सुप्रीम कोर्ट में CJI बोबड़े को 'योर ऑनर' बोलने पर हुआ ऐतराज, कहा यह अमेरिकी कोर्ट नहीं

जूनियर वकील ने चीफ जस्टिस बोबडे को योर ऑनर कहा तो जस्टिस बोबड़े ने कहा- यह यूएस कोर्ट नहीं है, आप इस तरह संबोधित न करें। इसके बाद वकील ने गलती सुधारी और तुरंत माई लॉर्ड कहकर आगे बात रखी...

Update: 2021-02-23 17:50 GMT

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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को एक कानून के छात्र द्वारा न्यायाधीशों को 'योर ऑनर' संबोधित करने पर आपत्ति जताई। प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे और न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना और वी. रामसुब्रमण्यम की पीठ ने कानून के छात्र वकील से कहा, "जब आप हमें योर ऑनर कहते हैं, तो आपके दिमाग में या तो यूनाइटेड स्टेट्स का सुप्रीम कोर्ट है या मजिस्ट्रेट है।

याचिकाकर्ता ने तुरंत माफी मांगी और कहा कि उनका न्यायाधीशों को अपसेट करने का कोई इरादा नहीं था। याचिकाकर्ता ने कहा कि वह अपने मामले पर बहस करते हुए 'माई लॉर्डस' का इस्तेमाल करेगा। मुख्य न्यायाधीश एस. ए. बोबडे ने जवाब दिया, "जो भी हो। हम विशेष नहीं हैं कि आप हमें क्या कहते हैं, लेकिन गलत शब्दों का उपयोग न करें।"

कानून के छात्र ने अधीनस्थ न्यायपालिका में रिक्तियों को दाखिल करने के संबंध में शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी। न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम ने कानून के छात्र को समझाते हुए कहा कि उनके तर्क में कुछ महत्वपूर्ण गायब है और वह इस मामले में अपना होमवर्क किए बिना अदालत में आए हैं।

गौरतलब है कि प्रधान न्यायाधीश की पीठ के समक्ष एक लॉ स्टूडेंट पेश हुआ था। वह देश की निचली अदालतों में जजों की नियुक्ति से संबंधित याचिका पर सुनवाई में हिस्सा ले रहा था। इसी दौरान जूनियर वकील ने चीफ जस्टिस बोबडे को योर ऑनर कहा तो जस्टिस बोबड़े ने कहा- यह यूएस कोर्ट नहीं है, आप इस तरह संबोधित न करें। इसके बाद वकील ने गलती सुधारी और तुरंत माई लॉर्ड कहकर आगे बात रखी। इस पर जस्टिस बोबड़े ने कहा, ठीक है, आप गलत टर्म का इस्तेमाल न करें। 

उन्होंने पाया कि कानून के छात्र मलिक मजहर सुल्तान मामले में निर्देशों को भूल गए हैं और अधीनस्थ न्यायपालिका में नियुक्तियां इस मामले में निर्धारित समयसीमा के अनुसार की जाती हैं।

मामले को स्थगित करते हुए, पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह इस मामले का अध्ययन करे और बाद में वापस आ जाए। अदालत ने साथ ही याचिकाकर्ता को व्यक्तिगत रूप से पेश होने और बहस करने की अनुमति दे दी। सुप्रीर्म कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, "याचिकाकर्ता के अनुरोध पर चार सप्ताह के बाद मामले को सूचीबद्ध किया जाए।"

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