'आरक्षण तय करना संसद का काम है राज्य का नहीं' की टिप्पणी के साथ उत्तराखंड मूल की महिलाओं के आरक्षण पर हाईकोर्ट ने लगा दिया ब्रेक
30% Horizontal reservation Uttarakhand women : उत्तराखंड सरकार द्वारा 2006 के एक शासनादेश के माध्यम से जनरल कोटे से उत्तराखंड की मूल महिलाओं को यह 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दे रही थी, जिस पर उच्च न्यायालय ने अब एक याचिका पर सुनवाई करते हुए रोक लगा दी है....
30% Horizontal reservation Uttarakhand women : उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की परीक्षा में उत्तराखंड मूल की महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिए जाने के शासनादेश पर नैनीताल उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा कि आरक्षण तय करना राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र की बात है। यह अधिकार भारत की संसद को है। कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार और लोक सेवा आयोग से 7 अक्टूबर तक जवाब भी मांगा है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 7 अक्टूबर को होगी।
मालूम हो कि उत्तराखंड सरकार द्वारा 2006 के एक शासनादेश के माध्यम से जनरल कोटे से उत्तराखंड की मूल महिलाओं को यह 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दे रही थी, जिस पर उच्च न्यायालय ने अब एक याचिका पर सुनवाई करते हुए रोक लगा दी है। हरियाणा की पवित्रा चौहान समेत उत्तर प्रदेश की महिला अभ्यर्थियों ने कोर्ट में यह याचिका दायर करते हुए आयोग की अक्टूबर में तय मुख्य परीक्षा में बैठने की अनुमति मांगी गई थी।
याचिकाकर्ताओं के अनुसार उत्तराखंड लोक सेवा आयोग ने 31 विभागों के 224 खाली पदों के लिए पिछले साल 10 अगस्त को विज्ञापन जारी किया था। राज्य लोक सेवा आयोग की ओर से डिप्टी कलेक्टर समेत अन्य उच्च पदों के लिए हुई उत्तराखंड सम्मिलित सिविल अधीनस्थ सेवा की प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम 26 मई 2022 को आया था। परीक्षा में अनारक्षित श्रेणी की दो कट आफ लिस्ट निकाली गई थी। जिसमें उत्तराखंड मूल की महिला अभ्यर्थियों की कट आफ 79 थी। याचिकाकर्ता महिलाओं का कहना था कि उनके अंक 79 से अधिक थे, मगर उन्हें अयोग्य करार दे दिया गया और वो आयोग की परीक्षा से बाहर हो गईं थी।
इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में सरकार के 18 जुलाई 2001 और 24 जुलाई 2006 के आरक्षण दिए जाने वाले शासनादेश को चुनौती देते हुए कहा था कि सरकार का यह शासनादेश के माध्यम से दिए जाने वाला आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 14, 16, 19 और 21 के विपरीत है। संविधान के अनुसार कोई भी राज्य सरकार जन्म एवं स्थायी निवास के आधार पर आरक्षण नहीं दे सकती। यह अधिकार केवल भारत की संसद को है। राज्य केवल आर्थिक रूप से कमजोर व पिछड़े तबके को आरक्षण दे सकता है। इन्हीं तर्कों के आधार पर याचिका में इस आरक्षण को निरस्त करने की मांग की गई थी।
मामले को सुनने के बाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने सरकार के 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिए जाने वाले साल 2006 के शासनादेश पर रोक लगाते हुए याचिकाकर्ताओं को परीक्षा में बैठने की अनुमति दे दी है। कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार और लोक सेवा आयोग से 7 अक्टूबर तक जवाब भी मांगा है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 7 अक्टूबर को होगी।