महामारियों और आपदा में संपत्ति बढ़ाते पूंजीपति, जनता की मदद के नाम पर महंगी दवाएं और टीके से भरते बाजार

पूंजीवादी व्यवस्था चंद पूंजीपति/अरबपति पैदा करता है, और पूंजीवाद के पनपने के लिए समाज का अस्थिर होना और तथाकथित आपदाएं बहुत जरूरी हैं, इसे प्रत्यक्ष तौर पर कोविड 19 के दौर में दुनिया ने प्रत्यक्ष तौर पर देख लिया...

Update: 2022-07-25 09:17 GMT

पूंजीवाद के पनपने के लिए समाज का अस्थिर होना और तथाकथित आपदाएं बहुत जरूरी हैं, इसे प्रत्यक्ष तौर पर कोविड 19 के दौर में दुनिया ने प्रत्यक्ष तौर पर देख लिया

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

The World would never be normal again. रूस-यूक्रेन युद्ध के 150 दिन पूरे हो गए और अब समाचार आने भी कम हो गए। इससे पहले कोविड 19 से पूरी दुनिया अस्त-व्यस्त थी। कोविड 19 से संक्रमितों की संख्या फिर से बढ़ने लगी है। अब, दुनिया भर से भीषण तापमान, जंगलों की आग, बाढ़, सूखा और ग्लेशियर के तेजी से पिघलने की खबरें आ रही हैं। इस बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मंकीपॉक्स को भी वैश्विक आपदा घोषित कर दिया है।

राजनैतिक तौर पर भी दुनिया अस्थिर है – इस समय पूंजीपतियों और निरंकुश शासकों का दुनिया में वर्चस्व है। यूनाइटेड किंगडम में राजनैतिक अस्थिरता है। फिलीपींस में तानाशाह ने सत्ता संभाल ली है। म्यांमार में फ़ौज सत्ता में है और अफ़ग़ानिस्तान में आतंकवाद का पर्याय रहे गिरोह का शासन है। श्रीलंका की जनता सडकों पर है। अमेरिका में ट्रम्प की परंपरा अब सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बढ़ा रहे हैं। यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैण्ड और हमारे देश में महंगाई से जनता त्रस्त है। अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के देश तानाशाही झेल रहे हैं और प्रशांत महासागर के देश डूबने के कगार पर हैं।

कोविड 19 के बाद से कहा जाने लगा था कि इसके दौर के बाद दुनिया सामान्य हो जायेगी, पर अब सामान्य कुछ भी नहीं है। कोविड 19 के दौर में दुनिया के अस्थिर होने का कारण सबको पता था, पर अब कारण हरेक दिन नए स्वरुप में हमारे सामने आ रहे हैं। आप पिछले चार वर्षों के समाचार को देखें तो केवल आपदा ही नजर आयेगी। एक आपदा का समाचार पहले पृष्ठ से तभी समाचारपत्रों के अन्दर के पन्नों तक पहुंचता है, जब दूसरी आपदा सामने आती है।

कुछ आपदाएं तो प्राकृतिक होती हैं, पर इससे भी अधिक आपदाएं जो दुनिया झेलती है वह पूंजीवादी व्यवस्था की देन है। पूंजीवादी व्यवस्था चंद पूंजीपति/अरबपति पैदा करता है, और पूंजीवाद के पनपने के लिए समाज का अस्थिर होना और तथाकथित आपदाएं बहुत जरूरी हैं। इसे प्रत्यक्ष तौर पर कोविड 19 के दौर में दुनिया ने प्रत्यक्ष तौर पर देख लिया।

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इस दौर में पूरी दुनिया भुखमरी, बेकारी और आर्थिक तौर पर गरीब होती रही, पर दुनिया में अरबपतियों की संख्या और पूंजी बढ़ती रही। पूंजीपतियों को अस्थिरता के लिए ऐसा शासक चाहिए जो केवल उनका ध्यान रखे और जनता के हितों के बारे में रत्ती भर भी ना सोचे। जाहिर है ऐसे शासक कट्टर दक्षिणपंथी विचारधारा वाले निरंकुश शासक ही हो सकते हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि दुनियाभर में ऐसे ही शासक सत्ता में हैं और हरेक जगह सत्ता की नीतियाँ पूंजीपति तय करते हैं। सत्ता के गलियारों में आम जनता की नहीं बल्कि पूंजीपतियों का जमावड़ा रहता है, जिनके हितों का ध्यान सत्ता अपने तरीके से रखती है। दरअसल पूंजीपति ही सत्ता पर काबिज रहते हैं, मुखौटा थोड़ा उदार सा होता है, और मुखौटे के अन्दर जनता को तबाह करने वाले भाव रहते हैं। जाहिर है, पूंजीवादी व्यवस्था में सामान्य आदमी बेगाना है, अधिकार-विहीन है, इसलिए पूरा समाज अस्थिर है।

पूंजीवादी व्यवस्था सबसे पहले प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार जमाती है, उसे लूटती है और मुनाफा कमाकर उसे तहस-नहस कर जाती है। पूरी दुनिया में ऐसा ही हो रहा है। संसाधनों को लूटने के लिए सत्ता और पूंजीवाद एक ही बहाने बनाते हैं – जल संसाधनों को यह कहकर लूटा जाता है कि हरेक तक पानी पहुंचाना है, हरेक खेत तक सिंचाई का पानी पहुंचाना है या फिर हरेक घर तक बिजली पहुंचानी है।

वास्तविकता यही है कि पानी केवल बहुत बड़े खेतों, शहरों और उद्योगों तक ही पहुंचता है। जल संसाधनों को लूटकर पूंजीवाद और सत्ता का गठजोड़ बोतलबंद पानी का और पानी साफ़ करने के आरओ प्लांट और सॉफ्टनर की एक अनोखी दुनिया खडी कर लेते हैं, और नालों से पानी गायब हो जाता है। हरेक को खाना देने के नाम पर पूंजीवाद जंगलों को बड़े पैमाने पर काटकर खेत बना रहा है, खेतों का क्षेत्रफल बढ़ता जा रहा है और साथ ही दुनिया में भूखों की संख्या भी बढ़ती जा रही है।

पूंजीवाद केवल आम जनता की समस्या बढाता है, एक भी समस्या इसने हल नहीं किया है। प्राकृतिक संसाधनों का विनाश होता है, तब घने जंगलों में पनपने वाले वायरस, बैक्टीरिया और रोग फैला सकने वाले दूसरे सूक्ष्मजीव मानव आबादी तक पहुँच जाते हैं, जिनसे कोविड 19 और मंकीपॉक्स जैसे रोग फैलते हैं। जब इस तरह के रोग फैलाते हैं, पूरे दुनिया की सामान्य जनता ही परेशान होती है, मरती है। पूंजीपति, ऐसे दौर में अपनी संपत्ति बढाते हैं, जनता की मदद के नाम पर महंगी दवाएं, टीके से बाजार भर देते हैं। सरकारें भी ऐसे समय दिखावा तो जनता की मदद करने का करती हैं, पर हरेक सरकारी कदम जनता के हिस्से को पूंजीपतियों तक पहुंचाने में मदद करता है। जाहिर है, इस तरीके की वैश्विक महामारी दुनिया में लगातार फैलती रहेगी।

कोविड 19 के दौर में दुनियाभर की सरकारों ने अपनी निरंकुशता बढाने, अपनी शक्तियों को केन्द्रित करने और जनता को खामोश करने का तरीका खोज लिया। यह तो हमारे देश में भी बिलकुल स्पष्ट है। कोविड के बाद से अभिव्यक्ति की आजादी का दमन, धार्मिक उन्माद का विस्तार, विपक्ष का उत्पीडन, बुलडोज़र का हथियार की तरह इस्तेमाल, पुलिस और जांच एजेंसियों का जनता और विपक्ष के उत्पीडन में उपयोग, महंगाई का गुणगान, बेरोजगारी पर मजाक – सबकुछ जो सत्ता पहले अप्रत्यक्ष तौर पर करती थी, अब यह सब सीधे और ताल ठोक कर किया जाने लगा है। कोविड 19 के बाद से सत्ता, पुलिस, सत्ता के समर्थक, जांच एजेंसियां और न्यायालयों के लिखित आदेश – सब एक ही भाषा बोलने लगे हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार प्रचंड गर्मी, असहनीय सर्दी, जंगलों की आग, जानलेवा सूखा, लगातार आती बाढ़ और ऐसी ही दूसरी आपदाओं से पूरी दुनिया बेहाल है, और इन आपदाओं की तीव्रता और आवृत्ति तापमान बृद्धि और जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती जा रही है। इन सबका असर हरेक देश की सामान्य आबादी पर ही पड़ता है। पूंजीवाद और सत्ता इन आपदाओं को प्राकृतिक आपदा साबित करती रहती है, पर यह सब पूंजीवाद की देन है। सत्ता और पूंजीवाद की जुगलबंदी के कारण पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन का असर भुगत रही है।

आज के दौर में तो युद्ध भी केवल दो देशों की जनता या सरकारों का मामला नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया ही युद्ध के नाम पर एक नया युद्ध शुरू करती है। रूस-उक्रेन युद्ध के कारण जब दुनिया में पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति कम होने लगी, तब मानवाधिकार की माला जपने वाले यूरोपीय देश रूस का सतही तौर पर विरोध करते नजर तो आते हैं, पर उससे प्राप्त होने वाले पेट्रोलियम पदार्थों की आपूर्ति बंद नहीं करते। अमेरिका जो अपने आप को मानवाधिकार का मसीहा बताता है, खाड़ी के देशों की मानवाधिकार के मसले पर भर्त्सना करने के बाद भी उनसे तेल खरीदने के लिए नए सिरे से समझौता करता है।

पूंजीवाद ही दुनिया की सबसे बड़ी समस्या है, वास्तविक आपदा है। प्राकृतिक आपदाएं तो एक अंतराल के बाद आती हैं, पर पूंजीवाद द्वारा निर्मित आपदाएं तो जनता को लगातार परेशान करती हैं। पूंजीवाद ही सत्ता स्थापित करता है, इसलिए जनता परेशान रहेगी, मरती रहेगी, पूंजीवाद फलता-फूलता रहेगा और दुनिया अस्थिर ही रहेगी। जिस सामान्य स्थिति की हम कल्पना करते हैं, वैसी दुनिया अब कभी नहीं होगी।

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