कागज तो कागज सरकारी पोर्टल से भी गायब हुआ कोरोना की दूसरी लहर के लाखों मृतकों का डाटा

एक स्वतंत्र अध्ययन सामने आया था जिसमें दावा किया गया कि भारत में जून 2020 से जून 2021 के बीच सात से आठ गुना अधिक मौतें हुई हैं और इसी अध्ययन पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने मिथ्य और तथ्य जारी करते हुए हर मौत के पीछे कोविड-19 वजह मानने से इनकार किया था...

Update: 2021-08-02 06:47 GMT

कोरोना की दूसरी लहर में मरे लोगों का डाटा सरकारी पोर्टल से भी गायब हो गया. (photo-twitter) 

जनज्वार, लखनऊ। कोरोना महामारी की सेकंड वेव के दौरान हुई मौतें एक तरफ सरकारी कागजों से तो दूर हैं ही, वहीं दूसरी तरफ सूचना आ रही है कि, तकनीकी कारण के चलते मौत के यह आंकड़े सरकारी पोर्टल से भी डिलीट हो चुके हैं।

गौरेकाबिल है कि, इन आंकड़ों की रिकवरी कब तक हो पाएगी? इसके बारे में अधिकारियों को तक को भी जानकारी नहीं है। यह पूरा मामला उस वक्त से जुड़ा है जब अप्रैल और मई के दौरान देश में दूसरी लहर के चलते हाहाकार और नरसंहार देखने को मिला था।

बता दें कि, अस्पताल तक से केंद्र सरकार को हर माह स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (HMIS) के जरिये जानकारी मिलती है। यहीं से मिले आंकड़ों के जरिये वार्षिक स्वास्थ्य रिपोर्ट भी तैयार होती हैं, लेकिन फिलहाल यहां अप्रैल और मई के आंकड़े कई दिनों से गायब हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि तकनीकी कारण के चलते रिपोर्ट नहीं दिख रही है। हालांकि आईटी टीम इस पर काम कर रही है लेकिन यह कब तक हो पाएगा? इसके बारे में अभी जानकारी नहीं दी जा सकती।

दरअसल इस पोर्टल पर साल 2008 से लेकर अब तक किस जिले में कितने मरीज, मौतें, बीमारियां इत्यादि का ब्यौरा मौजूद है लेकिन कुछ दिन पहले मार्च 2021 के बाद का डाटा गायब था। 31 जुलाई को यहां जुलाई माह का डाटा दिखाई देने लगा लेकिन दूसरी लहर के दौरान अप्रैल, मई और जून के दौरान की जानकारी सार्वजनिक नहीं है।

जबकि इसी डाटा के आधार पर हाल ही में एक स्वतंत्र अध्ययन सामने आया था जिसमें दावा किया गया कि भारत में जून 2020 से जून 2021 के बीच सात से आठ गुना अधिक मौतें हुई हैं और इसी अध्ययन पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने मिथ्य और तथ्य जारी करते हुए हर मौत के पीछे कोविड-19 वजह मानने से इनकार किया था।

मेडिकल जर्नल मेडरेक्सिव में प्रकाशन से पूर्व समीक्षात्मक अध्ययन सेंटर फॉर ग्लोबल हेल्थ रिसर्च के निदेशक और कनाडा के टोरंटो विश्वविद्यालय में प्रोफेसर प्रभात झा और उनकी टीम ने किया था। इसमें एचआईएमएस से प्राप्त आंकड़ों का हवाला देते हुए गणितीय मॉडल बनाया गया था जिसके अनुसार पिछले एक साल में भारत में 27 से 33 लाखें मौतें हुई हैं।

इंडिया स्पेंड के अनुसार इस टीम में शामिल अहमदाबाद स्थित आईआईएम के सहायक प्रोफेसर चिन्मय तुम्बे का कहना है कि एचआईएमएस पर पुराना डाटा उपलब्ध है और सिर्फ दो महीने के लिए ही तकनीकी खामी बताना किसी हैरानी से कम भी नहीं है। उन्होंने बताया कि अगर 2008 से अब तक के सभी आंकड़ों का अध्ययन करेंगे तो यह सच्चाई सामने आ जाएगी कि कोरोना महामारी के वक्त देश में कितने लोगों को हमने खोया है।

स्वस्थ भारत अभियान के राष्ट्रीय संयोजक आशुतोष कुमार सिंह का कहना है कि दिल्ली जैसे मेट्रो शहरों में कोविड महामारी के दौरान जब स्वास्थ्य सेवाएं लड़खड़ा गईं तो ग्रामीण क्षेत्रों की हालत का अंदाजा स्वत: ही लगाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश और बिहार के सैंकड़ों गांव अभी भी स्वास्थ्य सेवाओं से दूर हैं। हिमाचल, उत्तराखंड और पूर्वोत्तर राज्यों में स्वास्थ्य सेवाएं काफी सीमित हैं।

इसके बावजूद यह कहना है कि यहां महामारी का असर नहीं है? यह जनता के साथ धोखाधड़ी है। वहीं जन स्वास्थ्य अभियान के विवेक सिंह का कहना है कि राज्य और केंद्र सरकार के बीच राजनीति के चलते लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ हो रहा है जोकि देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है।

इन सबके बीच एक बात जो सच है वह ये कि, सबकुछ गायब हो जाता है, लाशें रायबरेली हो गई तो फिर लाशों का डाटा और संख्या क्या चीज है! बस हमारे पंतपरधान मोदीजी ही शास्वत सत्य चीरस्थायी हैं, और रहेंगे भी।

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