Begin typing your search above and press return to search.
विमर्श

भारत में कोयले के बढ़ते उपयोग पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव की चिंता और पीएम मोदी दे रहे कोयले में आत्मनिर्भरता पर ज्ञान

Janjwar Desk
2 Sept 2020 10:49 PM IST
भारत में कोयले के बढ़ते उपयोग पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव की चिंता और पीएम मोदी दे रहे कोयले में आत्मनिर्भरता पर ज्ञान
x

file photo

सभी कम्पनियाँ पर्यावरण विनाश, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और लोगों की जान से खिलवाड़ के लिए स्वतंत्र कर दी गई हैं और यही हमारी पर्यावरण संरक्षण के सन्दर्भ में 5000 वर्षों की परंपरा है, जिसका उल्लेख प्रधानमंत्री मोदी बार-बार करते हैं....

महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

जनज्वार। देश के प्रतिष्ठित संस्थान टेरी के संस्थापक दरबारी सेठ की याद में आयोजित वार्षिक व्याख्यानमाला में मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव ऐटोनियो गुटेर्रेस ने कहा कि भारत को सस्ते ऊर्जा स्त्रोत के तौर पर कोयले की तरफ देखना बंद कर देना चाहिए, क्योंकि अब नवीनीकृत ऊर्जा स्त्रोतों से बनी बिजली की कीमत भी सस्ती है। कोयले का उपयोग मानव स्वास्थ्य, पर्यावरण और यहाँ तक कि अर्थव्यवस्था के लिए भी एक अभिशाप है।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने यह बात ऐसे समय कही है जब आत्मनिर्भर भारत के तहत प्रधानमंत्री मोदी ने सबसे पहले कोयले में आत्मनिर्भरता पर लम्बा भाषण देते हुए इसके उत्पादन को बढाने के लिए खनन को निजी क्षेत्रों के हवाले करने की घोषणा की है और साथ ही पर्यावरण के सन्दर्भ में संवेदनशील इलाकों में भी इसके खनन की अनुमति दी गई है।

ऐटोनियो गुटेर्रेस के अनुसार यदि जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए किये गए पेरिस समझौते पर आगे बढ़ाना है तो भारत और चीन जैसे देशों को कोयले के मोह को छोड़ना पड़ेगा। इस समय जब कोविड 19 के दौर में अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के प्रयास किये जा रहे हैं, तब भारत को कोयले के उपयोग को धीरे—धीरे कम करना होगा और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अगले वर्ष से कोई भी नए ताप-बिजली घर नहीं स्थापित किये जाएँ और जीवाश्म इंधनों पर दी जाने वाली रियायत भी बंद कर दी जाए।

संयुक्त राष्ट महासचिव के अनुसार इस दौर में कोयले के उपयोग को बढाने का कोई औचित्य नहीं है, और इसके उपयोग से स्वास्थ्य, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था बस धुआँ ही रह जाती है। यदि कोयले के उपयोग को ख़तम कर दे तो भारत उर्जा के क्षेत्र में और जलवायु परिवर्तन नियंत्रण के क्षेत्र में दुनिया की अगुवाई करने की क्षमता रखता है।

दरअसल मोदी सरकार लगभग हरेक मामलों में दोहरी नीति पर चलती है – अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के पर्यावरण संरक्षण के मामले में 5000 वर्षों की परंपरा का पाठ पढ़ाया जाता है और देश में लगातार पर्यावरण के विनाश के रास्ते खोजे जाते हैं, दुनिया को प्रधानमंत्री जी नवीनीकृत उर्जा में भारत की सफलता बताते हैं और देश में कोयला-आधारित नए बिजलीघर स्थापित किये जाते हैं, दुनिया को जलवायु परिवर्तन पर प्रवचन देते हैं और देश में इसे नियंत्रित करने की कोई स्पष्ट नीति भी नहीं है। प्रधानमंत्री जी पता नहीं कितने भाषणों में सौर उर्जा और पवन उर्जा के देश में विकास पर अपनी पीठ थपथपा चुके हैं, पर तथ्य यह है कि देश में आज भी नवीनीकृत उर्जा की तुलना में कोयला पर आधारित ताप-बिजली घरों का ज्यादा विकास किया जा रहा है।

अडानी समूह तो अपने ताप-बिजली घरों के लिए भारत की नहीं, बल्कि ऑस्ट्रेलिया से भी कोयला ला रहा है। ऐटोनियो गुटेर्रेस के अनुसार वर्तमान में नवीनीकृत स्त्रोतों से जो बिजली पैदा की जा रही है, उसकी कीमत दुनिया के 39 प्रतिशत ताप-बिजली घरों द्वारा उत्पन्न की जाने वाली बिजली से कम है और अगले 2 वर्षों में 60 प्रतिशत कोयला आधारित बिजलीघरों से कम होगी।

अगले दो वर्षों में भारत के 50 प्रतिशत कोयला आधारित बिजली घरों से उत्पन्न बिजली की तुलना में नवीनीकृत स्त्रोतों से उत्पन्न बिजली सस्ती होगी। एक अन्य अध्ययन के अनुसार कोयला आधारित बिजली घरों की तुलना में नवीनीकृत उर्जा स्त्रोतों से बिजली उत्पादन में तीन-गुना अधिक लोगों को रोजगार मिलता है।

ऐटोनियो गुटेर्रेस पिछले कुछ महीनों से लगातार दुनिया से पर्यावरण-अनुकूल अर्थव्यवस्था विक्सित करने का आग्रह कर रहे हैं। 23 जुलाई को चीन के सिंगहुआ यूनिवर्सिटी में व्याख्यान देते हुए उन्होंने चीन से भी कोयले का उपयोग कम करने का अनुरोध किया था। दुनियाभर में पाँव पसार चुकी कोयला लॉबी ने पिछले कुछ वर्षों से कोयले से पर्यावरण और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों से जनता और सरकारों का ध्यान भटकाने के लिए "क्लीन कोल" का सहारा लिए है, पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव के अनुसार यह केवल एक छलावा है और क्लीन कोल जैसी कोई चीज है ही नहीं।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़ोर्ड द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार दुनिया में महज 10 प्रतिशत बिजली उत्पादन कम्पनियां नवीनीकृत उर्जा स्त्रोतों पर प्राथमिकता के आधार पर निवेश कर रहीं हैं, और इनमें से लगभग सारी कम्पनियां यूरोपीय देशों में स्थित हैं। यह अध्ययन नेचर इकोलॉजी नामक जर्नल के नवीनतम अंक में प्रकाशित किया गया है।

इस अध्ययन के लिए दुनियाभर में 3000 बिजली उत्पादन कंपनियों का अध्ययन किया गया है। दुनियाभर की अधिकतर कम्पनियां अभी तक कोयले पर आधारित ताप बिजली घरों को स्थापित करने और उनकी क्षमता बढाने के लिए निवेश कर रही हैं। यहाँ तक कि अधिकतर ताप बिजली घरों में आधुनिक, कम प्रदूषण और कम उत्सर्जन वाली प्रौद्योगिकी का भी इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है।

हमारे देश में भी कोयला आधारित ताप बिजली घर खूब प्रदूषण फैलाते हैं। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने वर्षों पहले इन बिजलीघरों के लिए कम उत्सर्जन वाले मानक को अधिसूचित किया था, पर इसका अनुपालन शायद ही कोई बिजली घर करता नजर आता है। अब सवाल केवल प्रदूषण का ही नहीं रह गया है, बल्कि सरकारी नीति इज ऑफ़ डूइंग बिजनेस के तहत इनपर से सारे अंकुश हटा लिए गए हैं।

ये सभी कम्पनियाँ पर्यावरण विनाश, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और लोगों की जान से खिलवाड़ के लिए स्वतंत्र कर दी गई हैं और यही हमारी पर्यावरण संरक्षण के सन्दर्भ में 5000 वर्षों की परंपरा है, जिसका उल्लेख प्रधानमंत्री मोदी बार-बार करते हैं।

Next Story

विविध

News Hub