पर्यावरण संतुलन के लिए गंडक नदी में छोड़े गए कछुए, इन्हें कहा जाता है नदी का सफाईकर्मी
डब्ल्यूटीआई के वन्यजीव बायोलिस्ट सुब्रत कुमार बेहरा ने कहा 'पर्यावरण संतुलन बनाये रखने के लिए वन्यजीवों का सरंक्षण जरूरी है। उन्होंने कहा कि कछुए नदी में सड़ी गली चीजों का सफाया करते हैं, जिस कारण कछुओं को नदी का सफाईकर्मी कहा जाता है।'
जनज्वार। पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रकृति और प्रकृति प्रदत्त जीवों-वनस्पतियों का संरक्षण जरूरी होता है। वनस्पति, जीव-जंतुओं, नदियों-पहाड़ों सभी मे संतुलन रहेगा, तभी पर्यावरण भी संतुलित रह सकता है।
वन्यजीव सरंक्षण को ध्यान में रखते हुए बिहार से गुजरने वाली गंडक नदी में जलीय जीवों की मौजूदगी बनी रहे, इसकी कोशिश की जा रही है। इसी क्रम में सारण जिला के सारंगपुर डाकबंगला घाट पर गंडक नदी में एक कछुआ छोड़े गए।
डब्ल्यूटीआई के वन्यजीव बायोलिस्ट सुब्रत कुमार बेहरा ने कहा 'पर्यावरण संतुलन बनाये रखने के लिए वन्यजीवों का सरंक्षण जरूरी है। उन्होंने कहा कि कछुए नदी में सड़ी गली चीजों का सफाया करते हैं, जिस कारण कछुओं को नदी का सफाईकर्मी कहा जाता है।'
उन्होंने कहा कि गंडक के जल के ऊपर लाखो लोगो की जीविका निर्भर करती है। अगर नदी एवं इसके जीव सरंक्षित नही रहेंगे तो इसका कुप्रभाव यहां के पर्यावरण के साथ-साथ क्षेत्र की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति पर भी पड़ेगा। इसी कारण इसका विकास एवं संरक्षण जरूरी है।
फॉरेस्ट ऑफिसर लव कुमार राय ने कहा 'वन विभाग द्वारा पेड़-पौधों और वन्य तथा जलीय जीवों के संरक्षण का लगतार प्रयास किया जा रहा है। इस प्रयास से कई वन्य एवं जलीय जीव, जो विलुप्त होने के कगार पर थे, अब उनकी मौजूदगी नजर आने लगी है।'
हालिया दिनों में बिहार से होकर गुजरने वाली गंगा एवं गंडक नदियों में डॉल्फिन भी नजर आए हैं। एक समय में डॉल्फिन विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गए थे।