मोदी 130 करोड़ का NRC-CAA करा सकते हैं, लेकिन सबकी कोरोना जांच इनके लिए संभव नहीं
जो सरकार CAA-NRC को लेकर इतनी गंभीर हो और एक-एक नागरिक की नागरिकता साबित करने के प्रति इतनी जिम्मेदार हो रही हो, आखिर वह कोरोना के मामले में इतनी गैर जिम्मेदार कैसे हो सकती है और सीधे तौर पर कह देती है कि सबका कोरोना टेस्ट है असंभव...
जनज्वार। मोदी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन कहते हैं कि हमारे देश में पूरी आबादी यानी 1.3 अरब लोगों की टेस्टिंग न तो जरूरी है और न ही यह संभव है। ऐसी बातें स्वास्थ्य मंत्री महोदय तब करते हैं, जबकि यह बड़ी तेजी से फैल रहा है। हर दिन बड़े पैमाने में मरीजों की संख्या बढ़ रही है। अब तक देश में लगभग 3 लाख कोरोना पॉजिटिव केस सामने आ चुके हैं और मरने वालों की संख्या भी दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। इसी बीच मरीजों के साथ दुर्व्यवहार की भी तमाम खबरें मीडिया में छाई हुई हैं।
कोरोना जैसी भयावह बीमारी जिसने पूरे विश्व में तबाही मचायी हुई और लगभग 70 लाख लोग इससे संक्रमित हैं, उसे हमारे माननीय सत्तासीनों द्वारा इतने हल्के में लेना आश्चर्य पैदा करता है। यह उसी सरकार के महानुभाव हैं, जो पूरे देशभर में एक-एक नागरिक का सीएए-एनआरसी करवाने जा रही थी और इसके लिए देशभर में कोरोना से पहले आंदोलन हो रहे थे।
सवाल है कि जो सरकार सीएए-एनआरसी को लेकर इतनी गंभीर हो और एक—एक नागरिक की नागरिकता साबित करने के प्रति इतनी जिम्मेदार हो रही हो, आखिर वह कोरोना के मामले में इतनी गैर जिम्मेदार कैसे हो सकती है। तो क्या यह मान लिया जाये कि हर वादे—दावे की तरह मोदी सरकार का सीएए—एनआरसी को लेकर चलाया जा रहा अभियान भी एक जुमला था, यानी इस सरकार के बस का यह भी नहीं था, या फिर आम जनता की इनकी नजरों में कोई कीमत नहीं है। आखिर क्यों नहीं करवा सकती सरकार 1 अरब 30 करोड़ आबादी का कोरोना टेस्ट।
मोदी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा था कि 27 मई तक देश में प्रतिदिन परीक्षण की क्षमता 1.60 लाख थी। इस हिसाब से अब तक 32,44,884 परीक्षणों को अंजाम दिया जा चुका है। उन्होंने कहा कि मौजूदा रणनीति जरूरत के मुताबिक टेस्ट करने की है। अगर हम लगातार 1.3 अरब लोगों के बार-बार टेस्ट करना चाहेंगे तो यह बेहद खर्चीला उपाय है बल्कि यह सर्वाधिक आबादी वाले देशों में से एक देश के लिए संभव भी नहीं है।
चांदनी चौक से सांसद और केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देखरेख में भारत सरकार ने समय रहते कुछ बड़े फैसले लेने से अन्य देशों के मुकाबले यहां उस स्तर पर संक्रमण नहीं फैला है। भारत में फिलहाल हर लाख में 0.3 फीसद की दर से ही मौतें हुई हैं, जबकि अमेरिका और चीन जैसे देशों में मौतों का आंकड़ा कहीं अधिक है। कोरोना संक्रमण के फैलने से सर्दी-गर्मी का कोई लेना-देना नहीं है। यह हरेक मौसम वाले देशों में मौतों का आंकड़ा बढ़ाता रहा है।
वहीं स्वास्थ्य मंत्री ने दिल्ली स्थित एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलारिया के कोविड-19 के पीक पर पहुंचने के आकलन को भी खारिज करते हुए कहा था कि इस महामारी की भावी स्थिति का आकलन करना कठिन है। बहुत सारे अनुमानों पर आधारित गणितीय आकलन सटीक नहीं हो सकते हैं। भारत में कोविड-19 के 80 फीसद मामले एसिम्टोमैटिक यानी बहुत हल्के लक्षण वाले हैं। ऐसे मरीजों में या तो संक्रमण के लक्षण नजर ही नहीं आते हैं या फिर बेहद हल्के होते हैं। ऐसे मरीज ज्यादातर किसी संक्रमित हुए मरीज के कांटैक्ट होते हैं जो किसी न किसी समय में उनके संपर्क में आए होते हैं। हर्षवर्धन हाल ही में डब्लूएचओ के एक्जिक्यूटिव बोर्ड के प्रमुख भी बनाए गए हैं।
हालांकि अब जिस तादाद में लॉकडाउन में मिली ढील के बाद कोरोना के मामले सामने आ रहे हैं उससे एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलारिया की बात सच साबित होती प्रतीत हो रही है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने यहां तक कहना शुरू कर दिया है कि भारत में हर किसी का कोरोना टेस्ट करवाया जाये तो हर 4 में से 1 व्यक्ति इससे संक्रमित निकलेगा।
जहां एक तरफ हमारे स्वास्थ्य मंत्री ने साफ कह दिया है कि देश में हर नागरिक का कोरोना टेस्ट असंभव है, वहीं दूसरी तरफ जिन्हें कोरोना वारियर्स करके प्रचारित किया जा रहा है, उनके लिए भी मोदी सरकार ने एक ऐसा आदेश पारित कर दिया है, जिससे लग रहा है कोई मरे-जिये सरकार को इससे कोई मतलब नहीं है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 15 मई को चुपके से एक आदेश जारी कर दिया था, जिसमें कोरोना ड्यूटी कर रहे सभी हेल्थ वर्कर का अनिवार्य क्वारंटनी और टेस्टिंग को खत्म कर दिया गया। इस बात का खुलासा उस वक्त हुआ जब दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल और सफदरजंग अस्पतालों में काम करने वाले हेल्थ वर्कर को ये सुविधाएं देने से इनकार कर दिया गया। आरएमएल अस्पताल के मेडिकल वर्कर को 14 दिन पूरे होने से पहले ही क्वारंटीन सुविधा छोड़कर घर जाने को कह दिया गया।
नियमानुसार डॉक्टरों को कोरोना टेस्ट के लिए अपना खुद का नाक का स्वाब लेने की अनुमति है, जबकि नर्सों को कोरोना टेस्ट कराने के लिए डॉक्टर के हस्ताक्षर चाहिए होते हैं। सफदरजंग अस्पातल की नर्सिंग सुप्रिंटेंडेंट डॉ रेखा राय ने अस्पताल के मेडिकल सुप्रिंटेंडेंट डॉ बलविंदर सिंह को अस्पताल में काम करने वाली 114 नर्सों के 14 दिन की कोरोना वार्ड में ड्यूटी के बाद टेस्ट कराने के लिए लिखा, लेकिन डॉ सिंह ने कह दिया कि नर्सों का टेस्ट कराने की जरूरत नहीं है और सभी नर्सें अपने स्तर से ही खुद को क्वारंटीन कर लें।