Bilkis Bano Case : मोदी सरकार की मंजूरी पर हुई थी बिल्किस के बलात्कारियों की रिहाई, सुप्रीम कोर्ट में गुजरात सरकार की सफाई
Bilkis Bano Gangr ape case : गुजरात दंगे 2002 के दौरान बिलकिस बानो गैंगरेप के दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली एक याचिका तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा, सुभासिनी अली और अन्य ने दायर किया था।
Bilkis Bano Gang rape case : बिलकिस बानो गैंगरेप मामले के 11 आरोपियों की रिहाई को लेकर गुजरात सरकार ( Gujrat government ) चाहे कुछ भी दावे क्यों न करे, लेकिन सच है कि इस फैसले की वजह से देश और दुनिया में भाजपा ( BJP ) की इमेज खराब हुई है। फिर इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) में सुनवाई भी जारी है। इस बीच गुजरात सरकार ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि दोषियों को छोड़ने के प्रस्ताव को मंजूरी केंद्र सरकार ( Central government ) ने दी थी।
गुजरात सराकर ( Gujrat Government ) के इस तर्क के पीछे माना जा रहा है कि भाजपा विधानसभा चुनाव में इस मुद्दे को उठने से रोकना चाहती है। जानकारी के मुताबिक भाजपा नेताओं को डर है कि कहीं विपक्षी पार्टियां इसे भाजपा के खिलाफ अपने एजेंडे में न शामिल कर ले। अगर ऐसा हुआ तो मोदी की छवि को भी डेंट लग सकता है। इसलिए पार्टी ने गुजरात भाजपा को बचाने के लिए बिलकिस गैंगरेप ( Bilkis Bano Gang rape case ) के 11 दोषियों की रिहाई का ठीकरा केंद्र सरकार पर फोड़ दी है। ताकि गुजरात तक इसकी आंच न पहुंचे।
दरअसल गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) को बताया है कि बिलकिस बानो मामले के 11 दोषियों को 14 साल जेल की सजा पूरी करने के बाद रिहा कर दिया गया है, क्योंकि उनका व्यवहार अच्छा पाया गया और उनकी रिहाई को केंद्र ने भी मंजूरी दी थी। राज्य के गृह विभाग के अवर सचिव ने सुप्रीम कोर्ट में पेश हलफनामे में कहा कि राज्य सरकार ने सभी राय पर विचार करने के बाद 11 कैदियों को रिहा करने का फैसला लिया, क्योंकि उन्होंने जेलों में 14 साल से अधिक की सजा पूरी कर ली है और उनका व्यवहार अच्छा पाया गया है। फिर भारत सरकार ने 11 जुलाई, 2022 के पत्र के माध्यम से 11 कैदियों की समयपूर्व रिहाई के लिए सीआरपीसी की धारा 435 के तहत केंद्र सरकार की सहमति/अनुमोदन की जानकारी भी दी थी।
गुजरात सरकार के हलफनामे में इस बात का भी जिक्र है कि दोषियों को छोड़ने से पहले जेल महानिरीक्षक गुजरात, जेल अधीक्षक, जेल सलाहकार समिति, जिला मजिस्ट्रेट, पुलिस अधीक्षक, सीबीआई, विशेष अपराध शाखा, मुंबई, और सत्र न्यायालय मुंबई की समिति ने इस मसले पर विचार भी किया था।
गुजरात सरकार ने 1992 की नीति के तहत प्रस्तावों पर विचार किया जैसा कि अदालत द्वारा निर्देशित किया गया था और आजादी का अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में कैदियों को रिहा किया गया। हलफनामे में कहा गया है कि राज्य सरकार को सीआरपीसी की धारा 432 और 433 के प्रावधान के तहत कैदियों की समयपूर्व रिहाई के प्रस्ताव पर निर्णय लेने का अधिकार है।
धारा 435 सीआरपीसी के प्रावधान पर विचार करते हुए उन मामलों में भारत सरकार की मंजूरी प्राप्त करना अनिवार्य है। इस मामले में राज्य सरकार को भारत सरकार से दोषियों को रिहा करने की इजाजत मिल गई थी।
राज्य सरकार के हलफनामे में कहा गया कि याचिकाकर्ता के एक तीसरा अजनबी होने के नाते कानून के अनुसार सक्षम प्राधिकारी द्वारा दिए गए रिहाई के आदेशों को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है। यह याचिका राजनीतिक साजिश है, जो खारिज करने योग्य है। बिलकिस बानो मामले में दोषी राधेश्याम भगवानदास शाह ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि गुजरात सरकार के माफी आदेश को चुनौती देने वाली याचिका अटकलबाजी और राजनीति से प्रेरित है।
रिहाई के खिलाफ सुभासिनी अली, महुआ मोइत्रा की याचिका पर सुनवाई
Bilkis Bano Gangr rape case : बता दें कि गुजरात सरकार की प्रतिक्रिया माकपा की पूर्व सांसद सुभासिनी अली, पत्रकार रेवती लौल और प्रो. रूप रेखा वर्मा द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका पर आई है। इन लोगों ने एक याचिका के जरिए बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म और कई हत्याओं के लिए दोषी ठहराए गए 11 लोगों की रिहाई को चुनौती दी है। 2002 के गुजरात दंगे के दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली एक अन्य याचिका तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने भी दायर की थी।