Uttarakhand में लॉ एंड ऑर्डर की बड़ी समस्या बन सकता है 'भूसा', राज्य से बाहर ले जाने पर लगी पाबंदी

Uttarakhand : उत्तराखंड में गेहूं के भूसे की कीमतों पर सरकार ने रोक लगाने के लिए आदेश जारी कर दिया है, इसके साथ ही जिलों के अधिकारी भी इस आदेश की तामील के लिए जुट गए हैं....

Update: 2022-05-07 11:45 GMT

Uttarakhand में लॉ एंड ऑर्डर की बड़ी समस्या बन सकता है 'भूसा', राज्य से बाहर ले जाने पर लगी पाबंदी

सलीम मलिक की रिपोर्ट

Uttarakhand : हरियाणा और पंजाब सरकार द्वारा गेंहू से निकलने वाले भूसे के निर्यात (Straw Export) पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद उत्तराखंड राज्य (Uttarakhand) में पैदा हुआ भूसे का संकट प्रदेश की कानून और व्यवस्था के लिए चुनौती बन सकता है। खुद सरकार के जिम्मेदार ओहदों पर बैठे अधिकारियों ने यह स्वीकारोक्ति की है।

गेंहू कटाई के दिनों में उत्तराखंड में भूसे की कीमतें (Straw Price In Uttarakhand) दोगुने से भी अधिक पहुंचने के बाद चौकन्नी हुई सरकार ने भूसे की बाबत कई तरह की पाबंदी लगाते हुए बताया है कि यदि भूसे की कीमतों को स्थिर नहीं किया गया तो राज्य में कृषि की हानि, सुगम परिवहन सहित कानून व्यवस्था को नुकसान हो सकता है।

समस्या के समाधान के लिए उत्तराखंड राज्य (Uttarakhand) में गेहूं के भूसे की कीमतों पर सरकार ने रोक लगाने के लिए बकायदा आदेश जारी कर दिया है। इसके साथ ही जिलों के अधिकारी भी इस आदेश की तामील के लिए जुट गए हैं। पशुपालन विभाग के सचिव डॉ. बीवीआरसी पुरूषोत्तम ने राज्य के सभी जिलाधिकारियों के लिए यह आदेश जारी किया है।

राज्य के पशुपालन विभाग के अनुसार राज्य में हर वर्ष अप्रैल व मई माह के दिनों में गेहूं की फसल कटाई (Wheat Harvest) के बाद भूसा सबसे ज्यादा उपलब्ध होता है। पूरे साल के दौरान इसी समय भूसा न्यूनतम बाजार भाव पर उपलब्ध होता है लेकिन हरियाणा एवं दूसरे राज्य द्वारा दूसरे राज्यों को भूसे की आवक पर रोक लगाने के कारण उत्तराखंड राज्य (Uttarakhand) में भूसे की दरों में जबरदस्त उछाल आ गया है।

पिछले सालों में गेहूं की फसल की कटाई के बाद ही भूसे का औसतन बाजार भाव जो चार सौ से लेकर छः सौ रुपए कुंतल होता था वह इन दिनों बढ़कर नौ सौ रुपए से लेकर तेरह सौ रुपए प्रति क्विंटल तक चला गया है।

पशुपालकों के अनुसार हरियाणा एवं अन्य राज्यों द्वारा भूसे पर रोक लगाने के कारण उत्तराखण्ड राज्य (Uttarakhand) में भी भूसे की बेहद कमी हो गई है। इसके साथ ही भूसा व्यापारियों द्वारा भूसे को बड़ी मात्रा में गैरजरूरी ढंग से स्टॉक कर कालाबाजारी को बढ़ावा दिया जा रहा है। ऐसी परिस्थितियों में भूसे की कमी के कारण पशुस्वामियों द्वारा बड़ी संख्या में पशुओं को खुला छोड़े जाने की आशंका है। यदि ऐसा हुआ तो भूसे के अभाव में छुट्टा छोड़े गए पशुओं के कारण कृषि उपज को हानि, सड़क परिवहन में अवरोध व दुर्घटनाएं तथा कानून व्यवस्था को चुनौती पैदा होने की भी आशंका हो सकती है।

ऐसे में राज्य के पशुपालकों के पशुओं के लिये पर्याप्त मात्रा व उचित दरों में भूसा व चारा उपलब्ध हो इसके लिए भूसे को ईंट भट्टा एवं अन्य उद्योगों में इस्तेमाल और अगले पन्द्रह दिनों तक इन उद्योगों को भूसा बेचने पर भी रोक लगाने के साथ भूसा विक्रेताओं द्वारा भूसे का अनावश्यक जमाखोरी एवं कालाबाजारी पर रोक लगायी जाये। भूसे को राज्य से बाहर ले जाने व जिलों में पुराल जलाने पर तत्काल रोक लगाने के लिए अधिकारियों को हिदायत दी गई है।

इस मामले में नैनीताल के जिलाधिकारी धीरज सिंह गर्ब्याल बताया कि शासन के निर्देश पर दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा-144 के प्राविधानों के तहत आज 07 मई शनिवार से निषेधाज्ञाजारी कर दी गई है। जिसके तहत भूसे को ईट भट्टा एवं अन्य उद्योगों में इस्तेमाल ना किये जाने और इन उद्योगों को भूसा बेचने पर आगामी 15 दिन तक रोक लगाई गई है। भूसा विक्रेताओं द्वारा भूसे की अनावश्यक जमाखोरी न तो की जायेगी न करवाई जायेगी।


उन्होने कहा कि जिले में उत्पादित भूसे को राज्य से बाहर ले जाने व पुराल जलाने पर तत्काल रोक लगाई जाती है। गर्ब्याल ने बताया कि यह आदेश आगामी 22 मई तक प्रभावी रहेगा, बशर्ते कि इससे पूर्व इसे निरस्त न कर दिया जाये।

उन्होने बताया कि इस आदेश को जिला कार्यालय, मुख्य पशुचिकित्साधिकारी कार्यालय, तहसील मुख्यालयों, विकासखण्ड मुख्यालयों, थानों, नगर पालिका परिषद/नगर पंचायतों के सूचना पट्टों पर चस्पा करने के साथ-साथ सभी थानाध्यक्षों द्वारा लाउडस्पीकर या डुग-डुगी पिटवाकर इसका व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार करवाया जायेगा। आदेशों का उल्लघंन भारतीय दण्ड संहिता की धारा-188 के अर्न्तगत दण्डनीय होगा। मामला विशेष परिस्थितियों का है, और इतना समय नही है कि सभी सम्बन्धित पर इसकी तामीली करके उनका पक्ष सुना जा सके। इसलिए आदेश एक पक्षीय पारित किया गया है।

दूसरी ओर इस बाबत मुख्य कृषि अधिकारी डा. वीकेएस यादव ने गेंहू किसानों से अपील करते हुए कहा है कि गेंहू फसल की कटाई-मंडाई के बाद वह भूसा जलाने के बजाय अपने नजदीकी भूसा संग्रह केन्द्र में उपलब्ध करा दें जिससे पशुपालकों को भूसे की कमी की समस्या का समाधान होने के साथ पशुओं को सूखा चारा उपलब्ध हो सके।

मुख्य कृषि अधिकारी ने कहा कि जिन किसानों ने अपनी गेहूं की फसल कम्बाईन से कटाई है वह गेंहू की फसल के अवशेष को खेत में न जलायें बल्कि जो कस्टम हायरिंग सेन्टर योजना के अर्न्तगत स्ट्रारीपर अनुदान पर उपलब्ध कराये गये है उनसे किराये पर भूसा तैयार करा कर निकटतम भूसा संग्रह केन्द्र पर उपलब्ध करायें। गेंहू फसल के अवशेष जलाने से जहां पर्यावरण को नुकसान होता है तो दूसरी तरफ पशुओं के लिए अच्छा चारा भूसा भी जल कर खत्म हो जाता है।

Tags:    

Similar News