फर्जी टेलीफोन एक्सचेंज चलाकर कर रहे थे राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़, विदेशों से कराते थे बात
आतंकी संगठन और हवाला नेटवर्क ऐसी तकनीक का करते रहे हैं प्रयोग, इन लोगों पर नेपाल में मुकदमा भी हो चुका है दर्ज
जनज्वार। इस समय पड़ोसी देशों से तनातनी चल रही है। चीन के साथ हिंसक झड़प हो चुकी है तो नेपाल लगातार भारत विरोधी कदम उठा रहा है। पाकिस्तान पहले से ही नापाक हरकतों में लगा हुआ है। इन सबके बीच देश के अंदर भी अपराधी कुछ न कुछ ऐसा करते रहते हैं, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हो जाता है। लगभग एक पखवाड़ा पूर्व आईएनएस विक्रम के शिपयार्ड से गोपनीय सामान चुराने का आरोपी बिहार से पकड़ा गया था और अब शनिवार 20 जून को पटना में फर्जी टेलीफोन एक्सचेंज का खुलासा हुआ है।
पटना के सिटी क्षेत्र में सालिमपुर अहरा मुहल्ला है। इसी मुहल्ले की गली नंबर 2 में यह फर्जी टेलीफोन एक्सचेंज चलाया जा रहा था, जिसे पटना के गांधी मैदान की पुलिस ने जब्त कर लिया है। बताया जा रहा है कि पटना पुलिस को देश की इंटेलिजेंस ब्यूरो आइबी से इस एक्सचेंज का इनपुट मिला था। दो शातिर बंगाल के राजीव बानिक और झारखंड के बोकारो के अदनान सामी पकड़े गए हैं। इनके कमरे से कीमती टेलीफोन सेट, कई तरह के यंत्र आदि जब्त किए गए हैं। हैरानी की बात यह है कि दोनों सिर्फ इंटर तक पढ़े हुए हैं और फर्जी टेलीफोन एक्सचेंज चलाने जैसा उच्च तकनीक का काम कर रहे थे।
वॉयस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल टेक्नोलॉजी वीओआइपी का प्रयोग कर ये शातिर फर्जी टेलीफोन एक्सचेंज चलाते थे। विदेशों से आए इंटरनेट कॉल को सरकार के गेटवे से बचाते हुए लोकल वॉयस कॉल में बदल दिया जाता था। इससे सरकार को राजस्व का चूना तो लगता ही था, गेटवे से बाहर होने के कारण राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा भी था। इनके पास से चार पीआरआइ मिले हैं। बताया जा रहा है कि हर पीआरआइ से एक साथ 30 लोगों से बात कराई जा सकती है, अर्थात ये एक बार में एक साथ 120 लोगों की बात करा सकते थे।
पुलिस की छानबीन में स्पष्ट हुआ है कि यह बड़ा नेटवर्क है। सारे कॉल दिल्ली से मैनेज होते थे। जो पैसे मिलते थे, वे दिल्ली के खाते में जमा किए जाते थे। गिरोह के सरगना दिल्ली के विकास, रितेश तथा देहरादून का अनुराग बताए जा रहे हैं। प्रारंभिक छानबीन में यह भी खुलासा हुआ है कि इनका नेटवर्क अंतराष्ट्रीय हो सकता है। देश के कई राज्यों में इनके फर्जी टेलीफोन एक्सचेंज हैं और इन तीनों शातिरों के विरुद्ध नेपाल में भी कई केस दर्ज हैं। इससे यह आशंका जाहिर की जा रही है कि ये किसी अंतरराष्ट्रीय गैंग का हिस्सा हो सकते हैं।
प्रारंभिक जांच में यह भी स्पष्ट हुआ है कि इस फर्जी टेलीफोन एक्सचेंज द्वारा ज्यादातर खाड़ी देशों के इंटरनेट कॉल आते थे। यह भी कहा जा रहा है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर के आतंकी संगठन और हवाला नेटवर्क ऐसी तकनीक का प्रयोग करते हैं ताकि उनकी आपसी बातचीत को इंटरसेप्ट न किया जा सके। पुलिस आगे की कार्रवाइयों में जुटी है और इनके नेटवर्क का पता लगा रही है।