चारधाम यात्रा पर नैनीताल हाईकोर्ट ने लगायी रोक तो फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची तीरथ सरकार

कोर्ट ने सख्त टिप्पणी कर कहा था, चारधाम यात्रा की पैरोकारी कर रहे लोगों को उन परिवारों से मिलवाया जाना चाहिए, जिन्होंने अपने प्रियजनों को महामारी में गंवाया है...

Update: 2021-06-30 14:20 GMT

नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले को तीरथ सिंह रावत की चुनौती, चारधाम यात्रा के लिए पहुंचे सुप्रीम कोर्ट

जनज्वार। कुंभ के बाद देशभर में फैली कोरोना की भयावहता को देखते हुए नैनीताल हाईकोर्ट ने 1 जुलाई से उत्तराखण्ड में होने वाली चारधाम यात्रा (Chardham Yatra) पर रोक लगाने का निर्णय सुनाया था, जिसके खिलाफ राज्य की तीरथ सिंह रावत सरकार ने आज 30 जून को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

शासकीय प्रवक्ता सुबोध उनियाल ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया है कि चारधाम यात्रा के लिए सरकार की तरफ से पुख्ता व्यवस्था की गई है। साथ ही यह भी कहा कि चारधाम यात्रा उत्तराखण्ड के लिए बहुत जरूरी है।

गौरतलब है कि 28 जून को कोविड महामारी के बीच चारधाम यात्रा जारी रखने के सरकार के निर्णय पर रोष जताते हुए नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा ने चमोली, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी जिलों के निवासियों को बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री जाने की अनुमति देने के निर्णय पर रोक लगायी थी। हाईकोर्ट ने ने कोविड महामारी के बीच यात्रा के संचालन में शामिल जोखिमों से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की थी।

नैनीताल हाईकोर्ट ने सरकार के चारधाम यात्रा के पक्ष में दिये गये सारे तर्कों को सिरे से नकारते हुए 1 जुलाई से शुरू होने वाली चारधाम यात्रा कराने के Teerath Singh Rawat govt के निर्णय पर रोक लगा दी थी। अपना निर्णय सुनाते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार के अधिकारी कोर्ट को बहुत हल्के ढंग से ले रहे हैं, इसलिए मुख्य सचिव अधिकारियों को कोर्ट के सामने कैसे पेश आया जाता है, इसकी ट्रेनिंग दें। उत्तराखंड के प्रशासनिक अधिकारी गलत और आधी अधूरी जानकारी देकर कोर्ट का समय और जजों के धैर्य की परीक्षा न लें। कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 7 जुलाई की डेट दी थी, मगर उससे पहले ही तीरथ सिंह रावत ने चारधाम यात्रा कराये जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया। है।

नैनीताल हाईकोर्ट ने उत्तराखण्ड सरकार की ओर से चारधाम के पुजारियों और अन्य लोगों की यात्रा जारी रखने की मांग पर कहा, चारधाम यात्रा की पैरोकारी कर रहे ऐसे लोगों को उन परिवारों से मिलवाया जाना चाहिए, जिन्होंने अपने प्रियजनों को महामारी में गंवाया है।

गौरतलब है कि covid pandemic के बीच चारधाम यात्रा आयोजित न कराये जाने के खिलाफ सच्चिदानंद डबराल, दुष्यंत मैनाली, अनु पंत समेत कई अन्य लोगों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। सोमवार 28 जून को वर्चुअल सुनवाई के दौरान मुख्य सचिव ओमप्रकाश, पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर और आशीष चौहान कोर्ट के सामने पेश हुए थे। चीफ जस्टिस आरएस चौहान एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की बेंच ने सरकार की ओर से दिए गए 177 पृष्ठ के शपथपत्र पर असंतोष जाहिर करते हुए इस यात्रा को खारिज करने का निर्णय सुनाया था।

नैनीताल हाईकोर्ट ने उत्तराखण्ड की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था और कोविड प्रोटोकॉल को लेकर अधिकारियों के नॉन सीरियस रवैये को लेकर फटकार लगाकर पूछा था कि क्या हरिद्वार कुंभ के दौरान जो हुआ उसी को चारधाम यात्रा में भी दोहराने दिया जाए। जब कांवड़ यात्रा पर रोक लगाई गई है, तब सरकार अपर्याप्त इंतजाम के साथ चारधाम यात्रा क्यों शुरू करना चाह रही है। तीसरी लहर के संभावित खतरे और डेल्टा प्लस वैरिएंट के बीच सरकार की यह नीति सीधे सीधे एक मजाक की तरह है।

उत्तराखंड सरकार ने 25 जून की कैबिनेट बैठक में तीन जिलों के लिए चारधाम यात्रा शुरू करने का फैसला सुनाया था। सरकार ने चमोली जिले के लोगों को बदरीनाथ धाम दर्शन करने, रुद्रप्रयाग जिले के लोगों को केदारनाथ धाम और उत्तरकाशी के लोगों को गंगोत्री व यमुनोत्री धाम के दर्शन की अनुमति दी थी। तीरथ सिंह सरकार 11 जुलाई से यात्रा के दूसरे चरण में बाकी उत्तराखंडवासियों के लिए चारधाम यात्रा खोलने की तैयारी में थी, मगर सोमवार को हाईकोर्ट ने यात्रा संबंधी कैबिनेट के फैसले पर रोक लगा दी।

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