मीडिया लंबित मामलों पर टिप्पणी कर अदालत की कर रहा अवमानना, SC में बोले अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल

अटॉर्नी जनरल ने कहा कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया स्वतंत्र रूप से लंबित मामलों पर टिप्पणी कर रहे हैं, जो एक मामले के परिणाम को प्रभावित करने का एक प्रयास है.....

Update: 2020-10-13 13:23 GMT

नई दिल्ली। अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कहा कि लंबित मामलों पर मीडिया की टिप्पणी न्यायाधीशों की सोच मामले के परिणामों को प्रभावित करने का एक प्रयास है, जो अदालत की अवमानना के बराबर है। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ साल 2009 में दर्ज किए गए अदालत की अवमानना मामले की सुनवाई के दौरान वेणुगोपाल ने यह टिप्पणी की।

अटॉर्नी जनरल (एजी) वेणुगोपाल ने कहा कि मीडिया का विचाराधीन मामलों पर टिप्पणी करना न्यायाधीशों को प्रभावित करने की एक कोशिश जैसा है। उन्होंने कहा कि इसके परिणामस्वरूप अदालत की अवमानना का सामना करना पड़ सकता है। वरिष्ठ अधिवक्ता के अनुसार सुप्रीम कोर्ट पहले भी स्पष्ट कर चुका है कि विचाराधीन मामले पर किसी भी किस्म की प्रतिक्रिया देने की कोशिश करना अदालत की अवमानना है।

एजी ने कहा, "प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया स्वतंत्र रूप से लंबित मामलों पर टिप्पणी कर रहे हैं, जो एक मामले के परिणाम को प्रभावित करने का एक प्रयास है।" वेणुगोपाल ने वर्तमान में मीडिया की स्थिति पर कड़ी टिप्पणी करते हुए अदालत से मीडिया की भूमिका की जांच करने का आग्रह किया।

वेणुगोपाल ने न्यायाधीश ए. एम. खानविल्कर की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष कहा कि मीडिया में यह प्रवृत्ति बहुत खतरनाक है। उन्होंने आगे कहा, "जब एक अभियुक्त की जमानत याचिका सुनवाई के लिए निर्धारित होती है, तो एक टीवी चैनल अभियुक्तों के लिए बहुत भयावह बात करता है।"

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राफेल मामले का हवाला देते हुए वेणुगोपाल ने कहा कि जब राफेल मामले की सुनवाई शीर्ष अदालत में चल रही थी, तो हमारे पास सुनवाई के दिन कुछ दस्तावेजों के सार के साथ बड़े लेख और टिप्पणियां थीं।

उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत यह तय करने के दौरान कि किस तरह के भाषण और प्रकाशन में अदालत की अवमानना हो सकती हैं और उन्हें इन मुद्दों पर भी विचार करना चाहिए। भूषण का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने भूषण की अवमानना मामले में इन मुद्दों को सुलझाने के लिए एजी के सुझावों से असहमति जताई।

उन्होंने कहा कि सहारा फैसले में ही अदालत ने सबज्यूडिस ईश्यू का निपटारा कर दिया। ऐसे में मीडिया के बारे में इन मुद्दों पर विचार-विमर्श से इस मामले का दायरा और बढ़ जाएगा, जब हमारे पास पहले से ही बड़े मुद्दे हैं। धवन ने अदालत में लॉर्ड रीड का उल्लेख करते हुए पूछा कि जब साइलॉक का मामला चल रहा है, तो क्या हम प्रेस को इस बारे में बात नहीं करने के लिए कहेंगे?

इस मामले में पत्रकार तरुण तेजपाल का पक्ष रख रहे वकील कपिल सिब्बल इस पर सहमत हुए कि अदालत की अवामनना के कानून को संचार के नए माध्यमों से भी जोड़कर देखा जाना चाहिए। एजी ने कहा कि वह मामले में धवन और सिब्बल के साथ चर्चा करेंगे। शीर्ष अदालत ने इस मामले की सुनवाई चार नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी है।

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