ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के संबद्ध कॉलेजों में करोड़ों का घोटाला, सीनेट सदस्य ने खोला मोर्चा

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के संबद्ध कॉलेजों में करोड़ों का घोटाला हुआ है, यह आरोप किसी और ने नहीं, बल्कि विश्वविद्यालय के सीनेट सदस्य डॉक्टर राम सुभग चौधरी ने लगाया है....

Update: 2020-12-16 05:45 GMT

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय (file photo)

दरभंगा, जनज्वार। बिहार में वैसे तो किस्म-किस्म के घोटालों के किस्से सुर्खियां बटोरते रहते हैं, पर किसी विश्वविद्यालय से जुड़े संबद्ध कॉलेजों में करोड़ों के घोटाले का आरोप लगे तो सहसा यकीन करना मुश्किल हो जाता है। हालांकि जानकार बताते हैं कि राज्य के विश्वविद्यालयों के संबद्ध कॉलेजों का वर्षों से ऑडिट नहीं कराया गया है, जिस कारण ऐसे घोटाले उजागर नहीं हो पा रहे।

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के संबद्ध कॉलेजों में करोड़ों का घोटाला हुआ है। यह आरोप किसी और ने नहीं, बल्कि विश्वविद्यालय के सीनेट सदस्य डॉक्टर राम सुभग चौधरी ने लगाया है।

डॉ चौधरी ने कुलपति प्रोफ़ेसर सुरेंद्र प्रताप सिंह से सभी कॉलेजों का 20 वर्षो के लेखा और खाता-बही की जांच कराने की मांग की है। उन्होंने कहा है कि संबद्ध कॉलेजों के शिक्षकों की न्याय की आस मे आंखें पथरा गई है। लगभग 30 वर्षों से कार्यरत शिक्षकों को न्याय मिलने की आस अब नए कुलपति प्रोफेसर सुरेंद्र प्रताप सिंह से लगी है।

डॉ चौधरी ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा एक सोची-समझी नीति के तहत कॉलेजों की समस्या उलझा कर रखा गया है।उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के संरक्षण में संबद्ध कॉलेजों के शासी निकायों द्वारा वर्षों से मनमानी कर अवैध ढंग से कॉलेजों का संचालन किया जा रहा है, फिर भी राज्य सरकार ने आज तक ऑडिट जांच के लिए पहल नहीं किया है। फलतः शासी निकाय का मनोबल एवं मनमानी बढ़ा हुआ है।

सीनेट सदस्य डॉ चौधरी ने कहा कि बिहार सरकार की न्याय के साथ विकास की बात महज ढकोसला है। राज्य सरकार के संरक्षण में शिक्षक वर्षों से कई तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं। डॉ चौधरी ने कहा कि ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय की आगामी 19 तारीख को प्रस्तावित सीनेट की बैठक में इन मामलों को जोरदार ढंग से उठाया जाएगा।

उन्होंने कहा कि कोरोना के इस काल में शिक्षक भुखमरी एवं बीमारी की समस्या से जूझ रहे हैं। अनुदान वितरण को लटकाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि कुलपति के निर्देश का शीघ्र अनुपालन नहीं करने वाले सचिव के विरुद्ध तत्काल प्राथमिकी दर्ज होनी चाहिए।

डॉ चौधरी ने आरोप लगाया कि संबद्ध कॉलेजों के सचिव कॉलेजों को अपनी जागीर समझते हैं। जागीरदारी प्रथा आजादी के बाद समाप्त हो गयी, लेकिन शिक्षा जगत में आज तक बरकरार है यह बिहार सरकार और राज्य के शैक्षणिक जगत के लिए कलंक की बात है।

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