CMRI report : नफरती मामलों में जांच एजेंसियों की भूमिका संदिग्ध, BJP शासित राज्यों से सामने आये अधिकांश मामले
Hate Speech Against Minority : सीएमआरआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरती घटनाएं बड़े पैमाने पर भाजपा शासित राज्यों से सामने आई हैं।
Hate Speech Against Minority : भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हेट स्पीच के मामले तेजी से बढ़ने का सिलसिला जारी है। इस बात खुलासा अमेरिका स्थित गैर सरकारी संगठन सीएमआरआई ने की है। सीएमआरआई की रिपोर्ट में बताया गया है कि अपराधियों की मदद करने, पीड़ितों को हिरासत में लेने और कुछ मामलों में प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज करने में विफल रहने जैसे मामलों में कानून प्रवर्तन एजेंसियां भी पाक साफ नहीं हैं। साल 2021 में हेट स्पीच जैसे मामलों में जांच एजेंसियों की भेदभावपूर्ण रवैया अख्तियार करने के संकेत मिले हैं।
सीएमआरआई ने 20 नवंबर को धार्मिक आधार पर भारत में अल्पसंख्यकों के खिलाफ जारी घटनाओं पर आधारित यह रिपोर्ट जारी की है। सीएमआरआई की रिपोर्ट में भारत के धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति से संबंधित कई विषयों को शामिल किया गया है। इनमें अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणा अपराधों की घटनाएं, मीडिया में उनका चित्रण, उत्पीड़न की प्रतिच्छेदन प्रकृति व अन्य बिंदु शामिल हैं। इस रिपोर्ट को अधिवक्ता वकील कवलप्रीत कौर और छात्र कार्यकर्ता सफूरा जरगर, निधि परवीन, शरजील उस्मानी और तजीन जुनैद ने जारी किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने की है।
अधिकांश घटनाएं भाजपा शासित राज्यों में
हेट स्पीच को लेकर जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि 2021 में भारत में ईसाइयों, मुसलमानों और सिखों के खिलाफ घृणा अपराधों के 294 मामले दर्ज किए गए। इनमें से अधिकांश अपराध (192) मुसलमानों के खिलाफ दर्ज किए गए, 95 ईसाइयों के खिलाफ और सात सिखों के खिलाफ। ईसाई समुदाय को मुख्य रूप से जबरन धर्मांतरण के आरोपों पर निशाना बनाया गया, जबकि मुस्लिम समुदाय को मुख्य रूप से अंतर-धार्मिक संबंधों और गोहत्या के आरोपों के लिए निशाना बनाया गया। ज्यादातर मामलों में अपराधी दक्षिणपंथी सतर्कता या हिंदू चरमपंथी समूह की संलिप्तता सामने आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक स्पष्ट पैटर्न है जो बताता है कि धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणा अपराध की घटनाएं बड़े पैमाने पर भाजपा शासित राज्यों में हुई हैं।
सिखों के खिलाफ घृणित अपराधों का दस्तावेजीकरण नहीं किया जाता है और समाचार मीडिया द्वारा भी इसकी सूचना नहीं दी जाती है। सिख समुदाय के सदस्यों के खिलाफ घृणा अपराधों के मामलों के लिए हमारे प्राथमिक शोध के दौरान, हमने जबरन लापता होने और न्यायेतर हत्याओं के कई मामले पाये गए हैं।
जिम्मेदारियों का पालन निष्पक्षतापूर्वक नहीं कर रही हैं एजेंसियां
घृणित अपराध के अपराधियों को फंसाने के लिए निश्चित अर्थ और अपर्याप्त कानूनी प्रावधानों के अभाव में कानून प्रवर्तन एजेंसियों की भूमिका प्रभावी रूप से विवेक से संचालित होती है। इसमें कहा गया है कि घृणित अपराधों के अपराधियों के खिलाफ कानून प्रवर्तन एजेंसियां प्रभावी कार्रवाई नहीं कर पा रही हैं। एजेंसियों की न्यायिक प्रणाली में भेदभावपूर्ण है। रिकॉर्ड घृणित अपराधों के पीड़ितों को हिरासत में लेने या गिरफ्तार करने से पुलिस के "स्पष्ट पूर्वाग्रह" को भी दर्शाता है। इसमें कहा गया है कि पुलिस द्वारा "अपराधियों को अपराध में मदद करने या किए गए अपराध की अनदेखी" करने की घटनाएं भी सामने आई हैं। ऐसी घटनाएं भी होती हैं जिनमें कानून प्रवर्तन कर्मी वास्तव में अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों के खिलाफ अपराधों में शामिल होते हैं। संस्थागत शक्ति और कानून प्रवर्तन की जवाबदेही की कमी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पुलिस कार्रवाई या निष्क्रियता से घृणा अपराधों के शिकार लोगों को प्रभावित करती है।
भारत में दूसरा आपातकाल
वरिष्ठ कॉलिन गोंजाल्विस ने राजनीतिक कैदियों के मामलों के कई उदाहरण साझा किए जहां अभियुक्तों का अपराध भी स्थापित नहीं किया जा सका। उन्होंने कहा कि यह लोगों को डराने के लिए केंद्र सरकार की ताकत को दिखाता है। हम एक तरह से दूसरे आपातकाल जैसे दौर से गुजर रहे हैं। किसी कारण से इसने दुनिया का ध्यान आकर्षित नहीं किया है।