PM मोदी का कल का भाषण भी नहीं निकला किसी काम का
जिन PM मोदी ने पिछले वर्ष कोविड 19 के लगभग 600 मामलों पर ही महज 4 घंटे की सूचना पर देशव्यापी लॉकडाउन को घोषित कर दिया हो, वही एक वर्ष बाद लॉकडाउन को अंतिम विकल्प के तौर पर क्यों प्रचारित कर रहे हैं...
वरिष्ठ लेखक महेंद्र पांडेय का विश्लेषण
जनज्वार। बिहार विधानसभा चुनावों के समय तेजस्वी यादव ने कहा था, प्रधानमंत्री जी हैं कुछ भी बोल सकते हैं। और, प्रधानमंत्री जी जब भी बोलते हैं तब यदि आपका मस्तिष्क अभी तक काम करता है तब यह वाक्य जरूर याद आता होगा। अप्रैल के शुरू से ही देश में कोविड 19 के मामले विस्फोटक स्थिति में पहुँचाने लगा था, हरेक नया दिन एक नया रिकॉर्ड कायम करता जा रहा है, पर प्रधानमंत्री जी के लिए पश्चिम बंगाल में सत्ता हथियाना इतना जरूरी है कि बाकी देश की खबर ही नहीं है। 20 अप्रैल को पश्चिम बंगाल में कोई रैली नहीं थी तो सोचा होगा चलो कोविड 19 के बहाने ही टीवी के परदे पर लाइव हो जाएँ।
प्रधानमंत्री जी ने अपने संबोधन से फिर साबित कर दिया कि उनका हरेक कदम केवल जनता को तबाह करने के लिए होता है। उनके योजनाओं को लागू करने से पहले न तो अध्ययन किया जाता है, ना ही उसका परिणाम पता होता है और ना ही किसी से मशविरा लिया जाता है। जिसने पिछले वर्ष कोविड 19 के लगभग 600 मामलों पर ही महज 4 घंटे की सूचना पर देशव्यापी लॉकडाउन को घोषित कर दिया हो, वही एक वर्ष बाद लॉकडाउन को अंतिम विकल्प के तौर पर प्रचारित कर रहा है।
जिस लॉकडाउन ने कोविड 19 को तो नहीं रोका पर अर्थव्यवस्था को खोखला और बेरोजगारी को राष्ट्रीय आपदा बनाकर कोविड 19 से भी भयानक संकट खड़ा कर दिया, और सैकड़ों लोगों को सडकों पर मार डाला – यह सब प्रधानमंत्री जी का अभिनव प्रयोग था। पूरी दुनिया के इतिहास में एक के बाद एक ऐसे बेतुके और नरसंहारी फैसले लेने वाला शासक शायद ही कोई दूसरा होगा, हिटलर भी ऐसा नहीं था। एक ऐसा प्रधानमंत्री जिसके पास जनता के सामने बताने को केवल ओछी हरकतें, अश्लील भाषा और विपक्ष पर थोपने को अनर्गल आरोप रहते हैं – और इसके सिवा कुछ भी नहीं होता।
प्रधानमंत्री ने कहा की मैं अपने बाल मित्रों से कहता हूँ की वे सुनिश्चित करें की बिना जरूरी काम के उनके अभिभावक घरों से बाहर नहीं निकलें। प्रधानमंत्री जी आपके इस वक्तव्य को भी सबने सुना और आपकी और आपके पार्टी की चुनावी रैलियों को भी सभी देख रहे हैं और समझ रहे हैं कि आप भी उन प्रवचनकारियों की तरह हैं जो सद्विचार जनता के सामने बांचते हैं, पर अपने आचरण में ठीक इसके विपरीत हैं। अब पानी रैलियों में भी आप लोगों को वापस घर भेजना शुरू कर दीजिये, या फिर वहां के बच्चों को यही सीख दीजिये।
बीजेपी ने रैलियों में लोगों की संख्या घटाने का ऐलान किया है, जाहिर है उसके बाद पहले से बड़ी रैलियाँ आयोजित की जायेंगीं, पर अब करोड़ों रुपये में आयोजित रैलीनुमा तमाशा का खर्च कुछ लाख रुपये तक बताना आसान हो जाएगा। वैसे भी चुनाव आयोग तो सरकारी और पालतू है। हाल में ही ब्राज़ील में मध्यावदी चुनाव कराये जा रहे थे, और इनके से एक उम्मीदवार राष्ट्रपति बोल्सेनारो का चहेता था।
बोल्सेनारो बाजील के अघोषित तानाशाह हैं, फिर भी आप वहां के चुनाव आयोग की निष्पक्षता तो देखिये, चुनाव आयोग ने उस उम्मीदवार के चुनाव परिणाम को रोक दिया और चुनाव प्रक्रिया से बाहर कर दिया क्योंकि उस उम्मीदवार ने चुनावों में तय सीमा से अधिक खर्च किया था। इसके बाद बोल्सेनारो की पार्टी ने वहां के सर्वोच्च न्यायालय में इसके खिलाफ मुकदमा दायर किया पर सुप्रीम कोर्ट ने भी चुनाव आयोग का फैसला कायम रखा। जाहिर है वहां के सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को कहीं का राज्यपाल या फिर राज्यसभा में बैठने का कोई मोह नहीं है। हमारे यहाँ तो सुप्रीम कोर्ट हरेक तरीके से सरकार के साथ कहदा रहता है, भले ही न्याय के बदले अन्याय ही क्यों न करना पड़े, तभी तो यहाँ के न्यायाधीश कहते हैं की वे चुनाव प्रक्रिया में दखल नहीं देंगें। पर, क्या ऐसा ही फैसला वो तब दे पायेंगें जब बीजेपी की बारी आयेगी?
प्रधानमंत्री जी ने कोविड 19 के इस दौर का बड़ा सुनहरा खाका खींचा, पर उनके चहेते समाचार चैनल भी अब जो तस्वीरें लगातार दिखा रहे हैं वह सुनहरी नहीं बल्कि काली तस्वीरें हैं। अप्रैल के शुरू से वैश्विक महामारी की चपेट में आने के बाद 20 अप्रैल को प्रधानमंत्री देश को बता रहे हैं की ऑक्सीजन की व्यवस्था अभी कर रहे हैं, और दूसरी व्यवस्थाएं भी की जा रही हैं, इससे अधिक अमानवीय और संवेदनहीन वक्तव्य और क्या हो सकता है?
प्रधानमंत्री जी ने बड़े गर्व से बताया की पिछले वर्ष हमारे यहाँ कोई सुविधा नहीं थी, पर हमने जल्दी ही सारी सुविधा विकसित कर ली, पर अब सारी सुविधाएं कहाँ हैं? अब, बीजेपी नेताओं का एक नया हास्यास्पद और आपराधिक शगूफा है, सुविधाओं की कमीं नहीं है बल्कि मरीज ज्यादा आ रहे हैं।
वर्ष 2014 के बाद से देश जिस दिशा में जा रहा है, उसका अंतिम सिरा कहाँ है कोई नहीं जानता, पर इतना तो तय है कि यदि इस दौर का एक निर्भीक और सटीक इतिहास लिखा जाएगा तो उसे पढ़ने वाले हिटलर को भूल जायेंगे, क्योंकि हिटलर से भी जालिम, क्रूर और आतताई शासक का मुखौटा इतिहास उतार देगा।