किसान आंदोलन का दूसरा चरण शुरू, अडानी-अंबानी के उत्पादों के बहिष्कार की देश से अपील

किसानों ने तय किया है कि वे अडानी और अंबानी के सभी उत्पादों का बहिष्कार करेंगे। मुकेश अंबानी के जियो सिम का भी किसान विरोध करेंगे...

Update: 2020-12-10 06:32 GMT

राहुल सिंह की रिपोर्ट 

जनज्वार। केंद्र सरकार के तीन नए तीन कृषि कानूनों को रद्द करने को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार व किसान संगठनों की वार्ता विफल हो जाने के बाद किसान अब नए सिरे से अपने आंदोलन को धार देंगे। किसान संगठनों ने यह तय किया है कि वे किसी भी रूप में अपने आंदोलन को हिंसात्मक नहीं होने देंगे और शांतिपूर्ण, लोकतांत्रिक तरीकों से सरकार का विरोध जताएंगे। इस क्रम में वे 14 दिसंबर से अडानी व अंबानी के उत्पादों व मुख्य सत्ताधारी पार्टी भाजपा का बहिष्कार करेंगे। इससे पहले वे दिल्ली से लगे दो अहम हाइवे को जाम कर विरोध जताएंगे।

किसानों ने तय किया है कि वे अडानी और अंबानी के सभी उत्पादों का बहिष्कार करेंगे। मुकेश अंबानी के जियो सिम का भी किसान विरोध करेंगे। जिन किसानों के पास जियो का सिम है, उसे वे अन्य टेलीकाॅम ऑपरेटर के पास पोर्ट कराएंगे। जियो ने कुछ ही सालों में अपने स्कीम के जरिए सबसे अधिक उपभोक्ता हासिल कर लिया है और अगर ऐसे में देश भर के किसान उसके सिम का बहिष्कार कर देंगे तो उसके कस्टमर बेस में बड़ी गिरावट आ जाएगी और उसके टेलीकाॅम सेक्टर के मार्केट लीडर होने के दावे पर सवाल खड़ा हो जाएगा।

किसानों ने यह भी तय किया है कि वे 14 दिसंबर को देश भर में भाजपा कार्यालयों के सामने धरना देंगे और उसके नेताओं का अपनी मांगों के समर्थन में घेराव करेंगे।

बुधवार की बैठक में तय की रणनीति

बुधवार शाम किसान संगठनों ने सिंघु बाॅर्डर पर किसान नेता जगवीर सिंह की अध्यक्षता में बैठक कर यह तय किया कि अब सत्ताधारी भाजपा व देश के प्रमुख औद्योगिक घराने अंबानी व अडानी के विभिन्न प्रकार के उत्पादों का बहिष्कार किया जाएगा। मालूम हो कि मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस व उसके नेता राहुल गांधी लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अडानी व अंबानी को आर्थिक नीतियों में फेवर किए जाने का आरोप लगाते हैं।

सबसे लंबा किसान आंदोलन, न्यू इंडिया का असहयोग आंदोलन

मोदी सरकार के खिलाफ किसानों का यह आंदोलन अबतक का सबसे लंबा किसान आंदोलन है। इस आदंोलन के 15 दिन पूरे हो चुके हैं। इससे पहले 32 साल पहले राजीव गांधी के प्रधानंमंत्री रहते उस समय के सबसे बड़े किसान नेता महेदं्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में पांच लाख किसानों ने दिल्ली में आंदोलन किया था। तब सात दिनों के बाद ही सरकार झुक गई थी और किसानों की मांग मानने को तैयार हो गई थी। लेकिन, इस बार सरकार 15 दिन बाद भी झुकने को तैयार नहीं है। वहीं किसानों की एक सूत्री मांग कि तीन कृषि कानूनों को वापस लिया जाए, को मानने को तैयार नहीं है। किसान संगठनों का कहना है कि वे इससे कम किसी बात पर राजी नहीं होंगे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संबोधनों में अपने शासन में खुद के किए गए कार्यों का हवाला देते हुए ्न्यू इंडिया की बात करते हैं तो किसान का यह नए तरह का आंदोलन इस न्यू इंडिया में गांधी के अहसयोग आंदोलन की तरह है।

तब अंग्रेजों का शासन था तो अंग्रेजी शासन व उसके उत्पाद के खिलाफ असहयोग आंदोलन चलाया गया था, अब अपने देश की राजनीति पार्टियों सत्ता में हैं और देश के औद्योगिक घरानों के उत्पाद हैं तो उनके खिलाफ यह आंदोलन चलाया जा रहा है।

पहले भी जता चुके हैं नाराजगी, विरोध की क्या है वजह

किसानों का मानना है कि आर्थिक मंदी की वजह से दुनिया के कई तरह के उद्योग विफल हो चुके हैं, लेकिन रोटी एक ऐसी चीज है जिसका कारोबार हमेशा चल सकता है। ऐसे में बड़े औद्योगिक घरानों की नजर अब कृषि क्षेत्र पर है। वे कृषि के क्षेत्र में कदम बढाने चाहते हैं और किसानों को भय है कि इससे उनका अपनी जमीनों पर दावा कमजोर हो सकता है और वे कृषि कानून की वजह से किसान से कृषि मजदूर बन कर रह जाएंगे।

इस महीने के आरंभ में अमृतसर में किसान प्रदर्शनकारियों ने विरोध जताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ, रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी और अडाणी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडानी का भी पुतला जलाया था। कुछ मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि किसानों ने जियो के सिम भी जलाकर विरोध जताया था। इसके अलावा रिलायंस के प्रेट्रोल पंप पर पेट्रोल-डीजल नहीं भरवाने की अपील की गई थी।

रिलायंस कृषि क्षेत्र में निवेश बढाने को उत्सुक है। उसने फेसबुक के साथ पार्टनरशिप की है और उसने जियो कृषि नाम से एक ऐप भी लांच किया है जिसके जरिए सप्लाई चेन का विस्तार किए जाने की योजना है। ऐसे में किसानों को यह भय है कि नया कानून इन बड़े औद्योगिक घरानों को फेवर करेगा। धीरे-धीरे उनका दखल कृषि में बढता जाएगा और वे हाशिये पर चले जाएंगे।

वहीं, अडानी समूह द्वारा अनाजों के भंडारण के लिए एक मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किए जाने पर किसान संगठनों का आरोप है कि अडाणी ग्रुप के ऐसे स्टोर में अनाज जमा कर रखा जाएगा और बाद में उसे उच्च कीमत पर बेचा जाएगा। वहीं, अडानी समूह ने इस पर कहा है कि अनाज की स्टोरेज या कीमत तय करने में कंपनी की कोई भूमिका नहीं है। यह केवल एफसीआइ को सेवा-इन्फ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध कराती है। अडानी ने कहा है कि वर्तमान मुद्दों के जरिए जिम्मेवार काॅर्पोेरेट पर कीचड़ उछालने की कोशिश की जा रही है।

किसान न खालिस्तानी हैं, न आतंकवादी

किसान आंदोलन के दौरान उन पर खालिस्तानी होने का आरोप कई तबकों द्वारा लगाया गया। एक केंद्रीय मंत्री ने इसे चीन-पाकिस्तान समर्थित बता दिया। लेकिन, वास्तविकता यह है कि किसान सिर्फ किसान हैं। वे हमारे अन्नदाता हैं। वे हर संकट के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे मजबूत रीढ साबित होते रहे हैं। कोरोना संक्रमण के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ एक बार फिर कृषि साबित हुई। अगर किसानों का आंदोलन खालिस्तान, चीन या पाकिस्तान समर्थित होता तो यह हिंसक भी हो सकता था। किसानों संगठन लगातार खुद के लोगों से और अपने समर्थन में प्रदर्शन करने वालों से धैर्य, संयम व शांति व्यवस्था बनाए रखने की अपिल करते रहे हैं। 

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