जी20 के लिए जिन लाखों लोगों की दुकान-मकान तोड़ बनाया गया बेघर-बेरोजगार, उनके पुनर्वास की सरकार के पास नहीं कोई योजना
G20 Summit Delhi : दुनियाभर के पूँजीपति एक तरफ तो अपना माल बेचकर मुनाफा बटोरना चाहते हैं, मगर दूसरी तरफ एक बड़ी आबादी की जेब से वे पहले ही पैसे निकाल चुके हैं...
मथुरा। 'जी-20' के राष्ट्राध्यक्षों की नई दिल्ली में आयोजित बैठक के पहले दिन यानी 9 सितंबर को समाजवादी लोकमंच ने मथुरा स्थित बी.एस.ए. इंजीनियरिंग कॉलेज रोड पर नुक्कड़ सभा और पैदल मार्च के माध्यम से विरोध प्रदर्शन किया।
हाथों में "जी-20 डाउन-डाउन", "पेटेंट कानूनों को रद्द करो", "समाजवाद जिंदाबाद!", "साम्राज्यवाद मुर्दाबाद!", "आई.एम.एफ., डब्लू.टी.ओ., विश्व बैंक मुर्दाबाद!" लिखी तख्तियाँ लिए हुए प्रदर्शनकारियों ने अपने नारों के जरिए इस सम्मेलन को आम जनता के टैक्स के पैसे की बर्बादी और बहुराष्ट्रीय कॉर्पोरेट्स द्वारा दुनिया के विभिन्न बाजारों पर कब्जे की योजना बनाने का आयोजन बताया। पैदल मार्च से पूर्व छात्र-छात्राओं के साथ एक विचार-गोष्ठी का भी आयोजन किया गया।
कार्यक्रम में शामिल धर्मेन्द्र आजाद ने बताया कि इस सम्मेलन के दौरान देश के विभिन्न शहरों में आयोजित बैठकों की तैयारी के लिए लाखों लोगों के मकान-दुकान तोड़कर उन्हें बेघर, बेरोजगार बना दिया है। उनके लिए राहत और पुनर्वास की कोई योजना सरकार के पास नहीं है।
अश्विनी कुमार 'सुकरात' ने कहा कि दुनियाभर के पूँजीपति एक तरफ तो अपना माल बेचकर मुनाफा बटोरना चाहते हैं, मगर दूसरी तरफ एक बड़ी आबादी की जेब से वे पहले ही पैसे निकाल चुके हैं। इसी संकट का हल करने के लिए दुनिया की एक फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले कॉर्पोरेट्स जी-20 जैसे समूहों के जरिए लूट के नये तरीके ढूँढ़ते हैं।
स्वदेश सिन्हा ने कहा कि जी-20 सम्मेलन के आयोजन को असल सवालों से बचाने के लिए बेहद चुनिंदा न्यूज एजेन्सियों को ही कवरेज की इजाजत मिली है। वहीं उदय कुमार ने बताया कि एक तरफ मोदी सरकार जी-20 आयोजन पर जनता का अरबों रुपया बहाकर इसे जनता के लिए सौगात बताते हुए 2024 के चुनाव से पहले अपना विज्ञापन कर रही है, तो दूसरी तरफ चीन और रूस के राष्ट्रपतियों के शामिल न होने के कारण इस बैठक का कोई ठोस नतीजा निकलने नहीं वाला है।
प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे सौरभ इंसान ने कहा कि दुनियाभर में जहाँ भी जी-20 का आयोजन होता है, वहाँ इसे विरोध का सामना करना पड़ता है। इंग्लैंड, कनाडा और जर्मनी में तो इसका विरोध बहुत ही बड़े पैमाने पर हो चुका है। इसलिए जागरूक नागरिकों को इस आयोजन के दोनों पक्षों को समझने की कोशिश करनी चाहिए न कि सिर्फ सरकारी दावों को सच मानकर रह जाना चाहिए।
प्रदर्शनकारियों में रवीन्द्र सिंह, पवन सत्यार्थी, योगेश इंसान, आरती करदम, शिल्पी आदि ने भी विशेष सहयोग दिया।