The Kashmir File : मोदी सरकार कश्मीरी पंडितों का भला चाहती है तो विपक्ष के सवालों का क्यों नहीं देती जवाब, अब तक क्या किया?

The Kashmir File : केंद्र सरकार भले की लाख दावे कर ले, लेकिन उसके पास तथ्यों के बताने के लिए कुछ नहीं हैं। कांग्रेस की 2004 ओर 2008 की नीतियों से आशाएं बंधी थी, लेकिन मोदी सरकार आने के बाद से घाटी में माहौल पहले से ज्यादा खराब हुए हैं। धारा 370 हटने बाद भी स्थिति पहले जैसे हैं।

Update: 2022-03-17 05:59 GMT

मोदी सरकार आने के बाद से घाटी में माहौल पहले से ज्यादा खराब हुए हैं। धारा 370 हटने बाद भी स्थिति पहले जैसे हैं।

द कश्मीर फाइल और कश्मीरी पंडितों के हालात पर धीरेंद्र मिश्र की रिपोर्ट

नई दिल्ली। पिछले कुछ दिनों से बॉलीवुड फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' सुर्खियों में है। अब तो इस फिल्म को लेकर कहीं-कहीं विरोध की धटनाएं भी सामने आने लगी हैं। दरअसल, यह फिल्म 1990 के दशक में कश्मीर घाटी से भारी संख्या में कश्मीरी पंडितों के पलायन की कहानी से जुड़ी है। फिल्म रिलीज होने के बाद इस बात पर बहस फिर से शुरू हो गई है। सवाल यह उठाए जा रहे हैं कि अब तक कश्मीरी पंडितों के लिए मोदी सरकार ने क्या-क्या किया?

ये सवाल वाजिब हैं। ऐसा इसएिल कि पांच अगस्त 20198 को अनुच्छेद 370 और 35ए जैसा विशेष दर्जा समाप्त होने के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि अब तेजी से वहां का विकास होगा। जम्मू-कश्मीर को मुख्यधारा में जोड़ने में मदद मिलेगी। हालांकि, इस मुद्दे पर विवाद की वजह से पीडीपी—भाजपा सरकार जम्मू—कश्मीर में गिर गई थी। शाह ने कहा था कि आर्थिक संकट को दूर किया जाएगा और कश्मीरी पंडितों को न्याय दिलाएंगे। लेकिन जब इसको लेकर सवाल पूछे जाते हैं तो सरकार पिछले दरवाजे से मुंह छिपाती नजर आती है।

तय है अब इसका जवाब मोदी सरकार से ही मांगे जाएंगे, क्योंकि केंद्र और जम्मू-कश्मीर दोनों की सत्ता उसके हाथों में है। लेकिन केंद्र विपक्ष की ओर से पूछे गए सवालों का जवाब देने से बच रही है। आइए हम आपको बताते हैं कि पिछले 32 सालों में कश्मीरी पंडितों के लिए क्या-क्या हुआ और क्या होना बाकी है। साथ ही मोदी सरकार कश्मीर फाइल को लेकर विपक्ष के सवालों का क्यों नहीं दे रही है जवाब?

1. नौकरी

साल 2014 से केंद्र में मोदी सरकार है। 2015 में केंद्र ने कश्मीरी प्रवासियों के लिए प्रधानमंत्री विकास पैकेज 2015 शुरू किया। 3 हजार सरकारी नौकरियां निकाली गईं। फरवरी 2022 में सरकार ने राज्यसभा में बताया कि इस पैकेज के जरिए अब तक 1739 प्रवासियों को नौकरी दी जा चुकी है, जबकि 1 हजार 98 प्रवासियों का चयन किया गया है। अभी नियुक्ति का काम बाकी है। इसके लिए सरकार ने 1080 करोड़ रुपए का फंड रखा है।

2. आवास

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने फरवरी 2022 में राज्यसभा में बताया था कि कश्मीरी प्रवासियों को राज्य में आवास देने के मकसद से 920 करोड़ रुपए की लागत से घाटी में 6 हजार ट्रांजिट आवास बनाए जा रहे हैं। इन आवासों में उन प्रवासियों को रखा जाएगा जो सरकारी नौकरी के लिए घाटी में लौटकर आएंगे। हकीकत यह है कि अभी तक एक भी लोगों को इस योजना के तहत आवास नहीं मिले हैं। पिछले 5 साल में 610 प्रवासियों को उनकी जमीन वापस दिलाई गई। 19 जगहों पर ये फ्लैट बनाए जा रहे हैं उनमें बांदीपोरा, बारामूला, बडगाम समेत कई जगहें शामिल हैं। इसके अलावा अस्थायी व्यवस्था के तौर पर सरकार ने लौटे लोगों के लिए 1025 शेल्टर बना दिए हैं।

3. पुनर्वास

1990 के दशक में कश्मीर घाटी से हजारों परिवारों ने पलायन किया था, लेकिन लौटने वाले कुछ लोग ही हैं। 17 मार्च, 2021 को राज्यसभा में गृह मंत्रालय ने बताया था कि पिछले कुछ सालों में सरकारी नौकरियों के लिए 3,800 कश्मीरी प्रवासी घाटी वापस लौटे हैं। यहां पर सरकार के दावों में झोल यह है कि जब नौकरियां केवल 1739 को मिले तो 38 सौ प्रवासी कैसे घाटी लौटे? 19 जगहों पर ये फ्लैट बनाए जा रहे हैं। इनमें बांदीपोरा, बारामूला, बडगाम समेत कई जगहें शामिल हैं।

इससे पहले दिसंबर 2011 में मनमोहन सरकार ने लोकसभा में बताया था कि घाटी में किसी भी कश्मीरी प्रवासी परिवार की वापसी नहीं हुई।

4. आर्थिक मदद

17 मार्च 2021 को केंद्र सरकार ने लोकसभा में बताया था कि इन प्रवासी परिवारों को हर महीने 13 हजार रुपए की नकद राशि दी जाती है।कश्मीरी प्रवासियों को हर महीने 9 किलो चावल प्रति व्यक्ति, 2 किलो आटा प्रति व्यक्ति और 1 किलो शक्कर हर परिवार दी जाती है। 2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने जम्मू-कश्मीर के लिए प्रधानमंत्री विकास पैकेज (पीएमडीपी) का ऐलान किया। इसके अन्तर्गत जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए 80 हजार 68 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया और कश्मीरी पंडितों को घाटी में वापस बसाने के लिए कई योजनाओं पर काम शुरू हुआ। इससे कितनों को लाभ मिला यह अभी स्पष्ट नहीं हैं।

5. अनुच्छेद 370 और 35ए हटने के बाद क्या हुआ

जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के हटने और राज्य के दो टुकड़े कर इसे केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद से पूरी दुनिया में यह सवाल उठ रहे हैं कि आखिर मोदी सरकार की योजना क्या है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा छीन लिया और इससे लद्दाख को अलग कर केंद्र शासित प्रदेश बनाने का एलान किया गया। सरकार ने इस कदम के साथ ही कश्मीरी पंडितों के घाटी में पुनर्वास की कोशिशों को तेज किया है। आतंकवाद बढ़ने के कारण जम्मू कश्मीर छोड़कर गये कश्मीरी पंडितों में से 610 को उनकी संपत्तियां वापस कर दी गयी हैं। जम्मू कश्मीर विस्थापित अचल संपत्ति (संरक्षण, सुरक्षा एवं हताशा में बिक्री निषेध) कानून,1997 के तहत संबंधित जिलों के जिलाधिकारी विस्थापितों की अचल संपत्ति के कानूनी संरक्षक होते हैं।

6. नहीं बदले हालात

फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती, गुपकार के नेताओं का कहना है कि जम्मू—कश्मीर में आज भी हालात पहले जैसे हैं। आर्थिक विकास नहीं हुए। बेरोजगारी चरम पर है। हां, मोदी सरकार की नीतियों की वजह से यहां के माहौल जरूर खराब हुए हैं। नफरत के बीज बोए गए हैं। विपक्ष के दावों में दम इसलिए है कि मोदी सरकार इस बारे में स्पष्ट डाटा देने में अभी तक विफल रही है। विधानसभा चुनाव अभी तक वहां नहीं कराए गए हैं। आतंकवाद घटनाएं बदस्तूर जारी है।

7. कश्मीरी पंडितों की मौजूदा मांगें?

कश्मीरी पंडितों ने हाल ही में बजट पेश होने से पहले मांग की थी कि केंद्र शासित प्रदेश के सालाना बजट में से 2.5 फीसदी को प्रवासियों के पुनर्वास के लिए खर्च किया जाना चाहिए। इसके साथ ही कश्मीरी पंडितों की मांग थी कि सरकार जल्द से जल्द अधिवास प्रमाणपत्र यानी डोमिसाइल सर्टिफिकेट लोगों के लिए जारी करे, ताकि कश्मीरी पंडितों को घाटी में अपना हक मिले और वे कश्मीर की मुख्यधारा में लौटें। इसके अलावा परिवारों ने मिलने वाली राहत राशि को भी 13 हजार से बढ़ाकर 25 हजार करने की मांग उठाई है।

8. कांग्रेस सरकार की नीतियां

वहीं कश्मीरी प्रवासियों की वापसी के लिए मनमोहन सरकार ने 2004 और 2008 में दो पैकेज जारी किए थे। 2004 में जो पैकेज जारी किया गया उससे जम्मू के 4 इलाकों में दो कमरों के 5,242 मकान बनाए गए। इसके अलावा कश्मीर के बड़गाम जिले के शेखपोरा में 200 फ्लैट भी बनाए गए। गृह मंत्रालय के मुताबिक, इन 200 फ्लैट्स में से 31 फ्लैट उन स्थानीय प्रवासियों को दिए गए, जो घाटी में ही अपना घर छोड़कर दूसरी जगह चले गए थे। 2004 में कश्मीरी पंडितों के लिए बजट में 1618.4 करोड़ रुपए का प्रावधान हुआ। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने पंडितों को राहत देने जैसी कई योजनाओं का एलान किया, जिसे बाद में मोदी सरकार ने जोर-शोर से आगे बढ़ाया।

2008 के बाद मनमोहन सरकार में जो स्कीम लाई गई उसमें कुछ हद तक कामयाबी मिलती दिखी। ऐसा इसलिए कि भाजपा सरकार ने भी इस पॉलिसी को जारी रखा, लेकिन 2017 के बाद केंद्र की नीतियों की वजह से वादी में माहौल ज्यादा खराबा हुआ। इसका सीधा असर यह हुआ कि लोगों को अभी जो लाभ मिलना चाहिए वो नहीं मिल सका है।

9. कितने कश्मीरी पंडितों ने किया था पलायन?

1990 में जब घाटी में आतंकवाद का दौर शुरू हुआ तो कश्मीरी पंडितों को उनकी जगह से भगा दिया गया। फरवरी 2022 में सरकार ने राज्यसभा में बताया कि ऐसे करीब 44 हजार 684 कश्मीरी प्रवासी परिवार हैं, जिनमें 1 लाख 54 हजार 712 लोग शामिल हैं।

वहीं 1990 में कश्मीर से विस्थापित हुए लोगों के लिए बनाए गए राहत कार्यालय की रिपोर्ट के मुताबिक आतंकी हिंसा के चलते घाटी से कुल 44 हजार 167 परिवार भागने के लिए मजबूर हुए थे। इनमें से 39 हजार 782 परिवार हिंदुओं के थे। शेष परिवार सिख, बौद्ध और मुस्लिम समुदाय से थे। 1990 में कश्मीर छोड़ने वालों में 90 फीसदी कश्मीरी हिंदू थे। इनमें बड़ी संख्या कश्मीरी पंडितों की थी। इसके बाद गुर्जर, दलित और अन्य समुदाय आते हैं। जम्मू-कश्मीर सरकार की वेबसाइट के मुताबिक घाटी में हिंसा के बाद लगभग 1.6 लाख से लेकर तीन लाख कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोड़ना पड़ा था।

साल 2015 में भी लोकसभा में कश्मीरियों के विस्थापन पर मोदी सरकार से जब सवाल पूछा गया तो बताया था कि 1990 के शुरुआती वर्षों में 62 हजार ऐसे परिवार थे, जिन्हें आतंकवाद की वजह से घाटी छोड़नी पड़ी। 17 मार्च 2020 को जब यही सवाल दोहराया गया तो गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने बताया कि 1990 के बाद से 64 हजार 951 कश्मीरियों के परिवार घाटी छोड़ चुके थे।

10. पलायन को लेकर अलग-अलग दावे क्यों?

बताया जा रहा है कि केंद्र सरकार की ओर से विस्थापित कश्मीरी पंडितों की संख्या ठीक से इसलिए नहीं बताई जा सकी है कि उनके पंजीकरण की संख्या साल दर साल लगातार बढ़ती रही है। कश्मीर पर किताब लिखने वाले एलेक्जेंडर इवान्स का मानना है कि 1990 के बाद कश्मीर छोड़ने वाले कुल हिंदुओं में से करीब 1.6 से 1.7 लाख कश्मीरी पंडित थे। हालांकि, इनकी संख्या संख्या ज्यादा भी हो सकती है। वहीं नोरविजियन रिफ्यूजी काउंसिल के इंटरनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर के आंकड़ों की मानें तो 1990 के बाद से 2.50 लाख पंडित विस्थापित हुए।

अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के आंकड़ों के मुताबिक आतंकी हिंसा के बाद कश्मीर से तीन लाख पंडित विस्थापित हुए थे। कश्मीर और अनुच्छेद 370 पर किताबें और लेख लिखने वाले सुप्रीम कोर्ट के चर्चित वकील एजी नूरानी के मुताबिक घाटी को छोड़ने वाली कश्मीरियों की संख्या कभी सही तौर पर सामने नहीं आई। यह आंकड़ा सात से आठ लाख के बीच भी हो सकता है।

11. पलायन के बाद कहां बसे कश्मीरी पंडित?

1990 के बाद कश्मीर छोड़ चुके 64 हजार 951 परिवारों में से सबसे ज्यादा 43 हजार 618 परिवार जम्मू में रह रहे हैं। दिल्ली में 19 हजार 338 कश्मीरियों के परिवार बसे हैं। 1995 परिवार बाकी राज्यों में रह रहे हैं।

कश्मीर फाइल पर विरोधियों के सवालों का केंद्र के पास नहीं है जवाब!

स्वतंतत्र जांच आयोग की मांग

AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने लोकसभा में 'द कश्मीर फाइल' फिल्म को लेकर जारी विवाद के लिए केंद्र सरकार से कश्मीरी पंडितों के पलायन पर एक स्वतंत्र फेक्ट-फाइडिंग कमीशन की मांग की है। असदुद्दीन ओवैसी ने पूछा है कि फिल्म देखकर लोग मुसलमानों के खिलाफ वीडियो क्यों बन रहे हैं। क्यों मुसलमानों के खिलाफ नफरत को बढ़ावा दिया जा रहा है। कितने वीडियो सोशल मीडिया पर पड़े हैं, जिनमें सिनेमा हॉल में कोई भी खड़े होकर मुसलमानों के खिलाफ भाषण दे रहा है, ऐसा क्यों?

ओवैसी का कहना है कि 209 कश्मीरी पंडितों को मारा गया, मेरे पास नाम हैं पूरे, जिन्हें मैं मुहैया करा सकता हूं। मगर जो 1500 हिंदू मारे गए, जो कश्मीरी पंडित नहीं थे। वो डोगरा इलाके के थे। उनके लिए कौन आंसू बहाएगा। देश के प्रधानमंत्री को फिल्म देखकर कश्मीरी पंडितों की तकलीफ याद आई। सात साल से क्या कर रहे थे?

असम के दंगों में तीन से चार हजार मुसलमानों को मारा गया। क्या मुरादाबाद में कांग्रेस की सरकार थी तब 500 से ज्यादा मुसलमानों को पुलिस ने गोली मारकर उनका कत्ल नहीं किया गया, वो नरसंहार नहीं था। उसकी भी बात होनी चाहिए। नरसंहार तो सब जगह हुआ है।

लखीमपुर खीरी पर भी बने फिल्म : अखिलेश यादव

द कश्मीर फाइल्स पर अखिलेश ने कहा कि अगर यह मूवी बन सकती है तो लखीमपुर फाइल्स (Lakhimpur Files) भी बनाई जा सकती है। लखीमपुर में जीप से कुचलने वाली घटना पर लखीमपुर फाइल्स क्यों नहीं?

जगमोहन जिम्मेदार, सरकार कुछ क्यों नहीं किया : केरल कांग्रेस

केरल कांग्रेस ने फिल्म में दिखाए गए विषय को लेकर कहा कि कश्मीरी पंडितों के विस्थापन के लिए उस समय के गवर्नर रहे जगमोहन सिंह जिम्मेदार थे। जगमोहन सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य थे, जबकि उस वक्त केंद्र में बीजेपी की ओर से समर्थित वीपी सिंह की सरकार थी। उसके बावजूद कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ और सरकार ने कुछ नहीं किया, ऐसा क्यों?

जमीन पर अभी तक कुछ नहीं हुआ : सुप्रिया सूले

एनसीपी सांसद और नेता सुप्रिया सुले ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने कश्मीरी लोगों के लिए हजारों नौकरियां देने का आश्वासन दिया था। इस बारे में जमीन पर कुछ भी नहीं हुआ क्यों? केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद हकीकत में क्या बदलाव हुए? सांसद ने जम्मू-कश्मीर की जीडीपी और कर्जे के हालात को चिंताजनक बताया और वहां स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट को भी असफल बताया। उन्होंने पूछा है कि अगर कोई बच्चा कुपोषित रह जाता है, तो एक मां उसके साथ क्या करती है? सात सालों तक उसे अच्छा खाना-पीना देगी और उसे स्वस्थ बनाएगीं मेरा बच्चा कुपोषित है, यह चीख पुकार करती हुई भटकेगी नहीं।

Tags:    

Similar News