किसान आंदोलन के बीच गरमायेगा CAA का मुद्दा, मोदी सरकार जनवरी तक लागू कर सकती है संशोधित नागरिकता कानून

भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय ने बंगाल में चुनावी सभा अगले साल जनवरी से सीएए के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से गैर-मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करना शुरू हो जाएगा....

Update: 2020-12-12 07:49 GMT

जनज्वार। पिछले साल इसी महीने में सीएए यानी मोदी सरकार द्वारा प्रस्तावित नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जनता सड़कों पर थी, जनता इसे जनविरोधी कहकर इसके खिलाफ सड़कों पर उतरी थी, अब इस साल किसान आंदोलन चरम पर है। पिछले 16 दिन से किसान नये कृषि कानून थोपे जाने के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं।

अब एक बार फिर खबर आ रही है कि केंद्र की मोदी सरकार बहुचर्चित नागरिकता कानून के नियम तैयार करने में लगी है। गृहमंत्रालय द्वारा एक आरटीआई के जवाब में दी गयी जानकारी से यह बात पता चली है।

गौरतलब है कि पिछले साल केंद्र की मोदी सरकार ने दोनों सदनों में नागरिकता संशोधन बिधेयक को पास करा लिया था, जिसके अगले दिन 12 दिसंबर को राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर करके इसे अंतिम स्वीकृति भी दे दी थी। हालांकि अभी नियम तैयार करने की प्रक्रिया पूरी न हो पाने के चलतेे नागरिकता कानून लागू नहीं हुआ है। जैसे ही सरकार नियम तैयार कर देगी, इसकी अधिसूचना जारी की जायेगी और इसी के साथ देशभर में नागरिकता कानून लागू हो जाएगा। सीएए जबरन थोपे जाने के खिलाफ पूर्वोत्तर से एकबार फिर विरोध के स्वर उठने लगने लगे हैं।

भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय ने भी पिछले सप्ताह पश्चिम बंगाल में एक रैली को संबोधित  करते हुए संकेत दिया था कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम अगले साल जनवरी से लागू होने की पूरी संभावना है। इतना ही नहीं चुनावी रैली में विजयवर्गीय ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार और भाजपा पश्चिम बंगाल में बड़ी संख्या में शरणार्थी आबादी को नागरिकता देने की इच्छुक है।

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विजयवर्गीय ने यह भी दावा किया कि अगले साल जनवरी से सीएए के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से गैर-मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करना शुरू हो जाएगा।

गौरतलब है कि अगले साल पश्चिम बंगाल और असम के विधानसभा चुनाव होने हैं। इन दोनों राज्यों में शरणार्थियों को नागरिकता देने का मुद्दा काफी गरमाया था और अभी भी लोग इसके खिलाफ हैं। यहां ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि इन दोनों राज्यों की सीमाएं बांग्लादेश से मिलती हैं, ऐसे में यह तय माना जा रहा है कि असम और बंगाल चुनावों से पहले मोदी सरकार नागरिकता संशोधन अधिनियम को हर हाल में पूरी तरह लागू कर देगी।

असम में एनआरसी का मुद्दा फिर एक बार फिर गरमा चुका है। यहां पछले साल राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर जिसे एनआरसी कहा जाता है कि सूची प्रकाशित की गई थी। इस सूची में 19 लाख से अधिक लोगों को बाहर कर दिया गया था। ये ऐसे लोग हैं जो अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए। अब इस सूची को असम सरकार ने अंतिम सूची के बजाय सप्लीमेंट्री सूची बताया है।

हाल में एक याचिका की सुनवाई के जवाब में असम सरकार ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय को जानकारी दी कि पिछले साल प्रकाशित हुई एनआरसी सूची, एक सप्लीमेंट्री लिस्ट थी और एनआरसी की अंतिम सूची आना बाकी है। स्टेट समन्वयक की ओर से कोर्ट को बताया गया कि 31 अगस्त 2019 को छपी सूची में दस हजार नाम फर्जी तरीके से हटा अथवा जोड़ दिए गए। अब इस सूची से 4800 से अधिक अयोग्य नामों हो हटाया जाएगा।

संशोधित नागरिकता कानून के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के छह गैर-मुस्लिम समुदाय के लोगों को धर्म के आधार पर नागरिकता देने का प्रावधान है, जो 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत आए हैं।

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गौरतलब है कि इसी संशोधित नागरिकता के खिलाफ दिल्ली का शाहीनबाग आंदोलन का एक बड़ा केंद्र बन गया था। इसके अलावा सीएए के खिलाफ देशभर में जगह-जगह महीनों तक आंदोलन चला। दिल्ली के शाहीनबाग में मुस्लिम महिलाओं के नेतृत्व में सीएए विरोधी आंदोलन शुरू हुआ, जो पूरे विरोध प्रदर्शनों का केंद्र बन गया। इसी के बाद जामिया हिंसा, अलीगढ़ विश्वविद्यालय हिंसा और दिल्ली दंगे हुए थे और उसके बाद कोरोना के नाम पर यह आवाजें चुप करा दी गयी थीं।

सर्वोच्च न्यायालय में नागरिकता संशोधन कानून को चुनौती देने वाली 140 से अधिक याचिकाएं दायर की गयी हैं, जिन पर अभी सुनवाई नहीं की गयी है।

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