राष्ट्रपति की भावुक अपील पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, देश की जेलों में बंद लाखों कैदियों की रिहाई का खुला रास्ता
सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) ने जमानत की शर्तों को पूरा न करने की वजह से देश की जेलों में बंद कैदियों ( prisoners ) का डेटा 15 दिन में पेश करने का आदेश राज्य सरकारों को निर्देश दिया। इस आदेश से जमानत मिलने के बावजूद जेल में बंद गरीब कैदियों को घर वापसी का मौका मिल सकेगा।
नई दिल्ली। संविधान दिवस पर एक भावुक अपील में देश के राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ( Draupdi Murmu ) ने सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) सहित देश के सभी जजों से भावुक अपील की थी कि कम से कम आप लोग देशभर के जेलों में बंदर उन गरीब कैदियों ( poor prisoners ) के बारे में विचार करें, जो जमानत की शर्तों को पूरा न पाने की वजह से जेल में बंद है। राष्ट्रपति की मार्मिक अपील का सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पर सीधा असर हुआ। मंगलवार यानि 20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों से कहा कि वे जेल अधिकारियों को उन विचाराधीन कैदियों के कुछ विवरण प्रस्तुत करने के लिए निर्देश जारी करें जिन्हें जमानत मिल गई है, लेकिन वे अभी भी जेल में हैं, क्योंकि वे जमानत की शर्तों को पूरा करने में असमर्थ हैं।
सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) के जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एएस ओका अपने आदेश में ऐसे सभी कैदियों की सूची तैयार कर भेजने को कहा है। सूची के साथ शीर्ष अदालत ने
कैदियों के नाम, अपराध का स्वरूप, जमानत की तारीख, जमानत की शर्तें जो पूरी नहीं हुईं और जमानत दिए जाने की अवधि और जमानत आदेश की तिथि का विवरण भी 15 दिनों के अंदर मुहैया कराने को कहा है। 15 दिनों के अंदर ऐसे कैदियों का डेटा कलेक्शन के बाद एक सप्ताह के भीतर राज्य सरकारों को नालसा को यह डेटा भेजना होगा। नालसा जरूररत पड़ने पर सुझाव भी देगा। साथ ही जरूरतमंद कैदियों को कानूनी सहायता भी प्रदान करेगा।
दरअसल, जस्टिस कौल और जस्टिस एएस ओका की पीठ जेल में बंद आजीवन दोषियों की याचिकाओं के एक बैच पर विचार कर रही थी जिनकी अपील विभिन्न उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित है। जस्टिस कौल ने माना कि ऐसे कई मामले हैं जहां जमानत दिए जाने के बाद भी कैदी केवल इसलिए जेल में सड़ रहे हैं क्योंकि वे जमानत की शर्तें पूरी नहीं कर पाए हैं।
जस्टिस ने कहा कि एक मुद्दा जो मेरे संज्ञान में लाया गया है। ऐसे कई मामले हैं जहां जमानत दी गई, लेकिन लोग जमानत के नियमों और शर्तों का पालन करने में सक्षम नहीं थे। ऐसे मामलों की संख्या का वास्तविक अनुमान लगाने के लिए बेंच ने उपरोक्त आदेश पारित किया।
एमिकस क्यूरी ने पीठ को अवगत कराया कि दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) ने पहले ही इस मुद्दे को हरी झंडी दिखा दी है। उन्होंने कहा कि डीएलएसए ने उन लोगों के लिए जमानत बांड प्रस्तुत करने के संबंध में कुछ प्रस्तावित किया है जो जमानत मिलने पर भी ऐसा करने में असमर्थ हैं। इस पर जस्टिस कौल ने कहा कि दिल्ली में मुझे लगता है कि ऐसे मामलों की संख्या कम हो सकती है। समस्या उन राज्यों में अधिक है जहां वित्तीय साधन एक चुनौती है।
वहीं जस्टिस एएस ओका ने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस मुद्दे को हल करने का एकमात्र तरीका जमानत की शर्तों में संशोधन की मांग करना हो सकता है, जो कैदियों द्वारा पूरी नहीं की जा सकती हैं। उन्होंने संकेत दिया कि प्रत्येक मामले में इस तरह के संशोधन के लिए एक आवेदन दायर करना होगा। इसलिए, ऐसे मामलों की संख्या का डेटा संग्रह महत्वपूर्ण है।
बेंच ने अपने आदेश में ये भी कहा कि NALSA जमानत आदेशों के निष्पादन को प्रभावी बनाने के लिए TISS की सहायता ले सकता है। सुनवाई के दौरान एमिकस ने प्रस्तुत किया कि कर्नाटक कानूनी सेवा प्राधिकरण ने सूचित किया था कि कर्नाटक में सभी 52 जेलों में ई-जेल मॉड्यूल लागू किया गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि क्या अन्य राज्यों द्वारा भी इसे लागू किया जा सकता है। उनके सुझाव पर विचार करते हुए बेंच ने कहा कानूनी सहायता सूचना मॉड्यूल कर्नाटक जेल में सक्षम नहीं था। NALSA के साथ हुई बैठक का परिणाम सामने आया है। कुछ महत्वपूर्ण विशेषताओं वाले ई-जेल मॉड्यूल प्रभावी निगरानी को सक्षम करेगा।
एमिकस का समाधान यह है कि ई-जेल मॉड्यूल एसएएलएसए और जेल अधिकारियों के बीच समन्वय के साथ पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए। दो महीने की अवधि के भीतर पूरा किया जाना चाहिए। खंडपीठ ने यह सुझाव भी दर्ज किया कि ई-जेल मॉड्यूल को कुछ महत्वपूर्ण अदालत-डेटा जैसे जमानत देने के आदेश, जमानत आदेशों के कार्यान्वयन की स्थिति आदि को दर्शाने के लिए संशोधित किया जा सकता है। पीठ ने कहा कि सुझावों में से एक यह है कि ई-जेल मॉड्यूल को जमानत देने के आदेशों के संबंध में डेटा अपलोड करने के लिए संशोधित किया जा सकता है।
बता दें कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू( Draupdi Murmu ) ने संविधान दिवस पर सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) द्वारा आयोजित अहम चर्चा में हिंदी में बोलते हुए न्यायपालिका से गरीब आदिवासियों के लिए कुछ करने का आग्रह किया था। उन्होंने कहा था कि गंभीर अपराधों के आरोपी मुक्त हो जाते हैं, लेकिन गरीब कैदियों जो हो सकता है किसी को थप्पड़ मारने के लिए जेल गए हों, को रिहा होने से पहले वर्षों जेल में बिताने पड़ते हैं। राष्ट्रपति जिस समय ये बातें कह रहीं थीं उस समय न्यायमूर्ति एसके कौल प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ के साथ मंच पर बैठे थे जब राष्ट्रपति ने अपने ओडिशा में विधायक के रूप में और बाद में झारखंड की राज्यपाल के रूप में कई विचाराधीन कैदियों से मिलने का अपना अनुभव बताया। इसके बाद जस्टिस कॉल कौल और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की पीठ ने मंगलवार को जेल अधिकारियों को ऐसे कैदियों का विवरण संबंधित राज्य सरकारों को प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जो 15 दिन के भीतर दस्तावेजों को राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (नालसा) को भेजेंगी।