Bhima Koregaon case : बॉम्बे हाईकोर्ट ने आईआईटी के दलित प्रोफेसर आनंद तेलतुंबडे को दी जमानत, NIA ने किया विरोध
Bhima Koregaon case : बॉम्बे हाईकोर्ट ने भीमा कोरेगांव एल्गार परिषद मामले में गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत गिरफ्तार आईआईटी के पूर्व प्रोफेसर और दलित विद्वान प्रो. आनंद तेलतुंबडे ( Anand Toltumbde ) को जमानत दी।
Bhima Koregaon Case : शु्क्रवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ( Bombay High Court ) ने भीमा कोरेगांव ( Bhima Koregaon Case ) एल्गार परिषद ( Elgar parishad ) मामले में गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम ( UAPA ) के तहत गिरफ्तार आईआईटी के पूर्व प्रोफेसर और दलित विद्वान प्रो. आनंद तेलतुंबडे ( Anand Toltumbde ) को जमानत दे दी। जस्टिस एएस गडकरी और जस्टिस मिलिंद जाधव की खंडपीठ ने 2021 में तेलतुंबडे द्वारा दायर एक अपील पर आदेश पारित किया, जिसमें विशेष एनआईए कोर्ट द्वारा गुण-दोष के आधार पर उनकी जमानत याचिका को खारिज करने को चुनौती दी गई थी। हाईकेर्ट ने एनआईए ( NIA ) को सुप्रलम कोर्ट में अपील करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया है। तब तक के लिए जमानत आदेश पर रोक लगा दी है।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) के आदेशों के बाद आईआईटी ( IIT ) के दलित पूर्व प्रोफेसर आनंद तेलतुंबडे ( Anand Toltumbde ) द्वारा एनआईए के सामने आत्मसमर्पण करने के बाद 14 अप्रैल 2020 को गिरफ्तार किया था। वह तभी से जेल में हैं।
इस बीच बॉम्बे हाईकोर्ट ने पाया कि यूएपीए की धारा 13 गैरकानूनी गतिविधियों के लिए सजा, धारा 16 आतंकवादी कृत्य के लिए सजा और धारा 18 साजिश के लिए सजा के अन्तर्गत पहली नजर में अपराध नहीं बनता है। केवल धारा 38 और 39 आतंकवादी संगठन की सदस्यता और समर्थन मामले को सही माना है। फिलहाल, हाईकोर्ट ने पूर्व प्रोफेसर आनंद तेलतुंबडे ( Anand Toltumbde ) को एक लाख रुपए के निजी बॉन्ड के निष्पादन और इतनी ही राशि के दो जमानतदार पेश करने पर जमानत दी गई।
सीपीआई माओवादी का सदस्य होने होने का है आरोप
एनआईए ने तेलतुंबडे पर 31 दिसंबर 2017 को एल्गार परिषद सम्मेलन का संयोजक होने का आरोप लगाया था। कथित तौर पर सम्मेलन के अगली दिन एक जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव में हिंसक घटनाएं हुई थीं। हिंसक घटना में एक व्यक्ति की मौत हुई थी। हिंसा की जांच का विस्तार पुणे पुलिस और बाद में एनआईए द्वारा किया गया था जिसने प्रधानमंत्री की हत्या और देश में लोकतंत्र को उखाड़ फेंकने की साजिश का आरोप लगाया था। एनआईए ने दावा किया है कि तेलतुंबडे प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) के एक सक्रिय सदस्य हैं और "अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने में गहराई से शामिल थे।।
बॉम्बे हाईकोर्ट में आईआईटी के पूर्व प्रोफेसर आनंद तेलतुंबडे की जमानत अर्जी का विरोध करते हुए एनआईए ने उनपर अपने दिवंगत भाई मिलिंद को आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित करने का भी आरोप लगाया। मिलिंद को पिछले साल ही सुरक्षाबलों ने गोली मार दी थी। वह कथित रूप से प्रतिबंधित सीपीआईएम की महाराष्ट्र-मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ इकाई का सचिव था। बाबा साहेब अंबेडकर की पोती रमा से शादी करने वाले एक दलित विद्वान आनंद तेलतुंबडे ने अपनी जमानत अर्जी में कहा था कि वह माओवादी विचारधारा के आलोचक हैं। पिछले 25 सालों से अपने भाई के संपर्क में नहीं है। तेलतुंबडे ने दावा किया कि उनके खिलाफ ये आरोप लगाने के लिए इस्तेमाल किए गए दो संरक्षित गवाहों के बयान पहली नजर में अभियोजन पक्ष के मामले की पुष्टि करने के लिए एक हताशाभरा प्रयास था। उन्होंने कहा कि एल्गार परिषद सम्मेलन के दिन जब वह पुणे गए थे, तो वह शुरू होने से पहले ही वहां से चले गए थे।
इसके जवाब में एनआईए ने सह-आरोपी रोना विल्सन के लैपटॉप से बरामद प्रकाश द्वारा आनंद को लिखे गए एक पत्र का हवाला दिया। पत्र में कथित तौर पर उल्लेख किया गया है कि 9 और 10 अप्रैल, 2018 को होने वाले मानवाधिकार सम्मेलन के लिए आनंद की पेरिस यात्रा की और घरेलू अराजकता को बढ़ावा देने के लिए वहां दलित मुद्दों पर व्याख्यान दिया। एनआईए ने आगे कहा कि इस अवधि के दौरान दलित मुद्दों से संबंधित घरेलू अराजकता केवल कोरेगांव-भीमा की घटना थी। पत्र उनके बुद्धिजीवी साथियों को आग को बनाए रखने के लिए उकसाने के साथ समाप्त हुआ था।
आनंद तेलतुंबडे ने कहा कि दस्तावेज विल्सन के कंप्यूटर से बरामद किया गया था और यह दिखाने के लिए कोई पुष्टि नहीं थी कि उन्हें पत्र भी मिला था या उस पर कार्रवाई की गई थी। जब उन्होंने पेरिस में एक सम्मेलन में भाग लिया तो इस बात का सबूत था कि आयोजकों ने यात्रा के लिए भुगतान किया था। आयोजकों ने यूनिवर्सिटी के खिलाफ लगाए गए आरोपों के संबंध में फ्रांसीसी दूतावास से भी शिकायत की थी। अब कई विवादास्पद दस्तावेज़ जिनमें कथित रूप से प्रधानमंत्री की हत्या और सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश का उल्लेख है, जो मामले में आरोपी 16 शिक्षाविदों, वकीलों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ जांच का केंद्र हैं, एक के बाद संदेह के घेरे में आ गए हैं।