बड़ी खबर : गोरखपुर विश्वविद्यालय के वीसी ने लगाई प्रोफेसरों के सोशल मीडिया पर लिखने पर पाबंदी

गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलसचिव ने अपने आदेश के जरिए शिक्षकों, अधिकारियों और कर्मचारियों को कहा है कि वे गोरखपुर विश्वविद्यालय के बारे में कोई भी तथ्य या समाचार मीडिया/सोशल मीडिया में सीधे न दें बल्कि उसे पहले विश्वविद्यालय के मीडिया प्रकोष्ठ में भेजें..

Update: 2021-08-08 04:27 GMT

गोरखपुर विश्वविद्यालय में सोशल मीडिया पर रोक का आदेश.

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

जनज्वार। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर में स्थित दीन दयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय इधर किसी न किसी कारणों से लगातार चर्चा में रहा है। कुलपति के कार्य प्रणाली पर शिक्षक सवाल उठाते रहे हैं, वहीं एकेडमिक काउंसिल के सदस्य भी इसमें पीछे नहीं है। इस बीच परीक्षा के दौरान ही एक छात्रा की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत व इस मामले में गृह विज्ञान की अध्यक्ष व उनके कर्मियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज होने से विश्वविद्यालय प्रशासन भी कठघरे में खड़ा दिखा। ऐसे में विश्वविद्यालय ने अब एक ऐसा फरमान सुनाया है, जिसके मुताबिक किसी भी शिक्षक व कर्मियों के द्वारा अगर कोई सार्वजनिक बयान दिया गया तो उनकी अब खैर नहीं।उनके खिलाफ अनुशासन का डंडा चलेगा।

आदेश के मुताबिक गोरखपुर विश्वविद्यालय में शिक्षको,कर्मचारियों एवं अधिकारियों के प्रिंट मीडिया या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से लेकर सोशल मीडिया में बोलने पर पाबंदी लगा दी गई है। गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलसचिव ने अपने आदेश के जरिए शिक्षकों, अधिकारियों और कर्मचारियों को कहा है कि वे गोरखपुर विश्वविद्यालय के बारे में कोई भी तथ्य या समाचार मीडिया/सोशल मीडिया में सीधे न दें बल्कि उसे पहले विश्वविद्यालय के मीडिया प्रकोष्ठ में भेजें। विश्वविद्यालय का मीडिया प्रकोष्ठ ही इसे जारी करेगा और यदि कोई इसका उल्लंघन करेगा तो उसके खिलाफ अनुशासनिक कार्यवाही की जाएगी।

कुलसचिव द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि ' कुलपति प्रोफेसर राजेश सिंह ने निर्देशित किया है कि विश्वविद्यालय के कुछ प्राध्यापक,अधिकारी और कर्मचारी बिना विश्वविद्यालय के अनुमति के अपने व्यक्तिगत विचार विश्वविद्यालय के बारे में,जो अक्सर तथ्यहीन होते है, देते रहते हैं। ऐसे विचार विश्वविद्यालय एवं अधिकारियों की गरिमा को धूमिल कर रहे हैं । विश्वविद्यालय ने इस बात को अत्यंत गम्भीरता से लिया है और सभी शिक्षकों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों को सूचित किया जाता है कि कोई भी तथ्य मीडिया या सोशल मीडिया में जाना है और वह विश्वविद्यालय से सम्बंधित है तो ऐसे तथ्यों और समाचारों को मीडिया प्रकोष्ठ में प्रस्तुत किया जाए और विश्वविद्यालय के मीडिया प्रकोष्ठ द्वारा इस प्रकार के समाचार को मीडिया या सोशल मीडिया में भेजा जा सकता है।

यदि कोई भी विश्वविद्यालय का व्यक्ति इसका उल्लंघन करता पाया गया तो उस व्यक्ति के खिलाफ तत्काल प्रभाव से विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 8.10 एवं 8.11 के सेक्सन 49 के अंतर्गत एक अनुशासनिक समिति गठित की जाएगी तथा ऐसे कृत्य करने वाले को विश्वविद्यालय की परिनियम की धारा 16.07 के अनुसार कार्यवाही की जाएगी। इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश सरकार के कंडक्ट रूल 1956 का भी सन्दर्भ लिया जाएगा। इसलिए आप सभी से अनुरोध है कि ऐसा कोई भी समाचार जो भ्रामक है और विश्वविद्यालय शिक्षकों एवं अधिकारियों की गरिमा को धूमिल करता हो न दिया जाए। '

आदेश में आगे कहा गया है कि 'अतः विश्वविद्यालय के संकायाध्यक्ष, विभागध्यक्ष, अधिकारीगण एवं सभी विभागों के प्रभारी यह सुनिश्चित करें कि ऐसा बयान दे रहे है तो तत्काल प्रभाव से कुलसचिव को सूचित करें। यदि उनको लगता है कि उनका समाचार मीडिया या सोशल मीडिया में जाने लायक है तो इसे विश्वविद्यालय के मीडिया प्रकोष्ठ के माध्यम से भेजा जाए। विश्वविद्यालय के कुलपति की कार्यशैली को लेकर कुछ शिक्षक लगातार अपनी आवाज उठा रहे हैं। एक शिक्षक को तो इसके लिए नोटिस भी दिया गया है। कुलसचिव द्वारा जारी हालिया आदेश को विश्वविद्यालय परिसर में इसी सन्दर्भ में देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि इस आदेश के जरिए शिक्षकों, अधिकारियों व कर्मचारियों की आवाज पर अंकुश लगाने की कोशिश की जा रही है।

स्वतंत्रता एवं मूल अधिकार को बाधित करने का प्रयास: गुआक्टा

शिक्षकों के संगठन गुआक्टा के अध्यक्ष डॉ के डी तिवारी ने कहा है कि इस तुगलकी फरमान का विरोध होना चाहिए। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का खुला उल्लंघन है जो हमारे बोलने की स्वतंत्रता एवं मूल अधिकार को बाधित करता है। उच्च शिक्षा के शिक्षक अपने विचार से समाज को और संस्थाओं को दिशा देने का कार्य करते हैं। हमारे संविधान में इनको अधिकार दिया गया है कि अपने विचारधारा का प्रचार एवं प्रसार करें तथा इसी के साथ यह भी कि चुनावों में बिना अपने पद को त्याग किए , चुनाव लड़ने के लिए भी स्वतंत्र हैं। विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के

प्रोफेसर कमलेश गुप्त ने कहा, हमारा मानना है कि विश्वविद्यालय में शिक्षक होना केवल एक अच्छी नौकरी पाना नहीं है, बल्कि एक बड़े सामाजिक दायित्व को स्वीकार करना भी है। हम एक शिक्षक के साथ भारत के जिम्मेदार नागरिक भी हैं । हमें अपने संवैधानिक दायित्वों की जानकारी है और अधिकारों की भी। हम अपनी अभिव्यक्ति की आजादी के हक से भी परिचित हैं और उसकी मर्यादाओं का बोध भी हमें है। अपनी अभिव्यक्ति की आजादी पर पाबंदी लगाए जाने वाले किसी भी अवैधानिक आदेश को मानने से हम विनम्रतापूर्वक इनकार करते हैं। जिस विश्वविद्यालय के होने से हम हैं, उसकी छवि खराब करने के बारे में, तो सपने में भी नहीं सोच सकते। उसकी छवि को धूमिल होने से बचाना हमारा धर्म है।

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