संसदीय समिति का दावा, NCST 4 साल में नहीं पेश कर पाई एक भी रिपोर्ट, वजह जानकर चौंक जाएंगे

सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण पर संसद की स्थायी समिति ने लोकसभा में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एनसीएसटी पिछले चार सालों में एक भी रिपोर्ट पेश नहीं कर पाई है। समिति ने आयोग की इस स्थिति पर चिंता भी जताई है।

Update: 2022-03-20 04:19 GMT

 एनसीएसटी 4 साल नहीं पेश कर पाई एक भी रिपोर्ट।

नई दिल्ली। मोदी राज में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ( NCST ) लाचार और बेबस है। या यूं कहें कि एनसीएसटी मोदी सरकार की नजरों में उपेक्षा की शिकार है। यह आयोग पिछले चार वर्षों से निष्क्रिय पड़ा है और संसद में उसने एक भी रिपोर्ट पेश नहीं की है। इस बात का दावा किसी एजेंसी ने एक्टिविस्ट ने नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण पर संसद की स्थायी समिति ( Standing Committee of Parliament on Social Justice and Empowerment ) ने की है। संसदीय समिति ने लोकसभा में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एनसीएसटी ( National Commission for Scheduled Tribes ) पिछले चार सालों में एक भी रिपोर्ट पेश नहीं कर पाई है। समिति ने आयोग की इस स्थिति पर चिंता भी जताई है।

सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण पर संसदीय समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह समिति यह देखकर 'लाचार'है कि एनसीएसटी की रिपोर्ट वर्ष 2018 से जनजातीय मामलों के मंत्रालय में प्रक्रियाधीन है। अब तक संसद में पेश नहीं की गई है।

द हिंदू में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, आयोग की ओर से आंध्र प्रदेश में इंदिरा सागर पोलावरम परियोजना के आदिवासी आबादी पर प्रभाव और राउरकेला स्टील प्लांट की वजह से विस्थापित हुए आदिवासियों के पुनर्वास पर आयोग द्वारा तैयार रिपोर्ट लंबित है। भाजपा की रमा देवी की अध्यक्षता वाली सामाजिक न्याय और अधिकारिता पर गठित संसदीय समिति ने पाया कि इन रिपोर्ट्स को आयोग द्वारा अंतिम रूप दे दिया गया है, लेकिन केंद्रीय जनजाति मंत्रालय के पास रुकी हुई हैं।

संसदीय समिति ने कहा है कि हम यह कहने के लिए विवश हैं कि 2018 से आयोग की रिपोर्ट्स अभी भी जनजातीय मंत्रालय में प्रक्रियाधीन है। आज तक संसद में प्रस्तुत नहीं की गई है। समिति चाहती है कि मामले में तेजी लाई जाए और बिना किसी देरी के रिपोर्ट प्रस्तुत की जाएं।

बजट और कर्मचारी दोनों की कमी से जूझ रहा है एनसीएसटी

सामजिक न्याय और अधिकारिता पर गठित संसदीय समिति ने आयोग के जनशक्ति और बजटीय कमी के साथ काम करने के चलते निष्क्रिय होने संबंधी तर्कों पर निराशा जताई है। साथ ही संसदीय समिति ने आगे कहा कि वह हतप्रभ है कि आयोग में कई पद अब भी रिक्त हैं।

बेमानी है जनजातीय मंत्रालय का तर्क

दूसरी तरफ जनजातीय मंत्रालय ने दावा किया कि आयोग में भर्ती आवेदकों की कमी के कारण रोक दी गई थी। ऐसा इसलिए कि पात्रता की सीमा बहुत अधिक निर्धारित की गई थी। नियमों में अब सुधार किया जा रहा है। ताकि अधिक उम्मीदवार आवेदन कर सकें।

1 साल में हुईं केवल 4 बैठकें

एनसीएसटी आयोग की वेबसाइट के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2021-22 में आयोग की केवल चार बैठकें हुईं हैं। शिकायतों के समाधान और आयोग को प्राप्त होने वाले मामलों के लंबित होने की दर भी 50 प्रतिशत के करीब है। आयोग का ये हाल उस समय है जबकि उसके पास किसी सिविल कोर्ट के समान ही शक्तियां होती हैं। वह आदिवासियों के अधिकारों और सुरक्षा संबंधित मामलों पर जांच करता है।

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