार नाश हो रहा है। अब एक नए अध्ययन के अनुसार पृथ्वी के केवल 3 प्रतिशत हिस्से में ही पारिस्थितिकी तंत्र अपने मौलिक स्वरुप में बचा है, यानि केवल 3 प्रतिशत पृथ्वी पर ही मनुष्यों का प्रभाव नहीं पड़ा है। यह निश्चित तौर पर एक गंभीर समस्या है क्योंकि अब तक के आकलन 20 से 40 प्रतिशत पृथ्वी को मानव के हस्तक्षेप से आजाद बताते रहे हैं। जिन हिस्सों में पर्यावरण अभी सुरक्षित है, वे हैं – अमेज़न के घने हिस्से, कांगो के जंगल, पूर्वी साइबेरिया, उत्तरी कनाडा के जंगल और घास के मैदान, और सहारा का रेगिस्तान।

यह अध्ययन ऐसे समय किया गया है जब दुनियाभर के वैज्ञानिक बता रहे हैं कि जैव-विविधता का नष्ट होना भी जलवायु परिवर्तन जैसा गंभीर विषय है और इसपर व्यापक चर्चा की जरूरत है। पिछले कुछ वर्षों से जैव-विविधता के विनाश में अभूतपूर्व तेजी आई है, जमीन के जानवर, पानी के जानवर और यहाँ तक कि कीट-पतंगे भी विलुप्तीकरण की तरफ बढ़ रहे हैं।

प्रजातियों की विविधता पर ही पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व टिका है – भोजन, साफ़ पानी और साफ़ हवा, सब इन्ही की देन है। इस समय संयुक्त राष्ट्र की तरफ से पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने से सम्बंधित अंतरराष्ट्रीय दशक चल रहा है, और जनवरी 2021 में दुनिया के 50 से अधिक देशों ने एक संकल्प पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं जिसके अनुसार वर्ष 2030 तक पृथ्वी के कम से कम एक-तिहाई पारिस्थितिकी तंत्र को उनके मौलिक स्वरुप में लौटाना है। पारिस्थितिकी तंत्र को उनके मौलिक स्वरुप में लौटाना है।

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