नागरिकों की जान बचाने की जगह मोदी कर रहे आलोचकों का दमन : मशहूर मेडिकल जर्नल द लैंसेट
व्यापक-संक्रमण के जोखिमों के बारे में चेतावनी के बावजूद सरकार ने धार्मिक आयोजनों की अनुमति दी, देशभर के लाखों लोगों को आकर्षित करने के लिए राजनीतिक रैलियों का आयोजन किया गया, इनमें कोविड-19 के संक्रमण को रोकने के उपायों में कमी थी...
दिनकर कुमार की टिप्पणी
जनज्वार। दुनिया के सबसे मशहूर मेडिकल जर्नल द लैंसेट ने अपने 8 मई के अंक के संपादकीय में पीएम मोदी की आलोचना करते हुए लिखा है कि उनका ध्यान ट्विटर पर अपनी आलोचना को दबाने पर ज़्यादा और कोविड-19 महामारी पर काबू पाने पर कम है।
अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सा पत्रिका 'द लैंसेट' ने 8 मई को अपने एक संपादकीय में कहा है कि भारत में कोविड-19 को नियंत्रित करने में अपनी शुरुआती सफलताओं के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने "आत्म-उकसावे वाली राष्ट्रीय तबाही" की। कोरोना वायरस महामारी से निपटने में सरकार की अत्यधिक आलोचना के बाद, इस व्यापक रूप से सम्मानित प्रकाशन ने कहा कि संकट पर काबू पाने में भारत की सफलता पीएम मोदी के प्रशासन द्वारा अपनी गलतियों को स्वीकारने पर निर्भर करेगी।
पत्रिका ने कहा कि संकट के दौरान आलोचना और खुली चर्चा के प्रयास में मोदी का कामकाज माफ करने योग्य नहीं है। लैंसेट के संपादकीय में कहा गया है कि भारत ने कोविड-19 को नियंत्रित करने में अपनी शुरुआती सफलताओं पर पानी फेर दिया।
अप्रैल तक कई महीने गुजरने पर भी सरकार की कोविड-19 टास्क फोर्स पूरी नहीं हुई थी। उस निर्णय के परिणाम आज हमारे सामने स्पष्ट हैं। भारत को अब जब संकट बढ़ रहा है, अपने टास्क फोर्स का पुनर्गठन करना चाहिए।
द लैंसेट ने कहा है कि उस प्रयास की सफलता सरकार पर निर्भर करेगी कि वह अपनी गलतियों के लिए जिम्मेदार है। वह जिम्मेदार नेतृत्व और पारदर्शिता अपनाती है, और एक सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया को लागू करती है।
पत्रिका ने सरकार की उस धारणा को हवा कर दिया, जिसमें यह जताया जा रहा था कि भारत ने कोविड-19 को कई महीनों तक कम मामलों के बाद हरा दिया था, जबकि दूसरी लहर के खतरों की बार-बार चेतावनी दी जाती रही और कोरोना नए स्ट्रेन भी उभरते गए। मार्च के शुरू में कोविड-19 के मामलों की दूसरी लहर शुरू होने से पहले भारतीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने घोषणा की थी कि भारत महामारी के "एंडगेम" में था।
लैंसेट ने कहा कि "व्यापक-संक्रमण के जोखिमों के बारे में चेतावनी के बावजूद, सरकार ने धार्मिक आयोजनों की अनुमति दी। देश भर के लाखों लोगों को आकर्षित करने के लिए राजनीतिक रैलियों का आयोजन किया गया। इनमें कोविड-19 के संक्रमण को रोकने के उपायों में कमी थी।
केंद्रीय स्तर पर भारत की टीकाकरण नीति को "पाखण्ड" और "अलग-थलग" बताते हुए, पत्रिका ने कहा कि सरकार ने राज्यों के साथ नीति में बदलाव पर चर्चा किए बिना अचानक बदलाव किया और दो प्रतिशत से कम जनसंख्या का टीकाकरण कर सकी।
कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने महामारी को नियंत्रित करने की कोशिश करने की तुलना में ट्विटर पर आलोचना को हटाने पर अधिक ध्यान दिया है। इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन का अनुमान है कि भारत में एक अगस्त तक कोरोना से 10 लाख लोगों की मौत हो जाएगी। यदि ऐसा होने वाला है तो मोदी सरकार इस आत्मघाती राष्ट्रीय आपदा की जिम्मेदार होगी।
संपादकीय ने आगे एक दोतरफा रणनीति का सुझाव दिया है - पहला, त्रुटिपूर्ण टीकाकरण अभियान को तर्कसंगत बनाया जाए और नियत गति से लागू किया जाए। इस राह में दो तात्कालिक अड़चनें हैं, टीके की आपूर्ति में वृद्धि (जिनमें से कुछ विदेशों से आनी चाहिए) और एक वितरण अभियान स्थापित करना जो न केवल शहरी, बल्कि ग्रामीण और गरीब नागरिकों को भी कवर कर सकता है, जो 65% से अधिक जनसंख्या का गठन करते हैं (अधिक 800 मिलियन लोग) लेकिन सार्वजनिक स्वास्थ्य और प्राथमिक देखभाल सुविधाओं की कमी का सामना करते हैं।
सरकार को स्थानीय और प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों के साथ काम करना चाहिए जो अपने समुदायों को जानते हैं और टीका के लिए एक समान वितरण प्रणाली बना सकते हैं। संपादकीय में कहा गया है कि सरकार को समयबद्ध तरीके से सटीक आंकड़े प्रकाशित करने चाहिए, और जनता को स्पष्ट रूप से बताना चाहिए कि क्या हो रहा है और महामारी को नियंत्रित करने के लिए क्या आवश्यक है।
जर्नल के मुताबिक संक्रमण को बेहतर तरीक़े के समझने और फैलने से रोकने के लिए जीनोम सीक्वेंसिंग को बढ़ावा देना होगा।
"लोकल स्तर पर सरकारों ने संक्रमण रोकने के लिए क़दम उठाने शुरू कर दिए हैं, लेकिन ये सुनिश्चित करना की लोग मास्क पहनें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें, भीड़ इकट्ठा न हो, क्वारंटीन और टेस्टिंग हो, इन सबमें केंद्र सरकार की अहम भूमिका होती है।"
संपादकीय के अनुसार, "चेतावनी के बावजूद सरकार ने धार्मिक आयोजन होने दिए जिनमें लाखों लोग जुटे, इसके अलावा चुनावी रैलियां भी हुईं।"
जर्नल में सरकार के टीकाकरण अभियान की भी आलोचना की गई। लैंसेट ने लिखा, "केंद्र के स्तर पर टीकाकरण अभियान भी फेल हो गया। केंद्र सरकार ने टीकाकरण को बढ़ाने और 18 साल से अधिक उम्र के सभी लोगों को टीका देने के बारे में राज्यों से सलाह नहीं ली और अचानक पॉलिसी बदल दी जिससे सप्लाई में कमी हुई और अव्यवस्था फैली।"
जर्नल के मुताबिक़ महामारी से लड़ने के लिए केरल और ओडिशा जैसे राज्य बेहतर तैयार थे। वो ज़्यादा ऑक्सीजन का उत्पादन कर दूसरे राज्यों की भी मदद कर रहे हैं। वहीं महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश कोरोना की दूसरी लहर के लिए तैयार नहीं थे और इन्हें ऑक्सीजन,अस्पतालों में बेड और दूसरी ज़रूरी मेडिकल सुविधाओं यहां तक की दाह-संस्कार के लिए जगह की कमी से जूझना पड़ा।
लैंसेट में लिखा गया कि कुछ राज्यों ने बेड और ऑक्सीजन की डिमांड कर रहे लोगों के ख़िलाफ़ देश की सुरक्षा से जुड़े कानूनों का इस्तेमाल किया।
लैंसेट की इस रिपोर्ट का हवाला देकर विपक्ष ने सरकार पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। कांग्रेस के नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने ट्विटर पर लिखा, "लैंसेट के संपादकीय के बाद, अगर सरकार में शर्म है, को उन्हें देश से माफ़ी मांगनी चाहिए।"
टीएमसी की सांसद महुआ मोइत्रा ने लिखा, "खुद से लाई नई एक राष्ट्रीय आपदा, ये कहना है लैंसेट का। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बाबा रामदेव को लगता है कि आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं।"