UP चुनाव से पहले काशी और मथुरा मस्जिद गिरवाकर BJP करवा सकती है सुनियोजित साम्प्रदायिक दंगे : काटजू

चुनाव के कुछ पहले व्यापक सुनियोजित ढंग से साम्प्रदायिक दंगे करवाए जाएंगे, 'संभवतः काशी और मथुरा मस्जिद गिरवाकर' जिससे हमारी मूर्ख जनता जिनके खोपड़े में साम्प्रदियकता का गोबर भरा है, उत्तेजित हो जाएगी और भड़भड़ा कर बीजेपी को वोट देगी...

Update: 2021-06-05 05:39 GMT

यूपी 2022 विधानसभा चुनाव को लेकर पूर्व न्यायाधीस ने कहा कि भाजपा सुनियोजित दंगे करवा सकती है. photo - social media

जनज्वार, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कण्डेय काटजू ने यूपी विधानसभा चुनाव से पहले बड़ा बयान दिया है। बता दें कि मार्कण्डेय काटजू अक्सर अपने ज्वलंत बयानो के लिए चर्चा में रहते हैं। अपनी बेलाग-बेलौस छवि के लिए जाने जाने वाले काटजू ने यूपी चुनाव से पहले ही हिंदुत्व और उसके नेताओं की रूपरेखा तय की है। 

उन्होने कहा है कि 'जो लोग चिल्ला रहें है कि बीजेपी की लोकप्रियता घट रही है वह भूल गए कि उत्तर प्रदेश का चुनाव 'हनोज़ दूर अस्त'। चुनाव के कुछ पहले व्यापक सुनियोजित ढंग से साम्प्रदायिक दंगे करवाए जाएंगे, 'संभवतः काशी और मथुरा मस्जिद गिरवाकर' जिससे हमारी मूर्ख जनता जिनके खोपड़े में साम्प्रदियकता का गोबर भरा है, उत्तेजित हो जाएगी और भड़भड़ा कर बीजेपी को वोट देगी।


इससे तीन दिन पहले भी पूर्व न्यायाधीश हिंदी भाषा को लेकर भी टिप्पणी की थी। उनने कहा कि 'हिंदी जनता की भाषा नहीं है। जनता की भाषा है खड़ीबोली या हिंदुस्तानी। आज़ादी के पहले उत्तरी भारत में सभी पढ़े-लिखे लोगों, चाहे हिन्दू, मुस्लिम हों या सिख, की भाषा उर्दू होती थी और आम आदमी की खड़ीबोली। अंग्रेज़ों ने अपनी, बाँट करो और राज करो नीति के तहत यह झूठा प्रचार किया कि हिंदी हिन्दुओं की और उर्दू मुसलमानों की जुबां है।'

उन्होने कहा कि बाँटो और राज करो की नीति 1857 के बग़ावत के बाद अंग्रेज़ों द्वारा भारत में लायी गयी I बग़ावत में हिन्दू-मुस्लिम साथ मिलकर अंग्रेज़ों से लड़े थे I उसे कुचलने के बाद अंग्रेज़ों ने तय किया कि भारत पर नियंत्रण का एक ही तरीक़ा है हिन्दू मुसलमानों को लड़वाना। उसी नीति के अंतर्गत यह झूठा प्रचार किया गया कि हिंदी हिन्दुओं की और उर्दू मुसलमानों की जुबां है।'

'आज़ादी के बाद उर्दू को कुचलने का कुछ तत्वों द्वारा भरसक प्रयास किया गया, जो फ़ारसी या अरबी के शब्द बोलचाल में आ गए थे उन्हें नफरत से हटाया गया और उनकी जगह ह‍िंदी या संस्‍कृत के शब्द लाये गए। जैसे, जि‍ला को हटा कर जनपद शब्द लाया गया।'

काटजू ने कहा था कि 'इस प्रकार एक ऐसी भाषा थोपी गई जो बोलना और समझना नक़ली भाषा बना दी गयी जिसे समझने में अक्सर कठिनाई होती है। कई हिंदी की क‍िताबें पढ़ना आम आदमी के लिए कठिन होता है। अदालत में हिंदी की कई सरकारी विज्ञप्तियों को समझना मैंने मुश्किल पाया।'

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