मोदी सरकार के विकास में फलते-फूलते पूंजीपति और अस्तित्व खोता जा रहा है आम इंसान !

मुकेश अंबानी खानदान की कुल संपत्ति पूरे भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 10 प्रतिशत है, कुल जीडीपी का 10 प्रतिशत मालिक केवल एक परिवार है, और शेष 90 प्रतिशत 140 करोड़ से अधिक जनता के हिस्से आता है, फोर्ब्स द्वारा वर्ष 2024 के अरबपतियों की सूची में 200 नाम भारत से हैं, जबकि वर्ष 2023 की सूची में महज 169 भारतीय ही थे...

Update: 2025-01-03 18:21 GMT

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विनाश को ही विकास कैसे बताती है सत्ता बता रहे हैं महेंद्र पांडेय

Modi’s India grouped with least developed nations in every international index related with social development. प्रधानमंत्री मोदी हरेक दिन विकास का राग अलापते हैं, हालांकि उनके विकास से समाज पूरी तरह से गायब है। मोदी जी के विकास में पूँजीपतियों का मुनाफा बढ़ता जा रहा है और आम आदमी अपना अस्तित्व खोता जा रहा है। धन्ना सेठों का मीडिया पर्यावरण का विनाश कर लगातार बनाए जा रहे इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को ही विकास बता रहा है, और सत्ता पूँजीपतियों की तेजी से बढ़ती संपदा को ही देश के जीडीपी में बढ़ोत्तरी साबित करने में जुटा है। इन सबके बीच समय-समय पर प्रकाशित अंतरराष्ट्रीय इंडेक्स मोदी जी के दावों की धज्जियां उड़ाते हैं, जिसे मोदी-भक्त मीडिया जनता के सामने आने नहीं देता।

नारी शक्ति नमन पर लगातार प्रवचन देने वाले प्रधानमंत्री मोदी के तथाकथित विकसित भारत में महिलायें नारी शक्ति नमन पर प्रवचन देने वाले प्रधानमंत्री मोदी के तथाकथित विकसित भारत में महिलायें तेजी से पिछड़ती जा रही हैं। वर्ल्ड इकनोमिक फोरम द्वारा प्रकाशित ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2024 में शामिल कुल 146 देशों में मोदी की गारंटी वाला भारत शर्मनाक तरीके से 129वें स्थान पर है। वर्ष 2023 की तुलना में भारत दो स्थान पीछे पहुँच चुका है। वर्ष 2014 में जब मोदी जी पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने थे, तब इस इंडेक्स में भारत कुल 142 देशों में 114वें स्थान पर था।

फरवरी 2024 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा प्रकाशित मानव विकास इंडेक्स 2023-2024 में लैंगिक समानता के संदर्भ में भी 193 देशों की सूचि में भारत का स्थान 108वां था। इसके बाद भी इस इंडेक्स का हवाला देते हुए प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो ने 14 मार्च 2024 को एक प्रेस रिलीज़ जारी करके लैंगिक समानता के सन्दर्भ में मोदी सरकार की तारीफ़ के पुल बांधे थे। प्रेस रिलीज़ के शुरू में ही “नारी शक्ति प्रगति की राह पर” लिखा गया था और अन्दर बताया गया था की महिला समानता इंडेक्स में वर्ष 2014 में भारत 127वें स्थान पर था, और प्रधानमंत्री मोदी के कुशल नेतृत्व में अब भारत 108वें स्थान पर पहुँच गया है। दूसरी तरफ, जेंडर गैप इंडेक्स में वर्ष 2014 से 2024 के बीच भारत 114वें स्थान से 129वें स्थान पर लुढ़क गया तब पीआईबी, सत्ता, मेनस्ट्रीम मीडिया और बीजेपी प्रवक्ता मौन हैं।

ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी का वेलबीइंग रिसर्च सेंटर, संयुक्त राष्ट्र के सस्टेनेबल डेवलपमेंट सौल्युशंस नेटवर्क और गैलप के सहयोग से हरेक वर्ष वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट प्रकाशित करता है और हाल में ही प्रकाशित इसके 2024 के संस्करण में भारत का स्थान कुल 143 देशों में 126वां है, पिछले वर्ष भी भारत इसी स्थान पर था। वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स पिछले बारह वर्षों से प्रकाशित किया जा रहा है और भारत लगातार इस सूची में लगातार सबसे पिछले देशों के साथ ही खड़ा रहता है। भारत का पिछड़ना इस लिए भी आश्चर्य का विषय है, क्योंकि यहाँ प्रचंड बहुमत वाली ऐसी सरकार है जो लगातार जनता की हरेक समस्या सुलझाने का दावा करती रही है। सत्ता के अनुसार उसने पानी, बिजली, कुकिंग गैस और इसी तरह की बुनियादी सुविधाएं हरेक घर में पहुंचा दी है, पर इंडेक्स तो यही बताता है कि दुनिया के सबसे दुखी देशों में हम शामिल हैं। इस इंडेक्स में तो हम पाकिस्तान और लगातार अशांत रहे म्यांमार से भी पीछे हैं।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने हाल में ही मल्टीडाईमेन्शनल पावर्टी इंडेक्स 2024 प्रकाशित किया है, इसमें भारत की गरीबी का भी जिक्र है। इसके अनुसार दुनिया में 1.1 अरब गरीब हैं, जिसमें से अकेले भारत में इनकी संख्या 23.4 करोड़ है। यह संख्या दुनिया के किसी भी देश की तुलना में सर्वाधिक है। भारत समेत पाँच देश – पाकिस्तान, इथियोपिया, नाइजीरिया और कांगो - के गरीबों की सम्मिलित आबादी दुनिया के कुल गरीबों की संख्या की लगभग आधी है। पाकिस्तान में 9.3 करोड़, इथियोपिया में 8.6 करोड़, नाइजीरिया में 7.4 करोड़ और कांगो में 6.6 करोड़ आबादी गरीब है। इस रिपोर्ट को 112 देशों की 6.3 अरब आबादी के आधार पर तैयार किया गया है।

देश की गरीबी और साथ ही भुखमरी का मंजर तो ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2024 में भी नजर आता है। आयरलैंड की संस्था कन्सर्न वर्ल्डवाइड और जर्मनी की संस्था वेल्थहंगरलाइफ द्वारा संयुक्त तौर पर तैयार किए गए इस इंडेक्स में भारत को कुल 27.3 अंक दिए गए है, जो गंभीर भूखमरी की श्रेणी को दर्शाता है। कुल 127 देशों के इस इंडेक्स में स्वघोषित विश्वगुरु भारत 105 वें स्थान पर है। हमारे पड़ोसी देशों में से केवल पाकिस्तान और अफगानिस्तान ही हमसे भी पीछे हैं। दुनिया के 42 देश ऐसे हैं जहां भुखमरी की स्थिति गंभीर है, जिसमें भारत भी एक है।

दुनिया के 195 देशों में मानवाधिकार के विस्तृत अध्ययन के नतीजों से स्पष्ट है कि 115 देश मानवाधिकार के संदर्भ में भारत से बेहतर स्थिति में हैं, जबकि केवल 79 देश भारत से भी बदतर स्थिति में हैं। भारत में अमृत काल के स्वर्णिम समय में मानवाधिकार की स्थिति वैश्विक औसत से भी कम है। जी 20 देशों के समूह में भी यूरोप के देशों को छोड़कर मानवाधिकार कमजोर पड़ता जा रहा है। अपने पड़ोसी देशों की तुलना में भारत में मानवाधिकार की स्थिति अपेक्षाकृत अच्छी है, पर एशिया-मध्यपूर्व क्षेत्र में हमारा देश 14 वें स्थान पर है।

मानवाधिकार के संदर्भ में हमसे आगे 115 देशों में से – 25 अमेरिकी क्षेत्र में, 13 एशिया और मध्यपूर्व में, 42 यूरोप में, 13 ओशेनिया में और 22 अफ्रीका में हैं। यह जानकारी यूनिवर्सिटी ऑफ रोडे आइलैंड द्वारा प्रकाशित ऐन्यूअल रिपोर्ट ऑन ग्लोबल ह्यूमन राइट्स के 2024 के संस्करण में दी गई है। इसके अनुसार दुनियाभर में मानवाधिकार को कुचला जा रहा है और दुनिया में कोई देश ऐसा नहीं है, जहां इसका सम्मान शत-प्रतिशत किया जाता है।

पर्यावरण के मामलों में हम कहाँ हैं इसका अंदाज इस वर्ष प्रकाशित पर्यावरण से संबंधित दो वैश्विक इंडेक्स से लगाया जा सकता है – दोनों इंडेक्स में प्रधानमंत्री मोदी का विकसित भारत कुल 180 देशों की सूची में 176 वें स्थान पर है – यानि एक नहीं बल्कि दो इंडेक्स में पर्यावरण का विनाश करने वाले केवल चार देश ऐसे हैं, जो हमसे भी आगे हैं। पहली बार प्रकाशित नेचर कान्सर्वैशन इंडेक्स 2024 में कुल 180 देशों में भारत 176 वें स्थान पर है – केवल किरिबाती, तुर्की, इराक और माइक्रोनेशिया ही हमसे भी फिसड्डी हैं। यह इंडेक्स भूमि प्रबंधन, जैव-विविधता पर खतरे, क्षमता और विनाश, जैव-विविधता संरक्षण से संबंधित नीतियाँ और भविष्य में संरक्षण के रणनीति के आधार पर तैयार किया जाता है। इस इंडेक्स को इस्राइल स्थित बेन गुरियन यूनिवर्सिटी और जैव-विविधता पर काम करने वाली संस्था बायो डीबी ने संयुक्त तौर पर किया है।

वर्ष 2024 के शुरू में ही येल यूनिवर्सिटी और कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने सयुक्त रूप से पर्यावरण प्रदर्शन इंडेक्स 2024 प्रकाशित किया था और इस इंडेक्स में भी शामिल कुल 180 देशों में भारत 176वें स्थान पर है, यही नहीं दक्षिण एशिया के 8 देशों में भी भारत 7वें स्थान पर है। इस इंडेक्स में भारत के पड़ोसी देशों में केवल पाकिस्तान और म्यांमार ही भारत से पीछे हैं पर म्यांमार को इंडेक्स के क्षेत्रीय वर्गीकरण में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शामिल किया गया है। दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों में सबसे पीछे हमारा देश है।

हरुन इंडिया नामक संस्था ने भारत के खानदानी उद्योगपतियों के बारे में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट के अनुसार परम्परागत व्यवसायी परिवार के सन्दर्भ में मुकेश अंबानी खानदान देश में आर्थिक तौर पर सबसे प्रभावी परिवार है, इस परिवार की कुल संपत्ति 309 अरब डॉलर या 25.75 लाख करोड़ रुपये के समतुल्य है। यहाँ तक तो सबकुछ सामान्य लगता है, पर हैरानी तो यह जानकार होती है कि मुकेश अंबानी खानदान की कुल संपत्ति पूरे भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 10 प्रतिशत है। जाहिर है, कुल जीडीपी का 10 प्रतिशत मालिक केवल एक परिवार है, और शेष 90 प्रतिशत 140 करोड़ से अधिक जनता के हिस्से आता है।

फोर्ब्स द्वारा वर्ष 2024 के अरबपतियों की सूची में 200 नाम भारत से हैं, जबकि वर्ष 2023 केसूची में महज 169 भारतीय ही थे। इन 200 अरबपतियों की सम्मिलित सम्पदा 954 अरब डॉलर, यानि लगभग 1 खरब डॉलर है। देश की 140 करोड़ से अधिक आबादी है और इसकी जीडीपी औसतन 7.5 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से बढ़ती है – इस आबादी में से महज 200 लोगों के पास जीडीपी का 27 प्रतिशत है, और इस 27 प्रतिशत में 41 प्रतिशत प्रतिवर्ष की बृद्धि हो रही है – यानि देश के गरीबों की सम्पदा में बृद्धि तो निगेटिव में हो रही है। यही मोदी जी का तथाकथित विकास है, जिस पर बेरोजगार, भूखे, नंगे सभी तालियाँ बजा रहे हैं और मोदी-मोदी के नारे लगा रहे हैं।

सामाजिक संदर्भ से जुड़े किसी भी इंडेक्स में भारत का स्थान वैश्विक औसत के पास भी नहीं है, दक्षिण एशिया के देशों में भी सामाजिक विकास के संदर्भ में हम पिछड़े देश हैं। मोदी सरकार केवल विज्ञापनों और खोखले दावों पर आधारित विकास की बात करती है। वास्तविकता तो यह है कि गरीबी, आर्थिक और लैंगिक असमानता और कुपोषण के संदर्भ में अमृतकाल के स्वर्णिम अध्याय का भारत वाकई में विश्वगुरु है।

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