अर्थव्यवस्था को गर्त में धकेलने के बाद सरकारी बैंकों को पूंजीपतियों के हवाले करेगी मोदी सरकार

मोदी सरकार बैंकों में कॉरपोरेट और विदेशी बैंकों की भागीदारी के लिए कुछ नियमों को शिथिल करके निजी कंपनियों के लिए बैंकिंग क्षेत्र खोलने पर विचार कर रही है, जिनका सरकार निजीकरण करना चाहती है.....

Update: 2020-11-23 11:34 GMT

वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण

मोदी सरकार की नीतियों के कारण देश की अर्थव्यवस्था बर्बाद हो गई है। जीडीपी माइनस 24 प्रतिशत तक नीचे चला गया है। लाखों लोगों का रोजगार छीन गया है। वहीं दूसरी तरफ मोदी सरकार कोरोना की आड़ में सार्वजनिक संस्थानों का निजीकरण कर पूंजीपतियों के हाथों गिरवी रख रही है।

मोदी ने विनाशकारी नोटबंदी की घोषणा की थी जिसका मक़सद काले धन को समाप्त करना था। इसने अराजकता का माहौल बनाया। इस योजना ने लाखों किसानों और मंझोले एवं छोटे उद्योगों के मालिकों को तबाह कर दिया। देश की तमाम सम्पत्तियों को बेचने के जुनून में अब मोदी सरकार सार्वजनिक बैंकों को भी पूंजीपतियों के हवाले करने की योजना बना रही है।

ऐसा लगता है कि मोदी सरकार को सत्ता तक लाने के लिए पूंजीपतियों ने जो व्ययबहुल अभियान चलाया था उसका एकमात्र मकसद देश की तमाम संपत्ति का निजीकरण करना था। खुले या पिछले दरवाजे से निजीकरण की कुछ सबसे बड़ी चालें पहले ही चली जा चुकी हैं। उनमें भारतीय रेलवे, एयर इंडिया के लिए 100% निजीकरण के प्रयास और यहां तक कि सेल, शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एससीआई), टीएचडीसी इंडिया और एनईपीसीओ आदि के अलावा भारत पेट्रोलियम जैसी तेल और गैस कंपनियां भी शामिल हैं।

अपने दूसरे कार्यकाल में कई सरकारी स्वामित्व वाली फर्मों के निजीकरण की दिशा में कदम उठाते हुए नरेंद्र मोदी सरकार ने बैंकिंग, बीमा, इस्पात, उर्वरक, पेट्रोलियम और रक्षा उपकरणों सहित 18 रणनीतिक क्षेत्रों की पहचान की है। यहां वह केवल सीमित उपस्थिति बनाए रखेगी। योजना के मुताबिक, रणनीतिक क्षेत्रों में सार्वजनिक क्षेत्र की अधिकतम चार इकाइयां और न्यूनतम एक इकाई परिचालन करेगी। सरकार की योजना बाकी से बाहर निकलने की है।

मोदी सरकार बैंकों में कॉरपोरेट और विदेशी बैंकों की भागीदारी के लिए कुछ नियमों को शिथिल करके निजी कंपनियों के लिए बैंकिंग क्षेत्र खोलने पर विचार कर रही है, जिनका सरकार निजीकरण करना चाहती है।

मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि आरबीआई कुछ बड़े औद्योगिक घराने जैसे कि टाटा, बिरला और उनके अन्य समकक्षों को एचडीएफसी और आईसीआईसीआई बैंक जैसे पूर्ण पैमाने पर बैंक स्थापित करने की अनुमति देने की योजना बना रहा है। अब तक गैर-वित्तीय संस्थाओं से 60% से कम टर्नओवर वाले औद्योगिक घरानों को बैंक लाइसेंस के लिए आवेदन करने की अनुमति नहीं है और केवल 10% के लिए उनकी इक्विटी भागीदारी की भी अनुमति है। रिपोर्टों के अनुसार नीति निर्माता मौजूदा नीति को संशोधित करने पर विचार कर रहे हैं।

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अधिकारियों ने कहा है, "हमें बैंकिंग प्रणाली को खोलने की आवश्यकता है लेकिन इस कदम को प्रचुर सावधानी के साथ डिजाइन किया जाएगा और इसके दुरुपयोग से बचाव के उपाय की आवश्यकता होगी। बैंकिंग क्षेत्र खोलने से बैंकों, वित्तीय संस्थानों पर अधिक नियामक सतर्कता आएगी।"

नीति निर्धारक अब उन विदेशी बैंकों को अनुमति देने पर चर्चा कर रहे हैं, जिनके पास भारतीय सहायक बैंक हैं, जो सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब एंड सिंध बैंक, आईओबी और यूको बैंक में सरकार की हिस्सेदारी की बिक्री में भाग लेते हैं।

भारतीय रिज़र्व बैंक की योजना बड़े निगमों को निजी क्षेत्र के ऋणदाताओं एचडीएफसी और आईसीआईसीआई बैंक के समान पूर्ण पैमाने पर बैंक शुरू करने की अनुमति देने की भी है। हाल ही में आरबीआई ने घोषणा की थी कि कॉर्पोरेट क्षेत्र पहली बार भुगतान बैंक स्थापित कर सकता है।

इसने टाटा, बिड़ला, अम्बानी, महिंद्रा और कुछ अन्य घरानों को आकर्षित किया और कुछ अन्य लोगों ने एक अलग बैंकिंग लाइसेंस प्राप्त किया।

इसका मतलब है कि ऐसी संभावना है कि टाटा, बिड़ला, अम्बानी, महिंद्रा भविष्य में अपने बैंक स्थापित कर सकते हैं। भारतीय निजी क्षेत्र के बैंकों के स्वामित्व दिशानिर्देशों और कॉर्पोरेट संरचना पर एक रिपोर्ट जारी करते हुए आरबीआई के आंतरिक कार्य समूह ने इस खबर की पुष्टि की है।

पिछले साल सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का महाविलय करने और दस बैंकों को मिलाकर चार बड़े बैंक बनाने के बाद अब सरकार अपने आधे से ज्यादा बैंकों के निजीकरण की संभावना तलाश रही है। सरकार और बैंकिंग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि सरकार की योजना सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या घटाकर पांच तक सीमित करने की है।

एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि योजना के मुताबिक पहले चरण में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण की दिशा में आगे बढ़ते हुए बैंक ऑफ इंडिया, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक, यूको बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और पंजाब ऐंड सिन्ध बैंक में बहुलांश हिस्सेदारी बेची जा सकती है।

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, 'सरकार की योजना 4 से 5 सरकारी बैंकों का स्वामित्व अपने पास रखने की है।' मौजूदा समय में देश में सार्वजनिक क्षेत्र के 12 बैंक हैं।

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