चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में मनमानी पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी, पूछा 72 वर्षों से क्यों नहीं बना कानून
Supreme Court On Appointment Of CEC : सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि टीएन शेषन जैसे सीईसी कभी-कभार ही होते हैं। हम नहीं चाहते कि कोई उन्हें कंट्रोल करे। सीईसी और ईसी के कंधों पर बड़ी शक्ति निहित है। हमें सीईसी के पद के लिए सबसे अच्छा आदमी खोजना होगा।
Supreme Court On Appointment Of CEC : भारत दुनिया का सबसे बड़ा और मजबूत लोकतंत्र है। आजादी के 75 सालों और गणतंत्रीय संविधान के 72 सालों में इसकी नींव काफी मजबूत हुई हैं, लेकिन इसे और बेहतर बनाने और देश में लोकतांत्रिक परंपराओं को मजबूती प्रदान करने के लिए चुनाव प्रणाली ( Election system ) सहित चुनाव आयोग ( Election commission ) के सीईसी ( CEC and Ec appointment ) और ईसी की नियुक्ति को अलग कानून के जरिए ज्यादा पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने की जरूरत है। इस बात को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने एक मजबूत और संवैधानिक मुख्य चुनाव आयुक्त चयन ( selection of Chief election commissioners ) न होने की प्रक्रिया पर चिंता जताई है।
इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court )की चिंता से साफ है कि शीर्ष अदालत चाहती है कि मुख्य चुनाव आयुक्त का चयन करने के लिए सरकार अलग से कानून बनाए। चुनाव आयोग का कार्यकाल छह साल हो और उसका चयन कॉलेजियम सिस्टम जैसा हो। यानि पांच सदस्यीय संविधान पीठ वर्तमान चयन प्रक्रिया को पूरी तरह से संवैधानिक बनाना चाहती है। पीठ का मानना है कि चुनाव प्रणाली में और सुधार तभी संभव हो पाएगा जब हमारा मुख्य चुनाव आयुक्त जैसा पद और ज्यादा ताकतवर हो।
संविधान में नहीं है नियुक्ति की प्रक्रिया का उल्लेख
फिलहाल, संविधान पीठ ने कहा है कि संविधान में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निवार्चन आयुक्तों के चयन का प्रावधान तो दर्ज है, लेकिन उनकी नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर कुछ नहीं कहा गया है। ऐसे में सरकारें अपने हित में संविधान की चुप्पी का अपने हितों के लिए करती दिखाई देती है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने देश की एक याचिका पर सुनवाई के दौरान ये सख्त टिप्पणी की है।
शीर्ष अदालत ( Supreme court ) का कहना है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के मामले में संविधान की चुप्पी और कानून की कमी के कारण (शोषण का) जो रवैया अपनाया जा रहा है, वह परेशान करने वाली परंपरा है। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने मामले की सुनवाई के दौरान संविधान के अनुच्छेद 324 का हवाला दिया और कहा कि यह अनुच्छेद चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की बात तो करता है, लेकिन नियुक्ति की प्रक्रिया के पर चुप है।
शीर्ष अदालत ने क्या कहा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बारे में अलग से कानून बनाने की जरूरत है। हमारा गणतंत्र 72 साल पुराना है। 2004 के बाद से कोई भी मुख्य चुनाव आयुक्त छह साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूपीए के 10 साल के कार्यकाल में छह मुख्य चुनाव आयुक्त बनाए गए जबकि एनडीए के आठ साल के कार्यकाल में आठ मुख्य चुनाव आयुक्त बनाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस केएम जोसेफ की अगुवाई वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने इसे देश के लिए एक परेशान करने वाली परंपरा करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीईसी और ईसी की नियुक्ति को लेकर कोई कानून नहीं है, इसलिए हो रहा है उसे सही मान लिया जाता है। कानून के अभाव में कुछ नहीं किया जा सकता है। जबकि चीफ इलेक्शन कमिश्नर की नियुक्ति के लिए कॉलिजियम की तरह सिस्टम तैयार करने की मांग की गई है।
वर्तमान प्रारूप में CEC के वश में कुछ नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यहां तक कि संस्थान के मुखिया के तौर पर चीफ इलेक्शन कमिश्नर का जो खंडित कार्यकाल होता है, उसमें वो कुछ ठोस नहीं कर पाते हैं। 2004 के बाद मुख्य चुनाव आयुक्तों की लिस्ट देखा जाए तो ज्यादातर ऐसे हैं जिनके दो साल से ज्यादा का कार्यकाल भी नहीं है। कानून के मुताबिक छह साल का कार्यकाल होना चाहिए या फिर 65 साल की उम्र तक का कार्यकाल होना चाहिए। इनमें जो पहले हो जाए, वही कार्यकाल माना जाता है। अमूमन मुख्य चुनाव आयुक्त ब्यूरोक्रेट होते हैं। सरकार ऐसे ब्यूरोक्रेट की उम्र पहले से जानती है जिन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया जाता है। उन्हें तब मुख्य चुनाव आयुक्त के तौर पर नियुक्त किया जाता है जब वह कभी भी छह साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाते हैं और उनका कार्यकाल खंडित ही रहता है।
अभी तक क्यों नहीं बना कानून
सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ के अध्यक्ष केएम जोसेफ ने कहा है कि देश में संविधान को लागू हुए 72 साल हो गए लेकिन अभी तक चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं है। संविधान सभा चाहती थी कि संसद इसको लेकर कानून बनाए। 72 साल संविधान लागू हो गए लेकिन इसको लेकर कानून नहीं है। जस्टिस जोसेफ ने कहा- समीक्षा अगर चुनाव आयोग संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है तो फिर यह जरूरी है कि कोर्ट इसकी समीक्षा करे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डॉक्टर बीआर आंबेडकर ने संविधान सभा की बैठक में कहा था कि अनुच्छेद 324 आने वाली पीढ़ियों के लिए बड़ा सिरदर्द साबित होगा। अदालत ने अटॉर्नी जनरल से कहा है कि वह कोर्ट को अवगत कराएं कि चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए क्या मेकैनिजम अपनाया जाता है। इस मामले में आज भी सुनवाई होगी। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 23 अक्टूबर 2018 को उस जनहित याचिका को संवैधानिक बेंच रेफर कर दिया था जिसमें कहा गया है कि चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कॉलिजियम की तरह सिस्टम होना चाहिए। पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि इसका प्रयास एक ऐसी प्रणाली को स्थापित करना है ताकि सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति को सीईसी के रूप में चुना जा सके।
एजी वेंकटरमानी बोले - चयन प्रणाली को गैर संवैधनिक नहीं कहा जा सकता
हालांकि, केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी ने अदलत को बताया कि मौजूदा प्रक्रिया के तहत मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं और उसे गैर-संवैधानिक नहीं कहा जा सकता है। कोर्ट उसे निरस्त नहीं कर सकती है। संविधान सभा ने इसी मॉडल को स्वीकार किया था और ऐसे में शीर्ष अदालत यह नहीं कह सकता है कि इस मौजूदा मॉडल या प्रक्रिया पर विचार की जरूरत है। इस बारे में संविधान में कोई प्रावधान नहीं है जिसकी व्याख्या की जाए। संविधान सभा चाहती थी कि संसद इसको लेकर कानून बनाए। जो पार्टी पावर में आती है वह पावर में रहना चाहेगी और कुछ भी गलत नहीं लगता है। हमारी नीति लोकतांत्रिक है और लोकतंत्र में चुनाव के जरिए सरकारें बदलती हैं। ऐसे में पारदर्शिता और शुद्धता गहराई से जुड़े हुए हैं और यह संविधान का मूल ढांचा है।
तो क्या अदालत चाहती है शेषन जैसा सीईसी
Supreme Court On Appointment Of CEC : दरअसल, अदालत एक सशक्त और कम से कम छह कार्यकाल वाला मुख्य चुनाव आयुक्त चाहती है, ताकि वो कुछ करने का मौका मिले। खंडित चुनाव आयुक्तों की वजह से चुनाव सुधार से संबंधित योजनाएं गति नहीं पकड़ पा रही हैं। अदालत की इस टिप्पणी से साफ है कि वो टीएन शेषन जैसा चुनाव आयुक्त चाहती है। शेषन केंद्र सरकार के पूर्व कैबिनेट सचिव थे। वे 12 दिसंबर, 1990 से 11 दिसंबर, 1996 तक चुनाव आयुक्त (ईसी) रहे। उन्होंने अपना छह साल का कार्यकाल पूरा किया और 10 नवंबर, 2019 को उनकी मृत्यु हो गई। पीठ ने कहा कि कई सीईसी रहे हैं और टीएन शेषन जैसे कभी-कभार ही होते हैं। हम नहीं चाहते कि कोई उन्हें कंट्रोल करे। तीन पुरुषों (दो ईसी और सीईसी) के नाजुक कंधों पर बड़ी शक्ति निहित है। हमें सीईसी के पद के लिए सबसे अच्छा आदमी खोजना होगा। सवाल यह है कि हम सीईसी पद के लिए सबसे अच्छे आदमी को कैसे ढूंढेंगे हैं और उस सबसे अच्छे आदमी को कैसे नियुक्त करेंगे। बता दें कि संविधान पीठ में केएम जोसेफ के अलावा जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार शामिल हैं।