श्रम-सुधारों के नाम पर कामगार वर्ग को धकेला जा रहा शोषण की खाई में, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और यूनियनों ने किया प्रदर्शन

वर्तमान में एक दिन में 9 घंटे से ज्यादा काम और सप्ताह में 48 घंटे से ज्यादा का काम ओवरटाइम कहलाता है। लेकिन संहिता लागू होने के बाद अब यह कार्य पूरक कार्य और अनिरन्तर काम कहलाया जाएगा.....

Update: 2021-04-07 05:45 GMT

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जनज्वार डेस्क। अप्रैल में भारत सरकार के द्वारा 4 लेवर कोड (श्रम संहिताएं) लागू करने की तैयारी अंतिम चरण में है। चारों संहिताओं को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद अधिसूचित किया जा चुका है। इन्हें अमल में लाने के लिये जरूरी नियमों को अधिसूचित किया जा रहा है। भारत सरकार के श्रम मंत्रालय द्वारा श्रम सुधारों के नाम पर 44 मौजूदा केंद्रीय श्रम कानूनों को खत्म कर 4 श्रम संहिता बनाई गई हैं जिन्हें अप्रैल में लागू किया जाना है। यह 4 संहिताएं मजदूरी पर श्रम संहिता, औद्योगिक संबंधों पर श्रम संहिता, सामाजिक सुरक्षा पर श्रम संहिता और स्वास्थ्य एवं कार्यस्थल की दशाओं पर श्रम संहिता हैं। श्रम संहिताओ को लागू करने हेतु सरकार का तर्क है कि इससे श्रम कानून तर्कसंगत व सरल हो जाएंगे। वही मजदूरों के लिए काम करने वाले श्रम संगठनों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, यूनियनों ने इन चारों श्रम संहिताओं का पुरजोर विरोध किया है। श्रमिक संगठनों के हिसाब से इन श्रम संहिताओं के द्वारा सरकार देशी-विदेशी कंपनियों के लिए मजदूरों के श्रम को सस्ती से सस्ती दरों पर और मनमानी शर्तों पर उपलब्ध कराना चाहती है।

क्या प्रावधान किये गये हैं इन श्रम-संहिताओं में-

1- मजदूरी पर संहिता

इस श्रम संंहिता के लागू होने के साथ ही चार पुराने कानून वेतन भुगतान अधिनियम 1936, न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948, बोनस भुगतान अधिनियम 1965 और समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 को खत्म कर दिया गया है। इसके अंतर्गत पूरे देश के लिए वेतन का न्यूनतम तल स्थल निर्धारित किया जाएगा। इस संबंध में सरकार का कहना है कि एक त्रिपक्षीय समिति इसका निर्धारण करेगी। सरकार के श्रम मंत्री संतोष गंगवार पहले ही नियोक्ताओं के प्रति वफादारी दिखाते हुए प्रतिदिन के लिए तल स्तरीय मजदूरी 178 रूपये करने की घोषणा कर चुके हैं। इस न्यूनतम मजदूरी के हिसाब से महीने में 26 दिन काम करने वाले श्रमिक की मासिक आमदनी महज 4628 रूपये होगी। जबकि आर्थिक सर्वेक्षण 2017 में सुझाया गया न्यूनतम वेतन 18000 रूपये मासिक है। सरकार द्वारा न्यूनतम मजदूरी तय करने हेतु गठित की गई समिति को लगता है कि एक श्रमिक को 2700 नही 2400 कैलोरी ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस संंहिता में रोजगार सूची (एंप्लॉयमेंट शेड्यूल) को हटा दिया गया है। जो श्रमिकों को कुशल, अर्द्धकुशल और अकुशल की श्रेणी में विभाजित करती थी।

वर्तमान में एक दिन में 9 घंटे से ज्यादा काम और सप्ताह में 48 घंटे से ज्यादा का काम ओवरटाइम कहलाता है। लेकिन संहिता लागू होने के बाद अब यह कार्य पूरक कार्य और अनिरन्तर काम कहलाया जाएगा। इसके तहत ओवरटाइम के लिए श्रमिकों को दी जाने वाली अतिरिक्त मजदूरी पर संकट आ गया है। इस संहिता में सेल्फ सर्टिफिकेशन का भी प्रावधान है। इसके तहत मालिक खुद ही अपने को सर्टिफिकेट दे सकता है कि उसके कारखाने में सारे श्रम कानूनों का पूरा पालन हो रहा है। समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 सुनिश्चित करता था कि नौकरी की शर्तों और वेतन में किसी तरह का लिंग भेद ना हो मगर अब इस तथ्य को पूरी तरह हटा दिया गया है। मालिक स्त्री मजदूरों के साथ भेदभाव कर सकते हैं।

2- व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यस्थल स्थिति संहिता

इस संहिता में असंगठित मजदूरों को कोई जगह ही नहीं दी गई है। 10 से ज्यादा मजदूरों को काम पर रखने वाले कारखानों पर ही यह लागू होगा। इसमें सुरक्षा समिति बनाए जाने को सरकार के विवेक पर छोड़ दिया गया है जबकि पहले कारखाना अधिनियम 1948 के हिसाब से यह अनिवार्य था। इस संहिता के मुताबिक अगर कोई ठेकेदार मजदूरों के लिए तय किए गए काम के घंटे, वेतन और अन्य जरूरी सुविधाओं की शर्तें पूरी नहीं कर पाता तब भी उस ठेकेदार को "कार्य-विशिष्ट लाइसेंस" दिया जा सकता है।

3- सामाजिक सुरक्षा संहिता

इस कोड में त्रिपक्षीय वार्ता और मजदूर प्रतिनिधियों की भूमिका को खत्म कर दिया गया है। इनके स्थान पर मजदूरों के कल्याण की नीतियां बनाने और लागू कराने वाली संस्थाओं के रूप में राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा परिषद, केंद्रीय बोर्ड और राज्यों के बोर्ड की बात रखी गई है जिसमें ट्रेड यूनियनों की कोई भूमिका नहीं होगी। प्रसूति के ठीक पहले और बाद में स्त्रियों से काम कराने पर रोक तो लगाई गई है लेकिन इसी में आगे कहा गया है कि 'जो स्त्री अपनी प्रसूति के ठीक पहले के 12 महीनों के दौरान कम से कम 80 दिनों तक किसी प्रतिष्ठान में काम कर चुकी होगी वह मातृत्व लाभ पाने की हकदार होगी'। इस प्रावधान के अंतर्गत अधिकतर महिला मजदूर इसके दायरे से बाहर हो जायेंगी।

4- औद्योगिक संबंध संहिता

इस संहिता को लागू करने के साथ ही तीन पुराने श्रम कानूनों औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947, ट्रेड यूनियन अधिनियम 1926 और औद्योगिक और रोजगार अधिनियम 1946 को हटा दिया गया है। इस संहिता के प्रावधानों के अनुसार जिन कारखानों में 300 तक मजदूर है उन्हें ले-ऑफ या छटनी करने के लिए सरकार की इजाजत लेने की जरूरत नहीं होगी। मैनेजमेंट को 60 दिन का नोटिस दिए बिना मजदूर हड़ताल पर नहीं जा सकते। अगर किसी औद्योगिक न्यायाधिकरण में उनके मामले की सुनवाई हो रही है तो फैसला आने तक मजदूर हड़ताल नहीं कर सकते। हड़ताल करना अब असम्भव हो जाएगा। यदि किसी कंपनी में 300 से कम मजदूर हैं तो कंपनी हड़ताल के नोटिस के 60 दिनों के भीतर आसानी से छटनी करके नए लोगों की भर्ती कर सकती है।

इसके साथ ही अब कंपनियों को मजदूरों को किसी भी अवधि के लिए ठेके पर नियुक्त करने का अधिकार मिल गया है, इसे फिक्स्ड टर्म एंप्लॉयमेंट का नाम दिया गया है। इसके द्वारा पूंजीपति, मजदूरों को कानूनी तरीके से 3 महीने, 6 महीने या साल भर के लिए ठेके पर रख सकता है और फिर उसके बाद काम से बाहर निकाल सकता है।

इस तरह श्रम सुधार और कानूनों को सरल बनाने के नाम पर सरकार ने देश के 60 करोड़ के कामगार वर्ग के साथ धोखा किया है। सरकार ने इन श्रम संहिताओं के नाम पर मजदूरों के अधिकारों का दमन करते हुये पूंजीपतियों, फैक्ट्री मालिकों को मजदूरों का शोषण करने की छूट दे दी है। नव-उदारीकरण के इस दौर में सरकार कारोबार की सुगमता के नाम पर देश भर के कामगारों के शोषण को वैध रूप देने में लगी हुई है।

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