Bilkis Bano case : सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से पूछा - दोषियों को क्यों किया रिहा, 14 दिन में जमा करो दस्तावेज
Bilkis Bano case : बिलकिस बानो के सामूहिक बलात्कार ( Bilkis Bano gang rape case ) मामले में 11 दोषियों की समयपूर्व रिहाई के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपियों ने जो किया उसके लिए उन्हें सजा मिली। दोषियों की रिहाई से पहले इस बात का जवाब ढूंढना जरूरी था कि क्या दोषी करार दिए गए लोग माफी के योग्य हैं।
Bilkis Bano case : बिलकिस बानो गैंगरेप मामले ( Bilkis Bano gang rape case ) में एक बार नया मोड़ आ गया है। गुजरात सरकार ( Gujrat Government ) द्वारा गैंगरेप के सभी 11 आरोपियों को रिहा करने के बाद मचे बवाल को ध्यान रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) ने बिलकीस बानो के सामूहिक बलात्कार मामले में 11 दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली एक याचिका पर विचार करने के बाद गुजरात सरकार से तीखे सवाल किए हैं। शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार से पूछा है कि सामूहिक दुष्कर्म के दोषियों को रिहा क्यों किया? साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से 14 दिनों के अंदर सभी दस्तावेज मुहैया कराने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया है।
सु्प्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) ने गुजरात सरकार से दो सप्ताह में दोषियों की रिहाई से जुड़े सभी दस्तावेज कोर्ट में पेश करने को कहा है। जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने गुजरात सरकार को सभी दस्तावेज दो सप्ताह में पेश करने को कहा। अब इस मामले की सुनवाई तीन सप्ताह बाद होगी। उससे पहले सुप्रीम कोर्ट दोषियों की रिहाई के संबंध में मिले दस्तावेजों को देखेगा। जिसके बाद इस याचिका पर आगे की सुनवाई होगी।
गुजरात के गोदरा देंगे 2002 के दौरान बिलकिस बानो ( Bilkis Bano case ) के साथ गैंगरेप किया गया था। साथ ही उसकी आखों के सामने परिवार के 7 सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। इस मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे 11 दोषियों को बीते माह रिहा कर दिया गया है। दोषियों की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी।
इससे पहले बिलकिस बानो रेप ( Bilkis Bano case ) और हत्या के मामले में 11 दोषियों की रिहाई के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया था। अब दोषियों की रिहाई से जुडे़ सभी दस्तावेज कोर्ट में पेश करने को कहा गया है। बिलकिस के दोषियों को याचिकाकर्ताओं की तरफ से पक्ष न बनाने के चलते सुनवाई टल गई थी। दोषियों के वकील ऋषि मल्होत्रा ने मामले की सुनवाई टालने की गुहार लगाई थी। उन्होंने कहा कि कोर्ट के आदेश के बावजूद उन्हें पक्षकार नहीं बनाया गया है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रस्तोगी और विक्रम नाथ की पीठ ने मई 2022 में आदेश सुनाया था कि इस मामले में सजा माफी का न्याय क्षेत्र गुजरात है और वही अपनी नीति के तहत इस पर विचार करे। सुनवाई के दौरान सिब्बल ने मुस्लिम आबादी के पलायन, अनियंत्रित बलात्कार और हत्या आदि मामले से जुड़े भयावह तथ्यों का उल्लेख किया था। हालांकि, पीठ ने उनसे कहा कि वे मुद्दे को सजा माफी तक सीमित रखें। जस्टिस रस्तोगी ने कहा था कि जो भी उन्होंने किया उसके लिए उन्हें सजा मिली। सवाल यह है कि क्या वे सजा माफी पर विचार करने योग्य हैं। हमें सिर्फ यह चिंता है कि क्या सजा माफी कानून के मापदंडों के अनुसार थी।
बिलकिस बानो गैंगरेप का इतिहास
27 फरवरी, 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे में आग लगने की घटना में 59 कारसेवकों की मौत हुई थी। इसके बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क गए थे। दंगों से बचने के लिए बिलकीस बानो जो उस समय पांच महीने की गर्भवती थी, अपनी बच्ची और परिवार के 15 अन्य लोगों के साथ अपने गांव से भाग गई थीं। तीन मार्च 2002 को वे दाहोद जिले की लिमखेड़ा तालुका में जहां वे सब छिपे थे, वहां 20 से 30 लोगों की भीड़ ने बिलकीस के परिवार पर हमला किया था। यहां बिलकीस बानो ( Bilkis Bano case ) के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। जबकि उनकी बच्ची समेत परिवार के सात सदस्य मारे गए थे। बिलकीस द्वारा मामले को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में पहुंचने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे। मामले के आरोपियों को 2004 में गिरफ्तार किया गया था। केस की सुनवाई अहमदाबाद में शुरू हुई थी लेकिन बिलकीस बानो ने आशंका जताई थी कि गवाहों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2004 में मामले को मुंबई स्थानांतरित कर दिया था।
21 जनवरी 2008 को सीबीआई की विशेष अदालत ने बिलकीस बानो ( Bilkis Bano case ) से सामूहिक बलात्कार और उनके सात परिजनों की हत्या का दोषी पाते हुए 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। उन्हें भारतीय दंड संहिता के तहत एक गर्भवती महिला से बलात्कार की साजिश रचने, हत्या और गैरकानूनी रूप से इकट्ठा होने के आरोप में दोषी ठहराया गया था। बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनकी सजा को बरकरार रखा था।