सुप्रीम कोर्ट को देना चाहिए पूरी अरावली श्रृंखला का एक स्वतंत्र और संचयी सामाजिक एवं पर्यावरणीय प्रभाव अध्ययन कराने का निर्देश !

Save Aravalli : जब तक विस्तृत सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन पूरा नहीं हो जाता, तब तक हरियाणा, राजस्थान और गुजरात के 37 अरावली जिलों में लाइसेंस प्राप्त और अवैध, दोनों प्रकार के खनन को पूरी तरह से बंद किया जाना चाहिए...

Update: 2025-12-29 13:59 GMT

Save Aravalli : "अरावली विरासत जन अभियान" ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाई गई अंतरिम रोक का स्वागत करते हुए कहा है कि हालांकि 'विशेषज्ञ समितियां' का यह तय करना कि अरावली का हिस्सा क्या है और क्या नहीं, यह हमारे लिए गंभीर चिंता का विषय है।

"अरावली विरासत जन अभियान" द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि अरावली को परिभाषित करने की आवश्यकता नहीं है; उसे पूर्ण संरक्षण और बचाव की आवश्यकता है। इसके साथ ही मांग की है कि—

सहभागी और पारदर्शी प्रक्रिया : एक ऐसी पूर्णतः सहभागी और पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई जाए, जिसमें खनन से प्रभावित समुदाय शामिल हों। हम ऐसी प्रक्रिया नहीं चाहते जो केवल एमिकस (Amicus), सरकार और अदालत तक ही सीमित होकर रह जाए। गुजरात, राजस्थान और हरियाणा में अरावली श्रृंखला की गोद में रहने वाले लोग, जो अपनी जीविका के लिए अरावली के बेहतर स्वास्थ्य पर निर्भर हैं और जो खनन व स्टोन क्रशिंग गतिविधियों के कारण बुरी तरह प्रभावित हैं, उन्हें अरावली के संबंध में लिए जाने वाले किसी भी निर्णय में शामिल किया जाना अनिवार्य है।

स्वतंत्र प्रभाव अध्ययन : सुप्रीम कोर्ट को निर्देश देना चाहिए कि चारों राज्यों में फैली पूरी अरावली श्रृंखला का एक स्वतंत्र और संचयी (cumulative) सामाजिक एवं पर्यावरणीय प्रभाव अध्ययन कराया जाए। यह अध्ययन मरुस्थलीकरण के खिलाफ हमारी ढाल, महत्वपूर्ण जल पुनर्भरण क्षेत्र (water recharge zone), जलवायु नियामक, प्रदूषण सोखने वाले स्रोत (pollution sink) और वन्यजीव आवास को खनन, रियल एस्टेट, अतिक्रमण, कचरा डंपिंग और उसे जलाने से हुए नुकसान का आकलन करने के लिए आवश्यक है। इस आकलन में पूरी पर्वत श्रृंखला में लोगों के स्वास्थ्य और आजीविका को हुए नुकसान को भी शामिल किया जाना चाहिए।

खनन पर पूर्ण रोक : जब तक विस्तृत सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन पूरा नहीं हो जाता, तब तक हरियाणा, राजस्थान और गुजरात के 37 अरावली जिलों में लाइसेंस प्राप्त और अवैध, दोनों प्रकार के खनन को पूरी तरह से बंद किया जाना चाहिए।

पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र घोषित करना : अरावली श्रृंखला का जो भी हिस्सा शेष बचा है, उसे 'पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र' (Ecologically Sensitive Region) घोषित किया जाना चाहिए, जहाँ किसी भी तरह की विनाशकारी गतिविधि की अनुमति न हो। भारत की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला को "सतत खनन योजनाओं" (Sustainable Mining Plans) की नहीं, बल्कि संरक्षण और सुरक्षा की आवश्यकता है। कोई भी खनन 'सतत' नहीं होता। इसके अलावा, अरावली को सीमित करने वाली सभी परिभाषाओं को निरस्त किया जाना चाहिए।

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