सियासी फैसलों ने पैरोल-फरलो को बनाया मजाक और अपनों को राहत देने का कारगर हथियार

Ram Rahim Parole News : डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम दो महिला अनुयायियों से बलात्कार, डेरा प्रबंधक रंजीत सिंह और पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या सहित कई अन्य मामलों में दोषी साबित होने के बाद से जेल में है। इसके बावजूद उसका बाहर आना जेल नियमों का उल्लंघन माना जा रहा है।

Update: 2022-10-31 03:01 GMT

Ram Rahim Parole News : सियासी फैसलों ने पैरोल-फरलो को बनाया मजाक और अपनों को राहत देने का कारगर हथियार

पैरोल-फरलो के सियासी दुरुपयोग पर धीरेंद्र मिश्र की रिपोर्ट

Ram Rahim Parole News : दो रेप और दो मर्डर सहित कई अन्य मामलों में सजायाफ्ता कैदी व डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम 5 साल के अंदर पांच बार पैरोल ( Parole ) और फरलो ( furlough ) पर जेल से बाहर आ चुका है। पिछले एक साल के अंदर ही दो बार पैरोल पर जेल से बाहर आ चुका है। फरवरी 2022 में 21 दिनों के लिए और अब दूसरी बार अक्टूबर में 40 दिनों के लिए जेल से बाहर आया है। इससे पहले 2021 में भी राम रहीम दो बार पैरोल पर और एक बार फरलो पर बाहर आ चुका है। वर्तमान में आदमपुर विधानसभा सीट पर चुनाव से ठीक पहले उसे पैरोल पर जेल से बाहर आने की इजाजत देने के सरकार के फैसले को सियासी नजरिये से देखा जा रहा है।

मनोहर लाल खट्टर सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि राम रहीम को उसी समय परलो पर उसी समय छोड़ा जाता है जब वहां पर कोई-कोई न चुनाव हो। यानि हरियाणा सरकार ( Haryana Government ) सियासी लाभ उठाने के लिए बाबा हो बार-बार पैरोल पर छोड़ने की इजाजत देती है। भाजपा सरकार पर यह कभी न धुलने वाला धब्बा है।

इसी तरह बिलकिस बानो गैंग रेप ( Bilkis Bano ) मामले में भी सभी 11 आरोपियों को न्यूतम 998 दिन और अधिकतम 1576 दिन रिहाई से पहले पैरोल—और फरलो पर बाहर रहने का मिल चुका है। जबकि इनमें एक आरोपी मितेश ने तो पैरोल के दौरान ही एक महिला के साथ रेप की घटना को अंजाम देने की हिमाकत कर चुका है। उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज हुआ, लेकिन उसका कुछ नहीं बिगड़ा। इस मामले में मोदी और गुजरात सरकार सवालों के घेरे में है। अब लोग यह पूछ रहे हैं कि राम रहीम व अन्य रसूखदार सजायाफ्ता कैदियों को इतनी जल्दी-जल्दी पैरोल कैसे मिल रहा है।

हत्या, रेप के आरोपी राम रहीम से इतना प्यार क्यों

ताज्जुब तो तब होता है जब खुद को कट्टर ईमानदार बताने वाली पंजाब की आप सरकार में मंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता फौजा सिंह रेप केस में दोषी और पैरोल पर बाहर आये राम रहीम के पास दरबार लगाने पहुंच जाते हैं। पंजाब के फिरोजपुर स्थित राम रहीम के दरबार में फौजा सिंह उनसे मिलने पहुंचे थे। इस दौरान डेरा के पदाधिकारियों ने उनका स्वागत भी किया। दो दिन पहले हिमाचल सरकार में परिवहन मंत्री बिक्रम ठाकुर राम रहीम से मिल चुके हैं। उनकी इस मुलाकात पर वहां के सीएम जयराम ठाकुर बड़ी बेशर्मी से कहा है कि उन्हें इस बारे में जानकारी नहीं है। मामला यहीं तक सीमित नहीं है। हरियाणा सरकार पांच बार राम रहीम को पैरोल व फरलो पर छोड़ चुकी हैं

हरियाणा में पैरोल-फरलो के दुरुपयोग और सियासी इस्तेमाल को देखते हुए पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता एचसी अरोड़ा ने मुख्य सचिव को जारी नोटिस में कहा कि राज्य सरकार का रेप और हत्या के दोषी राम रहीम पर इतना प्यार लुटाना सरासर नियमों की अनदेखी है। इससे से तो साफ है कि हरियाणा की भाजपा सरकार राम रहीम को सत्संग करने और वीडियो बनाने की इजाजत देकर रेप और हत्या के दोषी के सामने झुक रही है। अधिवक्ता एचसी अरोड़ा सोमवार यानि 31 अक्टूबर को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में जनहित याचिका भी दायर करेंगे। उन्होंने हरियाणा के मुख्य सचिव से पैरोल रद्द करने, पैरोल के दौरान राम रहीम द्वारा बनाए जा रहे वीडियो को यू-ट्यूब से हटाने और आनलाइन सत्संग पर रोक लगाने की भी मांग की है।

लोकप्रियता हासिल करने के लिए राहत नहीं दे सकती है सरकार

एचसी अरोड़ा ने अपने नोटिस में यह भी कहा है कि यूपी के एक आश्रम में रहने के दौरान डेरा प्रमुख ने अपने नए गाने 'सादी नित दीवाली' का एक वीडियो भी जारी किया है। अरोड़ा ने इस गाने पर रोक लगाने की मांग की है। साथ ही कहा है कि हरियाणा सरकार राम रहीम को लोकप्रियता हासिल करने की अनुमति नहीं दे सकती।

आदमपुर से राम रहीम की रिहाई का क्या है लिंक

दरअसल, हरियाणा सरकार ने राम रहीम को इस बार आदमपुर विधानसभा उपचुनाव से ठीक जेल बाहर रहने की इजाजत दी है। आदमपुर में तीन नवंबर को उपचुनाव होने हैं। इससे पहले, डेरा प्रमुख राम रहीम को जून में एक महीने की पैरोल पर रिहा किया गया था और फरवरी में उसकी तीन सप्ताह की फर्लो मंजूर की गई थी। माना जा रहा है कि राम रहीम बागपत स्थित डेरा सच्चा सौदा आश्रम में ठहरेगा। वहीं से अपने भक्तों के जरिए आदमपुर उपचुनाव को प्रभावित करेगा। इस बात का आरोप विपक्षी दलों के नेता खट्टर सरकार पर लगाते रहे हैं।

डीसीडब्लू ने भी उठाए सवाल

दिल्ली महिला आयोग (DCW) की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने बलात्कार और हत्या के मामलों में दोषी ठहराए जाने के बाद जेल की सजा काट रहे गुरमीत राम रहीम सिंह को पैरोल देने पर हरियाणा सरकार की खिंचाई की है।

जानें, पैरोल और फरलो के बारे में सबकुछ

क्या होती है पैरोल

पैरोल एक कैदी को सजा के निलंबन के साथ रिहा करने की एक प्रणाली है। यह रिहाई सशर्त होती है। पैरोल पर जिम्मेदार अधिकारियों की रिपोर्ट के आधार पर छोड़ा जाता है। कैदी के लिहाज से पैरोल को एक सुधार प्रक्रिया माना जाता है। वहीं फरलो (furlough ) को कारागार प्रणाली को मानवीय बनाने की दृष्टि से पेश किया गया था। यह केवल कैदी को परिवार और सामाजिक संबंधों को बनाए रखने के नजरिए से दिया गया राहत भर है। पैरोल हासिल करना कैदी का अधिकार नहीं है। किसी भी कैदी को पैरोल या फरलो पर छोड़ने से इनकार किया जा सकता है।

भारत में यह प्रावधान 1894 के कारागार अधिनियम के तहत संचालित है। कई हत्याओं के या गैरकानूनी गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम के तहत आने वाले दोषी कैदी पैरोल के लिए पात्र नहीं माना जाता है। चूंकि कारागार, राज्य का विषय है, इसलिए विशेष राज्य सरकार का कारागार अधिनियम उन नियमों को परिभाषित करता है जिनके तहत पैरोल दी जाती है। राज्य सरकारों के पैरोल नियमों पर कैदियों की रिहाई के अपने नियम है। इस मामले में कारागार अधिकारी राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंपते हैं। उसके बाद सक्षम प्राधिकारी मानवीय विचारों पर पैरोल देने पर अंतिम निर्णय लेता है। यदि पैरोल खारिज कर दी जाती है, तो दोषी उच्च न्यायालय में सक्षम प्राधिकारी के आदेश को चुनौती दे सकता है। नियमित पैरोल के अलाव कारागार अधीक्षक भी उभरते मामलों में सात दिनों की अवधि के लिए पैरोल दे सकता है। पैरोल पर जेल से बाहर निकलने के लिए एक व्यक्ति को 1894 के जेल अधिनियम और 1900 के कैदी अधिनियम के तहत अधिनियम कानून के जेल प्रशासन के समक्ष आवेदन करना होता है। पैरोल दो तरह की होती हैं। कस्टडी और रेगुलर पैरोल।

कुल मिलाकर पैरोल आपराधिक न्याय प्रणाली का एक अहम पहलू है। अच्छे व्यवहार के बदले और एक सजा की समाप्ति से पहले एक कैदी की अस्थायी या स्थायी रिहाई पैरोल कहा जाता है। यानि सजा की अवधि पूरी न हुई हो या सजा की अवधि समाप्त होने से पहले उस व्यक्ति को अस्थाई रूप से जेल से रिहा कर दिया जाए तो उसे पैरोल कहा जाता है। यह व्यक्ति के अच्छे आचरण को नजर में रखते हुए किया जाता है।

कौन उठा सकता है पैरोल-फरलो का लाभ

एक दोषी को छूट में बिताए गए किसी भी समय को छोड़कर कम से कम एक साल जेल में रहने के बाद ही इसके लिए आवेदन कर सकता है। इस दौरान अपराधी का व्यवहार अच्छा होना चाहिए। अपराधी को अपनी पिछली रिहाई के किसी भी नियम और प्रतिबंध को नहीं तोड़ना चाहिए। पिछली पैरोल समाप्त होने के बाद से कम से कम छह महीने बीत जाने चाहिए। अपराधी को पैरोल की अवधि के दौरान कोई अपराध नहीं करना चाहिए। असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर जिन अपराधियों ने कम से कम एक वर्ष जेल की सजा काट ली है वो अधिकतम एक महीने के लिए नियमित पैरोल के पात्र हैं।

आपात स्थिति में कस्टडी पैरोल

आपातकालीन स्थिति में कस्टडी पैरोल प्रदान की जाती है। विदेशियों और मौत की सजा काटने वालों को छोड़कर सभी अपराधी 14 दिनों के लिए आपातकालीन पैरोल के लिए पात्र हो सकते हैं। जैसे कि परिवार में किसी की मृत्यु या उनका विवाह। ऐसे समय पर आपात पैरोल दी जाती है।

पैरोल का आधार

परिवार के किसी सदस्य की गंभीर बीमारी, परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु या दुर्घटना, परिवार के सदस्य की शादी, दोषी की पत्नी बच्चे को जन्म देती है। अपराधी को जेल की सजा मिलने से पहले उसका किसी प्रकार का सरकारी कार्य अधूरा रह गया हो तो उस सरकारी कार्य को पूरा करने के लिए पैरोल पर रिहा किया जाता है। यदि अपराधी अपनी संपत्ति की वसीयत बनाना चाहता है तो उसे पैरोल मिल सकती है। यदि अपराधी को अपनी संपत्ति बेचनी हो तो उसके लिए कैदी पैरोल ले सकता है। यदि कैदी किसी ऐसे रोग से ग्रसित है जिसका इलाज जेल के चिकित्सालय में नहीं हो सकता तो इलाज के लिए कैदी पैरोल ले सकता है।

वंश बढ़ाने के लिए भी पैरोल की व्यवस्था

यदि कैदी की कोई भी संतान न हो, ऐसे में अपराधी और उसकी पत्नी की सहमति के आधार पर वंश वृद्धि या संतान प्राप्ति के लिए भी पैरोल पर छोड़ा जा सकता है। हाल के दिनों हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में संतान प्राप्ति के लिए पैरोल पर छोड़ने की मांग ज्यादा होने लगी है।

ये है गाइडलाइन

सामान्य तौर पर जेल में बंद कैदियों को पैरोल और फरलो (छुट्टी) पर कुछ दिनों के लिए रिहाई मिल जाती है लेकिन गृह मंत्रालय के 2016 की संशोधित गाइडलाइंस के मुताबिक वैसे कैदी जिनकी रिहाई से समाज या किसी खास व्यक्ति की सुरक्षा को खतरा हो, उनको पैरोल और फरलो देने पर रोक है। किसी कैदी को पैरोल या फरलो पर छोड़ा जाना चाहिए या नहीं यह कैदी की आचरण और उनके व्यवहार निर्भर करता है। आतंकवाद और अन्य जघन्य अपराधों में शामिल अपराधियों को जेल से बाहर जाने की मंजूरी नहीं मिलनी चाहिए। यौन अपराधों, हत्या, बच्चों के अपहरण और हिंसा जैसे गंभीर अपराधों के मामलों में अधिकारियों की एक समिति द्वारा तथ्यों को ध्यान में रखकर ही फैसला किया जा सकता है।

गृह मंत्रालय ने आदर्श जेल मैनुअल- 2016

वो कैदी जिनकी मौजूदगी समाज में खतरनाक मानी जाए या फिर जिलाधिकारी या पुलिस अधीक्षक द्वारा जिनके होने से शांति व कानून-व्यवस्था के बिगड़ने की आशंका जाहिर की हो, उनकी रिहाई पर विचार नहीं किया जाना चाहिए। ऐसे कैदी जिन्हें खतरनाक माना जाता है या जो हमला, दंगे भड़काने, विद्रोह या फरार होने की कोशिश करने जैसी जेल हिंसा संबंधी गंभीर अपराध में शामिल हों या जिन्हें जेल की सजा का गंभीर उल्लंघन करते हुए पाया गया हो, उन्हें रिहाई के योग्य नहीं माना जाना चाहिए।

डकैती, आतंकवाद संबंधी अपराध, फिरौती के लिए अपहरण, मादक द्रव्यों की कारोबारी मात्रा की तस्करी जैसे गंभीर अपराधों के दोषी कैदी और ऐसे कैदी जिनके पैरोल या फरलो की अवधि पूरा कर वापस लौटने पर जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को संशय हो, उन्हें भी रिहा नहीं किया जाना चाहिए। कैदियों की रिहाई के बाद फिर से अपराध में संलिप्त होने का मामला सामने आने के बाद से पैरोल या फरलो पर छोड़ने को गंभीरता से लिया जा रहा है, लेकिन इस नियम का पालन सियासी हित या प्रभावी कैदियों के मामलों में नहीं हो रहा है।

क्या है गुरमीत राम रहीम का मामला

गुरमीत राम रहीम डेरा के सिरसा स्थित मुख्यालय में अपने आश्रम पर दो महिला अनुयायियों से बलात्कार के दोष में 20 साल कारावास की सजा भुगत रहा है। उसे अगस्त 2017 में पंचकूला में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की एक विशेष अदालत ने दोषी ठहराया था। राम रहीम 2017 में बलात्कार के मामलों में दोषी ठहराए जाने के बाद से ही हरियाणा के रोहतक की सुनारिया जेल में बंद है। गुरमीत राम रहीम को 2002 में डेरा प्रबंधक रंजीत सिंह की हत्या की साजिश रचने के लिए भी पिछले साल चार अन्य लोगों के साथ दोषी ठहराया गया था। डेरा प्रमुख और तीन अन्य लोगों को 2019 और 16 साल पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या मामले में भी दोषी करार दिया गया था।

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