अमित शाह चुनावों और पार्टी कार्यों में इतने व्यस्त कि गृह मंत्रालय रह गया पार्टटाइम काम, आतंकी घटनाओं का ब्यौरा भी बार-बार बदल रही सरकार

चार वर्षों के अंतराल में ही अमित शाह के मंत्रालय ने वर्ष 2018 में आतंकवाद की घटनाओं को फाइलों में 614 से 228 तक पहुंचा दिया, यानी दिल्ली में बैठे-बैठे आतंकवाद की घटनाएं 2.7 गुना कम हो गईं – मोदी सरकार इसी तरह देश की समस्याएं सुलझाती है, और देश के पत्रकार इसी झूठ को प्रचारित कर देश की बर्बादी में अपना योगदान देते हैं...

Update: 2024-07-18 11:03 GMT

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महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Our Hon’ble Home Minister gives much more time to state elections and party works rather than ministry’s work, as a result Jammu and Kashmir has become a playground for terrorists : जम्मू और कश्मीर में 9 दिनों में आतंकवादियों से मुठभेड़ में सेना के 9 जवान और सैनिक मारे गए, पर गृहमंत्री अमित शाह हरियाणा के भावी चुनावों की तैयारी में व्यस्त हैं। देश का गृहमंत्री राज्यों के चुनावों और बीजेपी के कार्यों में इतने व्यस्त रहते हैं कि गृह मंत्रालय उनका पार्टटाइम काम रह गया है। इस पार्ट टाइम मंत्रालय का आलम यह है कि आतंकवाद से मुकाबला करते मारे गए जवानों और आतंकवादी घटनाओं का ब्यौरा भी बार-बार बदलता रहता है।

गृह मंत्रालय आतंकवादियों से निपटने में कम और सत्ता के विरुद्ध उठती आवाजों को कुचलने में अधिक तत्पर रहता है। जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद के खात्मे से अधिक भावी चुनावों पर चर्चा की जा रही है और लगभग हरेक दिन सेना के या फिर कश्मीर पुलिस के जवान मारे जा रहे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने हाल में ही अपने रूस और ऑस्ट्रिया दौरे के दौरान दोनों देशों में आतंकवाद का जिक्र किया और रूस में तो पिछले 50 वर्षों से देश के आतंकवाद से प्रभावित होने की चर्चा की। वर्ष 2024 के लोक सभा चुनावों से पहले मोदी जी की अनगिनत गारंटियों में आतंकवाद का खात्मा भी शामिल था। इससे सम्बंधित अनेक होर्डिंग्स दिल्ली में सडकों के किनारे भी लटकाए गए थे। पर, आतंकवादियों की हिम्मत तो देखिये, जिस दिन मोदी जी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे थे, ठीक उसी दिन आतंकवादी जम्मू और कश्मीर के रासी जिले में तीर्थयात्रियों की बस पर हमला कर 9 तीर्थयात्रियों को मार रहे थे और 33 को घायल कर रहे थे। यह कोई आतंकवाद का अकेला हमला नहीं था, बल्कि उस पूरे सप्ताह में जम्मू और कश्मीर में आतंकवादियों ने 4 बड़े हमले किये थे।

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गृहमंत्री अमित शाह ने भी शपथ लेने के बाद मंत्रालय में पहली बैठक जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद से ही सम्बंधित की थी। इस बैठक में भी वही रटे-रटाये वक्तव्य थे – आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध अंतिम चरण में है, प्रधानमंत्री मोदी आतंकवाद के सख्त खिलाफ हैं, आतंकवाद के विरुद्ध जीरो-टॉलरेंस की नीति है, वगैरह-वगैरह। जम्मू और कश्मीर में अब आतंकवाद का केंद्र कश्मीर से जम्मू तक पहुँच गया था, पर प्रधानमंत्री और उनके मंत्रियों के वक्तव्यों में कहीं कोई बदलाव नहीं दिखता।

जम्मू और कश्मीर में सुरक्षाबलों पर आतंकवादियों के हमले में सुरक्षाकर्मियों के मारे जाने के ठीक बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी लगातार एक ही बयान देते हैं, सुरक्षाकर्मियों का बलिदान खाली नहीं जाएगा, हम आतंकवादियों को पाताल में भी घुसकर मारेंगे। हाल में ही कठुआ में भी सुरक्षाबलों पर आतंवादियों के हमले के बाद ऐसा ही बयान आया था। जम्मू और कश्मीर के उपराज्यपाल भी लगातार जवानों की शहादत का बदला लेने की बात करते हैं। सत्ता के रटे-रटाये वक्तव्य बदलते नहीं और आतंकी हमले रुकते नहीं।

बयानों के बाद भी आतंकवादी हमले लगातार होते रहते हैं और सरकार अजीबोगरीब आंकड़े दिखाकर आतंकवाद को कम करती रहती है। हमारे प्रधानमंत्री जी को ऐसे विषयों में महारत हासिल है – वर्ष 2016 की नोटबंदी के समय भी उन्होंने आतंकवाद की कमर तोड़ने और खात्मा करने का ऐलान किया था। बीबीसी में 30 अगस्त 2018 को प्रकाशित एक लेख में बताया गया था, “नोटबंदी से भारत प्रशासित कश्मीर में चरमपंथी हमलों पर अंकुश भी नहीं लगा है। राज्य सभा सांसद नरेश अग्रवाल के पूछे एक सवाल के जवाब में गृह राज्य मंत्री हसंराज गंगाराम अहीर ने सदन में बताया था कि जनवरी से जुलाई, 2017 के बीच कश्मीर में 184 आतंकवादी हमले हुए, जो 2016 में इसी दौरान हुए 155 आतंकवादी हमले की तुलना में कहीं ज़्यादा थे। गृह मंत्रालय की 2017 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक जम्मू कश्मीर में 342 चरमपंथी हमले हुए, जो 2016 में हुए 322 हमले से ज्यादा थे। इतना ही नहीं, 2016 में जहां केवल 15 लोगों की मौत हुई थी, 2017 में 40 आम लोगों इन हमलों में मारे गए थे।”

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प्रधानमंत्री मोदी ने जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटाने के बाद फिर से वहां से आतंकवाद को नेस्तनाबूत कर दिया था। भारत सरकार के गृह मंत्रालय की वेबसाइट पर सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा प्रकाशित (प्रकाशन वर्ष उपलब्ध नहीं है) एक पुस्तिका उपलब्ध है – एक देश, एक विधान, एक निशान का सपना साकार। इसमें आंकड़ों के बिना ही घोषित किया गया है, “अनुच्‍छेद 370 हटने के बाद अलगाववादियों का जनाधार खत्‍म होता जा रहा है। वर्ष 2018 में 58, वर्ष 2019 में 70 और वर्ष 2020 में 6 हुर्रियत नेता हिरासत में लिए गए। 18 हुर्रियत नेताओ से सरकारी खर्चे पर मिलने वाली सुरक्षा वापस ली गई। अलगाववादियों के 82 बैंक खातों में लेनदेन पर रोक लगा दी गई है। आतंक की घटनाओ में उल्लेखनीय कमी आई है और घाटी में शांति और सुरक्षा का नया वातावरण बना है।”

मोदी सरकार जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद को किस तरह से कम करती है, इसे अगर समझना है तो फिर इस बिना आंकड़ों वाली सरकार द्वारा बड़ी मुश्किल से जारी किये गए आंकड़ों पर पैनी निगाह रखनी पड़ेगी। प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो ने 5 फरवरी 2019 को गृह मंत्रालय की विज्ञप्ति में बताया था, वर्ष 2018 में जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद की कुल 614 घटनाएं दर्ज की गईं, जिसमें 38 नागरिकों और 91 सुरक्षाकर्मियों की जान गयी। इसके चार वर्षों बाद, 9 अगस्त 2023 को, गृह मंत्रालय ने राज्य सभा में बताया की वर्ष 2018 में जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद की महज 228 घटनाएं दर्ज की गईं, जिसमें 40 नागरिकों और 91 सुरक्षाकर्मियों की मृत्यु हुई।

जाहिर है, चार वर्षों के अंतराल में ही अमित शाह के मंत्रालय ने वर्ष 2018 में आतंकवाद की घटनाओं को फाइलों में 614 से 228 तक पहुंचा दिया, यानी दिल्ली में बैठे-बैठे आतंकवाद की घटनाएं 2.7 गुना कम हो गईं – मोदी सरकार इसी तरह देश की समस्याएं सुलझाती है, और देश के पत्रकार इसी झूठ को प्रचारित कर देश की बर्बादी में अपना योगदान देते हैं।

मोदी सरकार और मेनस्ट्रीम मीडिया की मानसिक विकलांगता का इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है – एक तरफ तो आंकड़ों की बाजीगरी से आतंकवाद ख़त्म करने का दावा करने वाली सत्ता पहले से अधिक लोगों को अर्बन नक्सल, माओवादी, टुकड़े-टुकड़े गैंग और देशद्रोही का ताज पहनाती है। 6 फरवरी 2019 को गृह मंत्रालय ने अमित पाण्डेय द्वारा आरटीआई द्वारा पूछे गए प्रश्नों के जवाब में बताया था कि जून 2014 से 20 जनवरी 2019 के बीच जम्मू और कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा 330 सुरक्षाकर्मी मारे गए। दूसरी तरफ 5 फरवरी 2019 को गृह मत्रालय द्वारा जारी वक्तव्य के अनुसार वर्ष 2014 से 2018 के बीच ही आतंकवादी हमलों में 338 सुरक्षाकर्मी मारे गए। आकड़ों में ऐसा ही अंतर मारे गए नागरिकों और आतंकवादियों की संख्या में भी है।

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मोदी सरकार के आंकड़ों से स्पष्ट है कि वर्ष 2014 से 2018 के बीच आतंकवादी घटनाओं में 176 प्रतिशत और इसमें मारे गए सैनिकों की संख्या में 93 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी। वर्ष 2018 से आंकड़ों की बाजीगरी का खेल शुरू किया गया और इसके बाद भली ही आतंकवादी घटनाएं बढ़ गयी हों, पर सरकारी आकड़े इसे साल-दर-साल कम ही बताते रहे हैं।

मोदी सरकार में आतंकवाद के आंकड़े ही नहीं, बल्कि इसकी परिभाषा भी बदल गयी है। इस सरकार के नजरिये से परे देखें तो क्या मणिपुर में जो हो रहा है वह आतंकवाद नहीं है, रूस जिस तरह से यूक्रेन में सामान्य नागरिकों पर बम बरसा रहा है क्या वह आतंकवाद नहीं है, इजराइल गाजा में अस्पतालों और स्कूलों पर हमले कर रहा है क्या उसे आतंकवाद नहीं कहेंगें, म्यांमार में सेना जो कुछ कर रही है क्या वह आतंकवाद नहीं है?

मोदी सरकार हरेक ऐसे राज्य सरकारों और देश के साथ खड़ी नजर आती है, जो सत्ता समर्थित आतंकवाद को नया आयाम दे रहे हैं। माँस्को में जब हमले होते हैं तब उसे प्रधानमंत्री जी आतंकवाद बताते हैं पर जब कीव पर हमले हो रहे हैं तब उसके लिए बातचीत का रास्ता अपनाने की बात करते हैं। आतंकवाद केवल गोला-बारूद और मिसाइल ही नहीं है, पहले से अधिक प्रभावी और मारक हथियार अब अर्थव्यवस्था, पर्यावरण, ध्रुवीकरण, मेनस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया भी हैं, पर इन तथ्यों पर सत्ता और मीडिया खामोश है। आतंकवादी हमले होते रहते हैं, पर किसी भी नए हथियार के भारत में पहुंचते ही मेनस्ट्रीम मीडिया चीन और पाकिस्तान को भारत के सामने घुटने टेकने पर मजबूर कर देता है।

संदर्भ :

1. https://www.mha.gov.in/sites/default/files/370Hindi_20092021.pdf

2. https://www.bbc.com/hindi/india-45351432

3. https://mharti.gov.in/writeReadData/reply/REP_2019_02_26_15_26_19.pdf

4. https://pib.gov.in/Pressreleaseshare.aspx?PRID=1562722

5. https://sansad.in/getFile/annex/260/AU2300.pdf?source=pqars

6. https://pib.gov.in/Pressreleaseshare.aspx?PRID=1541722

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