नरसंहार को सेलिब्रेट करता देश, Lakhimpur Kheri violence के बाद PM मोदी ने की अमृत महोत्सव में भागीदारी
सरकार प्रायोजित अपराध और हत्या को दबाने का सिलसिला गुजरात ने लम्बे समय तक भुगता है, और आज भी एक बड़ा हिस्सा उसे भुगत रहा है...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
जनज्वार। इन दिनों देश प्रधानमंत्री मोदी के सपनों का न्यू इंडिया (New India of PM's Dream) बन गया है – एक सपना जिसे साकार करने नरेंद्र मोदी वर्ष 2014 में और फिर 2019 में प्रधानमंत्री की गद्दी पर आसीन हुए। वर्ष 2014 के बाद तो प्रधानमंत्री ने अपने सपनों के न्यू इंडिया की आधारशिला रखी थी, पर 2019 के बाद से तो इसका वास्तविक स्वरूप अब दुनिया देख रही है।
दुनिया में नरसंहार (massacre) बहुत से नेता करते हैं, पर हरेक नरसंहार पर एक उत्सव केवल हमारे देश में मनाया जाता है। जिस दिन लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri) में किसानों को देश के गृह राज्यमंत्री की गाड़ी ने कुचला और रौंदा, उसके अगले दिन प्रधानमंत्री जी इत्मीनान से अमृत महोत्सव (Amrit Mahotsav) मना रहे थे और उस राज्य की महिलाओं का गुणगान कर रहे थे, जहां देश के किसी भी राज्य की तुलना में अधिक बलात्कार होते हैं और जो राज्य महिलाओं पर किये गए अपराधों के सन्दर्भ में देश में दूसरे स्थान पर है।
मोदीराज, जो बीस वर्षों में गुजरात से होते हुए नई दिल्ली तक पहुँच गया, में हिंसा तो खुलेआम होती ही है, पर केंद्र या राज्य के सभी मंत्रियों की भाषा भी हिंसक हो चली है। एक ऐसा देश जहां हरेक कातिल चिल्ला-चिल्ला कर कहता है कि मैंने क़त्ल किया है और मैं आगे भी करूंगा – तुम्हें जो करना है कर लो, यदि मैंने तुम्हें जिन्दा छोड़ दिया तो।
प्रधानमंत्री जी ने हाल में ही किसी इंटरव्यू में कहा था कि उन्हें आलोचक पसंद है, पर अब आलोचक नहीं मिलते, केवल विरोधी मिलते हैं। यह वाक्य जरूर उन्होंने किसी विद्वान का उठाकर ही कहा होगा, क्योंकि इतनी गूढ़ बातें करने के पहले उन्हें ये जानना भी जरूरी है कि आलोचना केवल उसी की की जाती है जो उसके योग्य हो। प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठना, धाराप्रवाह झूठ बोलना, जुमले और दूसरों पर अश्लील फब्तियां कसना और डिज़ाइनर कपड़े पहन लेने भर से कोई आलोचना योग्य बन जाए, यह जरूरी नहीं है।
प्रधानमंत्री समेत बीजेपी के सभी मंत्री कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेताओं के लिए मां-बेटा, भाई-बहन जैसे जुमले खूब इस्तेमाल करते हैं और यह उन्हें सामान्य राजनीतिक भाषा (political language) नजर आती है। वैसे प्रधानमंत्री जी को तो दीदी, ओ दीदी भी बड़ी शिष्ट भाषा नजर आयी थी। पर, यही सारे नेता एक कातिल बाप-बेटे के बारे में चुप्पी साध लेते हैं।
परिवारवाद की लगातार आलोचना करने वाले एक केन्द्रीय मंत्री की गाड़ी बेटे द्वारा सेना के टैंक की तरह चलाये जाने पर खामोश हैं। उत्तर प्रदेश पुलिस और पीएसी (Uttar Pradesh Police and PAC) जैसी क्रूर और हिंसक बल तो दुनिया में कहीं भी नहीं है, म्यांमार (Myanmar) की सेना ने भी नरसंहार में इतनी हत्याए नहीं की होंगीं जितनी उत्तर प्रदेश पुलिस एक महीने में बेहिचक कर डालती है।
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान (Taliban in Afghanistan) जब नागरिकों की ह्त्या करते हैं तब एक बड़ा समाचार बनता है, जो हमारे देश में भी दिखाया जाता है, पर उत्तर प्रदेश में पुलिस और प्रशासन द्वारा लगातार की जाने वाली जघन्य हत्याएं मीडिया से भी गायब कर दी जाती हैं। जिस दिन लखीमपुर खीरी में सरकार और पुलिस प्रायोजित नरसंहार (Government and Police sponsored Massacre) का आयोजन किया गया था, उसी दिन अफ़ग़ानिस्तान भी इस्लामिक स्टेट (Islamic State) ने एक मस्जिद में बम विस्फोट कर 4 लोगों को मार डाला था – पर यह घटना उग्रवाद में दर्ज हो गयी और गाड़ी से कुचलकर शांतिपूर्ण आन्दोलन करने वाले किसानों को रौदना निश्चित तौर पर बीजेपी समर्थकों में और मीडिया में राष्ट्रवाद (Nationalism) का नया उफान पैदा कर गयी। यही प्रधानमंत्री का विकास है और सपनों का न्यू इंडिया भी।
हरेक हत्या या नरसंहार के बाद पूरा घटनाक्रम एक जैसा ही चलता है। पुलिस कुछ नहीं देखती, पुलिस को कुछ पता नहीं होता, पुलिस एफ़आईआर या शिकायत नहीं दर्ज करती, फिर भी पुलिस हरेक सबूत को मिटाने में और गुनाहगारों को बचाने में जुट जाती है। मृतकों का आनन्-फानन में पोस्टमार्टम कराकर दफना दिया जाता है और इसकी रिपोर्ट किसी को दिखाई नहीं जाती।
सबसे हास्यास्पद कदम जो बार-बार दोहराया जाता है – क़ानून व्यवस्था का हवाला देकर विपक्षी नेताओं को नजरबन्द करना, उनके साथ मारपीट करना और दूसरी तरफ क़ानून-व्यवस्था बिगाड़ने वालों को छुट्टा घूमने देना। फिर चार-पांच दिनों बाद मीडिया और बीजेपी आईटी सेल द्वारा जब मोर्फेड वीडियो (Morphed video produced by Media and IT cell of BJP) का उत्पादन शुरू होता है तब पुलिस अधिकारी चुनिन्दा पत्रकारों को बुलाकर उनके सामने गंभीरता से नौटंकी करते हैं और इसके आधार पर पीड़ितों को जेल में ठूंस डालते हैं और हत्यारे को आजाद।
इसके बाद मुख्यमंत्री एक भव्य समारोह कर ऐसे वहशी पुलिसवालों को उपहार देते हैं और ये पुलिस वाले फिर से ऐसे किसी काण्ड को अंजाम देने निकल जाते हैं। अंत में प्रधानमंत्री जी और गृहमंत्री आते हैं और ऐसी क़ानून-व्यवस्था (Law and Order) को देश में सबसे अच्छा बताते हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि इसबार नरसंहार में भागीदारी गृहमंत्री के सहायक मंत्री की ही है, जो लगातार चहेते टीवी चैनलों पर बैठकर खुलेआम जनता के सामने झूठ परोस रहे हैं।
पूरे घटनाक्रम में परम्परागत तौर कुछ और भी शामिल है। किसी उच्च न्यायालय या फिर सर्वोच्च न्यायालय (High Court or Supreme Court) द्वारा मामले को उठाना, सरकार की भर्त्सना करना, लोकतंत्र पर उपदेश देना और मामले को हमेशा के लिए दफ़न कर देना। दूसरी तरफ पूरे सबूत के साथ सरकार को कटघरे में खड़े करने वाले विपखी नेता का चरित्र हनन और उसपर ईडी या सीबीआई (ED/CBI) का छापा, जिसे अब प्यार से सर्वे कहा जाता है। मंत्री जी चिल्ला-चिल्ला कर हिंसक बातें करते हैं और पुलिस तालियाँ बजाती है, दूसरी तरफ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं (Human Right Activists) के मौन पर भी पुलिस भड़काऊ भाषण का आरोप लगाकर गर्व से जेल में बंद कर देती है।
यह सब प्रधानमंत्री मोदी के न्यू इंडिया का नया और अनदेखा लोकतंत्र है, जिसे आप मोदी लोकतंत्र कह सकते हैं। वैसे यह सब इतना नया भी नहीं है, सरकार प्रायोजित अपराध और हत्या को दबाने का सिलसिला गुजरात ने लम्बे समय तक भुगता है, और आज भी एक बड़ा हिस्सा उसे भुगत रहा है। गुजरात में मानवाधिकार हनन के मामलों को दबाने के लिए अच्छे इंफ्रास्ट्रक्चर और बड़े उद्योगों का सब्जबाग आज तक दिखाया जाता है। तथाकथित वाइब्रेंट गुजरात के नारे के पीछे जनता के आंसू और खून को छुपा दिया गया था, जैसे ट्रम्प के आगमन पर झुगी-झोपड़ियों के आगे दीवार खड़ी की गयी थी। अब यही तमाशा उत्तर प्रदेश का नया सामान्य है, जहां हरेक सरकारी बयान में विदेशी पूंजीनिवेश, अखिलेश यादव के समय की इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को अपनी उपलब्धियां बताकर और पुराने सरकारों के समय के क़ानून व्यवस्था को बताकर वर्तमान मानवाधिकार हनन को दबा दिया जाता है।
उत्तर प्रदेश की घटना को लगभग सभी विदेशी अखबारों ने प्रमुखता से प्रकाशित किया है। अलजजीरा (AlJazeera) ने 3 अक्टूबर को, India Farmers Killed after Violence Erupts during Protest, शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया था। इसमें पूरा घटना क्रम था और राहुल गांधी के "नरसंहार" वाले बयान का जिक्र भी था। किसानों के प्रदर्शन के सन्दर्भ में हरयाणा का भी जिक्र था, जिसमें एक पुलिस अधिकारी ने जवानों को कहा था कि "कोई बाख कर नहीं जाना चाहिए, उनके सर फोड़ दो, उनके हाथ-पैर तोड़ दो"।
इसके अगले दिन 4 अक्टूबर को फिर से अलजजीरा में ही 4 अक्टूबर को फिर से इस विषय पर लेख प्रकाशित किया गया था, Indian Farmers to Step-up Protests after 9 killed in Violence। इसमें भारतीय किसान यूनियन के नेता धर्मेन्द्र मलिक का बयान भी था, किसानों की समस्याओं को उजागर करने के लिए उत्तर प्रदेश और देश के दूसरे हिस्सों में किसान आन्दोलन और तेज किया जाएगा। साथ ही देश के दूसरे हिस्सों में लखीमपुर खीरी की घटना के बाद किसानों के समर्थन में घरना/प्रदर्शन का जिक्र भी था।
न्यूयॉर्क टाइम्स (NewYork Times) ने भी 4 अक्टूबर को, Eight Killed as Tensions Around India's Farm Protests Worsen, शीर्षक से समाचार था।इसमें कहा गया है कि मुख्यमंत्री आदित्यनाथ पूरी तरह से असफल रहने के बाद भी मोदी के चहेते हैं, क्योंकि वे प्रधानमंत्री का हिन्दू ऐजेंडा आगे बढ़ा रहे हैं। प्रियंका गांधी की पुलिस से नोकझोंक को भी बताया गया है, जिसमें प्रिनका गांधी ने कहा था, आप वारंट तो दिखाइये – हालन कि आपके राज्य में कानून-व्यवस्था जैसा कुछ नहीं है, पर देश में कानून है। मंत्री अजय मिश्र के बयान का वर्णन भी है, जिसमें उन्होंने कहा था, आप लोगों को सीधा करने में केवल 2 मिनट का समय लगेगा।
वाशिंगटन पोस्ट (Washington Post) में 4 अक्टूबर को प्रकाशित समाचार का शीर्षक है – Indian town on edge after 9 die during farm protests। इसी दिन यानि 4 अक्टूबर को न्यूज़वीक (Newsweek) में, Official's Car Runs Over Protesters, Driver & 3 Passengers Beaten to Death in Retaliation, शीर्षक से यह खबर प्रकाशित की गयी थी।
इंडिपेंडेंट (Independent) ने इस खबर को Lakhimpur Kheri: At least 8 people killed after SUVs ram into group of protesting farmers in India, शीर्षक से 4 अक्टूबर को प्रकाशित किया था। इसी दिन गार्डियन (Guardian) ने भी इस खबर को, India: nine people die in farmer's protests against new laws, शीर्षक से इस समाचार को प्रकाशित किया था। हमारे देश का चाल, चरित्र और खूनी चेहरा पूरी दुनिया देश रही है, पढ़ रही है – पर यह कोई पहली या आख़िरी घटना नहीं है, बल्कि मोदीमय भारत में एक घटना को दबाने के लिए दूसरी उससे बड़ी घटना सरकार प्रायोजित करती है।