Allahabad High Court : दुष्कर्म के मामले में पीड़िता या आरोपी की सामाजिक स्थिति से तय नहीं होता सजा का पैमाना

Allahabad High Court : इलाहबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि दुष्कर्म के मामले में सजा का पैमाना पीड़िता या आरोपी की सामाजिक स्थिति पर निर्भर नहीं कर सकता है...

Update: 2022-03-12 11:14 GMT

दुष्कर्म के मामले में पीड़िता या आरोपी की सामाजिक स्थिति से तय नहीं होता सजा का पैमाना

Allahabad High Court : इलाहबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने दुष्कर्म के मामले में एक अहम टिप्पणी की है| बता दें कि इलाहबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि दुष्कर्म के मामले में सजा का पैमाना पीड़िता या आरोपी की सामाजिक स्थिति पर निर्भर नहीं कर सकता है| यह अभियुक्त के आचरण, यौन प्रताड़ित महिला की स्थिति, उम्र और आपराधिक कृत्य की गंभीरता पर निर्भर होना चाहिए|

हिंसा से सख्ती से निपटने की जरुरत

बता दें कि हाई कोर्ट ने कहा है कि महिलाओं पर होने वाली हिंसा के अपराधों से सख्ती से निपटने की जरुरत है| समाज की सुरक्षा और अपराधी को रोकना कानून का स्वीकृत उद्देश्य है और इसे उचित सजा देकर हासिल करना आवश्यक है| बता दें कि यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश त्रिपाठी की खंडपीठ ने भूरा की आजीवन उम्रकैद की सजा कम करते हुए सुनाया है| कोर्ट ने इस मामले में याची की उम्रकैद की सजा को अधिक बताते हुए उसे घटाकर 13 साल कर दिया है और जुर्माने की राशि को भी पांच हजार से कम कर तीन हजार कर दिया है|

कोर्ट ने की ये टिप्पणी

बता दें कि कोर्ट ने कहा है कि घटना के समय पीड़िता की उम्र करीब 14 साल और आरोपी की 19 साल थी| आरोपी विवाहित था और पीड़िता बाद में शादी कर सुखमय जीवन व्यतीत कर रही है| याची वर्तमान में 32 वर्ष का है| धारा 376 (जी) आईपीसी के तहत आरोप के लिए 13 साल की कैद का प्रावधान है| इसलिए वर्तमान तथ्यों, परिस्थियों और सर्वोच्च न्यायलय द्वारा निर्धारित कानून को देखते हुए आरोपी को उम्रकैद की सजा के बजाय 13 की सजा पर्याप्त होगी|

यह था पूरा मामला

याची के खिलाफ मेरठ जिले के दौराला थाने के वर्ष 2009 में रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी| आरोप लगाया गया था कि याची और उसके साथी राहुल ने पीड़िता को नशीला पदार्थ सुंघाकर उसके साथ जबरदस्ती की| निचली अदालत ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी| याची ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी थी|

शारीरिक घाव ठीक हो सकता है लेकिन मानसिक नहीं

बता दें कि कोर्ट ने कहा कि दुष्कर्म का अपराध गंभीर अपराध है। शारीरिक घाव ठीक हो सकता है, लेकिन मानसिक घाव हमेशा बना रहता है। कोर्ट ने कहा कि सजा सुनाने वाले न्यायालयों से अपेक्षा की जाती है कि वे सजा के प्रश्न से संबंधित सभी प्रासंगिक तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करें और अपराध की गंभीरता के अनुरूप सजा दें। अपराध के प्रति सार्वजनिक घृणा को न्यायालय द्वारा उचित सजा के अधिरोपण के माध्यम से प्रतिबिंबित करने की आवश्यकता है। इस तरह के जघन्य अपराध के मामले में दया दिखाना न्याय का उपहास होगा और नरमी की दलील पूरी तरह से गलत है।

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