देश की एक प्रतिशत आबादी के पास 40 प्रतिशत से अधिक संपत्ति, जिसके कारण लोकतंत्र में 99 प्रतिशत लोग चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं
संविधान बनने की प्रक्रिया लंबी और संघर्षपूर्ण रही है, लेकिन आज यह सवाल है कि क्या नागरिकों को उनके संवैधानिक अधिकार मिल पा रहे हैं। यदि अधिकार सुनिश्चित नहीं हो रहे हैं, तो यह लोकतंत्र की गंभीर कमजोरी है....
कानपुर में जयप्रकाश नारायण की स्मृति में व्याख्यान आयोजित, जयप्रकाश नारायण की स्मृति व्याख्यान में संविधान पर चर्चा
कानपुर। समावेशी भारत केंद्र द्वारा कानपुर में जय प्रकाश नारायण स्मृति व्याख्यान माला के अंतर्गत “संविधान की यात्रा : संघर्ष, सपने और सामाजिक न्याय” विषय पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया।
गोष्ठी में देश के प्रख्यात पत्रकारों, शिक्षाविदों, अधिवक्ताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने संविधान, लोकतंत्र और सामाजिक न्याय से जुड़े सवालों पर चर्चा की।
वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया ने जय प्रकाश जयसवाल के व्यक्तित्व और संघर्षों को याद करते हुए कहा कि संविधान नागरिक अधिकारों के सतत संघर्षों से बनता है। उन्होंने कहा कि आज सेकुलरिज्म और समाजवाद जैसे संवैधानिक मूल्यों को कमजोर करने की कोशिशें की जा रही हैं।
उन्होंने आर्थिक असमानता पर चिंता जताते हुए कहा कि देश की एक प्रतिशत आबादी के पास चालीस प्रतिशत से अधिक संपत्ति है, जिसके कारण लोकतंत्र में 99 प्रतिशत लोग चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं हैं।
उन्होंने मताधिकार पर हो रहे हमलों का उल्लेख करते हुए कहा कि एसआईआर के माध्यम से लोगों को वोट देने के अधिकार से वंचित किया जा रहा है तथा संविधान के अनुच्छेद 19(1) के अंतर्गत मिले नागरिक चेतना के अधिकार को भी सीमित किया जा रहा है।
अम्बेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली से आए प्रोफेसर गोपाल प्रधान ने कहा कि संविधान संघर्षों की उपज है और भारत की आज़ादी की लड़ाई एक सतत प्रक्रिया रही है। जब आज़ादी का आंदोलन गांवों तक पहुंचा, तब किसानों ने सड़कों पर उतरकर अपने हक-हकूक को राष्ट्रीय मुद्दा बनाया।
उन्होंने कहा कि मताधिकार सभी नागरिकों को संघर्ष के बल पर मिला है और अब राजनीतिक लोकतंत्र को सामाजिक लोकतंत्र में बदलने की जरूरत है। महात्मा गांधी को याद करते हुए उन्होंने कहा कि किसी भी कानून के निर्माण में नागरिकों की राय अनिवार्य होनी चाहिए, जबकि आज का निजाम समाज के बड़े हिस्से की आवाज़ को नजरअंदाज कर रहा है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर अपूर्वानन्द ने संविधान पर बात करते हुए वर्तमान व्यवस्था और न्यायपालिका की भूमिका पर सवाल उठाए।
उन्होंने कहा कि संविधान बनने की प्रक्रिया लंबी और संघर्षपूर्ण रही है, लेकिन आज यह सवाल है कि क्या नागरिकों को उनके संवैधानिक अधिकार मिल पा रहे हैं। यदि अधिकार सुनिश्चित नहीं हो रहे हैं, तो यह लोकतंत्र की गंभीर कमजोरी है।
उन्होंने समाज में बढ़ती दरार पर चिंता जताते हुए कहा कि जब तक पूरा समाज इस विभाजन को महसूस नहीं करेगा, तब तक अपेक्षित परिवर्तन संभव नहीं है। कर्तव्य और अधिकार की चर्चा करते हुए उन्होंने हालिया बहराइच घटना के संदर्भ में न्यायालय के निर्णय का उल्लेख किया और कहा कि आज कुछ निर्णय संविधान के बजाय धर्मग्रंथों के हवाले से दिए जा रहे हैं, जिसमें बहराइच कोर्ट के फैसले में मनुस्मृति का उल्लेख चिंताजनक है।
कार्यक्रम में प्रोफेसर शरद जयसवाल ने विषय प्रवर्तन किया तथा डॉ. गुंजन सिंह ने संचालन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता सईद नकवी ने की।
गोष्ठी में प्रियम्वद, अनीता मिश्रा, नीलम तिवारी, अवधेश सिंह, खान फारुख, डॉ. अब्दुल्ला फ़ैज़, रंगकर्मी संजीबा, पंकज चतुर्वेदी, कमल किशोर श्रमिक, रमाशंकर, अधिवक्ता मानविका, राजीव यादव, राजन पांडेय सहित अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।