मोदीराज : विकास के नारों और असलियत में नहीं कोई संबंध, विकास इंडेक्स में 165 देशों में से 120वें स्थान पर

रिपोर्ट से इतना तो स्पष्ट है कि विकास का नारा देना और सही में विकास करना में कोई सम्बन्ध नहीं है, मोदी सरकार एक हिंसक, रुढ़िवादी और विभाजित समाज तैयार कर रही है, और जाहिर है ऐसे समाज से और सरकार से विकास की उम्मीद भी बेमानी है..

Update: 2021-07-08 06:30 GMT

सबका साथ सबका विकास साबित हुआ सिर्फ एक जुमला

वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। वर्ष 2014 में मोदी जी का नारा था, सबका साथ सबका विकास। प्रधानमंत्री बनाने के बाद से यह नारा भी गायब हो गया। वर्ष 2019 के चुनाव में फिर नारा आया, सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास। चुनाव ख़त्म होते ही फिर से यह नारा गायब हो गया।

दरअसल हमारे प्रधानमंत्री का विकास अलग किस्म का है – विपक्ष पर अनर्गल प्रलाप, मन की बात, मंत्रिमंडल में उलटफेर, सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट, राम मंदिर, पेट्रोल और डीजल के रोज बढ़ाते दाम, चारों दिशाओं में अपने होर्डिंग लगवाना और विरोध की आवाज को कुचलना।

प्रधानमंत्री जी के विकास का आलम यह है कि पिछले महीने प्रकाशित सतत विकास रिपोर्ट 2021 (Sustainable Development Report 2021) के अनुसार सतत विकास के सन्दर्भ में भारत कुल 165 देशों में 120वें स्थान पर है। इस रिपोर्ट को सस्टेनेबल डेवलपमेंट सोल्यूशन नेटवर्क, बेर्तेल्स्मन स्तिफ्तुंग और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी द्वारा संयुक्त तौर पर प्रकाशित किया जाता है।

वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र के सभी 193 सदस्य देशों ने अगले 15 वर्षों तक, यानी वर्ष 2030 तक, के लिए विकास के लक्ष्य निर्धारित किये थे। इसमें मुख्य रूप से 17 लक्ष्य है – (1) गरीबी उन्मूलन, (2) भूखमरी समाप्त करना, (3) बेहतर स्वास्थ्य, (4) बेहतर शिक्षा, (5) लैंगिक समानता, (6) साफ़ पानी और स्वच्छता, (7) सबके लिए और स्वच्छ ऊर्जा, (8) योग्यता के अनुरूप रोजगार और आर्थिक विकास, (9) उद्योग, अनुसन्धान और इंफ्रास्ट्रक्चर, (10) असमानता में कमी, (11) पर्यावरण अनुकूल शहर और समाज, (12) पर्यावरण अनुकूल खपत और उत्पादन, (13) जलवायु परिवर्तन रोकने के प्रयास, (14) जलीय जीवन, (15) पृथ्वी पर जीवन, (16) शान्ति, न्याय और सशक्त संवैधानिक संस्थाएं और (17) इन बिन्दुओं को पूरा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग।

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इन सभी लक्ष्यों के भीतर भी अनेक बिंदु हैं। कुल मिलाकर इन लक्ष्यों को पाने के लिए यदि सरकारें प्रतिबद्ध होती हैं, तो जाहिर है समाज का और देश का विकास होगा, असमानता दूर होगी, अर्थव्यवस्था में सुधार होगा और पर्यावरण सुधरेगा। पर हमारी सरकार के विकास का आलम यह है कि हरेक वर्ष हम इस इंडेक्स में पिछड़ते जाते हैं और अब कुल 165 देशों में से 120वें स्थान पर हैं।

पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान को छोड़कर हरेक पड़ोसी देश इस सूची में हमसे आगे है। चीन 57वें स्थान पर, भूटान 75वें, श्रीलंका 87वें, नेपाल 96वें, म्यांमार 101वें, और बांग्लादेश 109वें स्थान पर है। पाकिस्तान का स्थान 129वां है और अफ़ग़ानिस्तान 137वें स्थान पर है। एशियाई देशों में सबसे बेहतर स्थान दक्षिण कोरिया का है, यह 28वें स्थान पर है। यूनाइटेड किंगडम 17वें, कनाडा 21वें, अमेरिका 32वें, ऑस्ट्रेलिया 35वें और रूस 46वें स्थान पर है।

दुनिया जिन देशों के शासकों को तानाशाह, निरंकुश या फिर राजशाही के तौर पर जानती है, ऐसे देश भी भारत से बेहतर काम कर रहे हैं। पोलैंड 15वें, बेलारूस 24वें, हंगरी 25वें, क्यूबा 49वें, अज़रबैजान 55वें, ब्राज़ील 61वें, कोलंबिया 68वें, टर्की 70वें, यूनाइटेड अरब एमिरातेस 71वें, जॉर्डन 72वें, इजिप्ट 82वें, सऊदी अरब 98वें और फिलीपींस 103वें स्थान पर है।

सतत विकास इंडेक्स 2021 में सबसे बेहतर प्रदर्शन क्रम से फ़िनलैंड, स्वीडन, डेनमार्क, जर्मनी और बेल्जियम का रहा है। इस इंडेक्स में सबसे नीचे के देशों में सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक। सूडान, चाड, सोमालिया और लाइबेरिया हैं।

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हमारे देश का बेहतर प्रदर्शन केवल जलवायु परिवर्तन रोकने के उपायों में रहा है। जिन मामलों में हम दुनिया के निकृष्ट देशों के साथ खड़े हैं, वे हैं – बेहतर जीवन स्तर, शिक्षा, कार्यस्थल पर लैंगिक समानता, अनुसन्धान और विकास में खर्च, झुग्गियों में बसने वाली शहरी आबादी, वायु प्रदूषण में पीएम2.5 का स्तर, स्वच्छ जल आपूर्ति और प्रजातियों का विनाश। इसके अतिरिक्त बिना आरोप के जेल में बंद कैदी, सामाजिक सुरक्षा, महिलाओं की सुरक्षा और प्रेस की आजादी के सन्दर्भ में भी हम दुनिया के पिछड़े देशों के साथ खड़े हैं।

इस रिपोर्ट से इतना तो स्पष्ट है कि विकास का नारा देना और सही में विकास करना में कोई सम्बन्ध नहीं है। मोदी सरकार एक हिंसक, रुढ़िवादी और विभाजित समाज तैयार कर रही है, और जाहिर है ऐसे समाज से और सरकार से विकास की उम्मीद भी बेमानी है। 

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