उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में गिराई गई 100 साल पुरानी मस्जिद, हाईकोर्ट के आदेश का हुआ उल्लंघन

हाईकोर्ट ने 24 अप्रैल को एक आदेश जारी करते हुए कहा था- 'कोरोना महामारी के कारण उतपन्न परिस्थितियों में बेदखली या विध्वंस का कोई भी आदेश 31 मई तक स्थगित रहेगा।' इसके बावजूद 17 मई को मस्जिद को गिरा दिया गया।

Update: 2021-05-19 07:05 GMT

नदी में बहाये गये मस्जिद के अवशेष 

जनज्वार ब्यूरो। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के रामसनेहीघाट तहसील परिसर में बनी मस्जिद को प्रशासन द्वारा गिरा दिया गया है। यह ब्रिटिशकालीन मस्जिद लगभग 100 साल पुरानी है। इस मस्जिद का नाम गरीब नवाज अल मरूफ़ था। घटना सोमवार 17 मई की रात की है। 17 मई को पुलिस ने मस्जिद के आसपास के क्षेत्र को घेर लिया और स्थानीय लोगों को वहां से भगा दिया। रात में ही बुलडोजर से मस्जिद को गिरा दिया गया। मस्जिद के मलबे को नदी में बहा दिया गया। मस्जिद के चारों तरफ के क्षेत्र में भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया। यह मस्जिद वक्फ बोर्ड में भी सूचीबद्ध है। मस्जिद को लेकर कोई विवाद भी नहीं था।

मस्जिद के स्थानीय इमाम मौलाना अब्दुल मुस्तफा जो मस्जिद समिति के सदस्य भी हैं ने बताया कि यह मस्जिद 100 साल पुरानी है। हजारों लोग यहां पांच वक्त की नमाजअदा करने आते हैं। उन्होंने कहा कि सभी हम सभी लोग डरे हुए थे, इसलिए इस विध्वंस का विरोध करने कोई भी मस्जिद के पास नहीं गया। आज भी आस पास के दर्जनों लोग डर की वजह से अपने घरों को छोड़ रहे हैं।

डीएम ने दी सफाई-

बाराबंकी के डीएम आदर्श सिंह कहते हैं- वे किसी मस्जिद के बारे में नहीं जानते। उन्होंने कहा कि वहां एक अवैध निर्माण था। उत्तर प्रदेश के हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने इसे अवैध घोषित कियाथा। इसी आधार पर उप जिला मजिस्ट्रेट रामसनेहीघाट न्यायालय में न्यायिक प्रक्रिया के अंतर्गत पारित आदेश का पालन करते हुए 17 मई 2021 को इसे ध्वस्त कर दिया गया।

हाईकोर्ट के आदेश का उल्लंघन-

हाईकोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए मस्जिद को गिराया गया है। हाईकोर्ट ने 24 अप्रैल को एक आदेश जारी करते हुए कहा था महामारी के कारण उतपन्न परिस्थितियों में बेदखली या विध्वंस का कोई भी आदेश 31 मई तक स्थगित रहेगा। इसके बावजूद 17 मई को मस्जिद को गिरा दिया गया।

स्थानीय प्रशासन ने 15 मार्च को मस्जिद कमेटी को उक्त मस्जिद को अवैध बताते हुए नोटिस जारी किया था। इस दौरान मस्जिद कमेटी ने प्रशासन को मस्जिद की वैधता के सबूत भी भेजे थे जिसमें 1959 में मस्जिद द्वारा कराया गया बिजली कनेक्शन सेसंबंधित दस्तावेज भी था। 

18 मार्च को मस्जिद कमेटी इलाहाबाद हाईकोर्ट भी गई थी। जहाँ मस्जिद मस्जिद कमेटी ने मस्जिद के विध्वंस से संबंधित अपनी चिंताओं से उच्च न्यायालय को अवगत कराया।

19 मार्च से स्थानीय प्रशासन ने लोगों के मस्जिद में प्रवेश पर रोक लगा दी थी। जिन स्थानीय लोगों ने विरोध किया उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।

उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने की उच्चस्तरीय न्यायिक जांच की मांग

उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन ज़फूर अहमद फारूकी ने प्रशासन द्वारा मस्जिद को गिराने की कार्यवाही की निंदा की है। उन्होंने कहा कि यह विध्वंस कानून के खिलाफ शक्ति का दुरुपयोग और माननीय उच्च न्यायालय द्वारा पारित 24 अप्रैल के आदेशों का स्पष्ट उल्लंघन है। उन्होंने इसकी उच्चस्तरीय न्यायिक जाँच की मांग की है।

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