फैजाबाद-अयोध्या में BJP का लोकसभा चुनाव हारना पहली घटना नहीं, बनारस में भी अच्छी तैयारी के साथ चुनाव लड़ता विपक्ष तो बुरी तरह हारते मोदी !
अयोध्या जहां मंदिर स्थित है, वहां भाजपा-आरएसएस विरोधी धारा मजबूत रही है, यहां तक कि वहां के मठों और मंदिरों में भी भाजपा-आरएसएस का बराबर तगड़ा विरोध रहा है। इसलिए यह समझना कि सपा प्रत्याशी अवधेश प्रसाद की जीत अलग-थलग घटना है, सही नहीं हो....
Ayodhya Election 2024 Result : अयोध्या में भगवान श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह कोशिश रही है कि अवध और पूर्वांचल के साथ ही पूरे देश में कथित हिन्दू जागृति के पक्ष में माहौल बनाया जाए। ऐसे में फैजाबाद-अयोध्या सीट पर लोकसभा चुनाव 2024 में सपा प्रत्याशी अवधेश प्रसाद की जीत एक अलग चर्चा का विषय बनी है। इस संदर्भ में सोशल इंजीनियरिंग की भी बड़ी चर्चा हुई है, लेकिन यह सोचना कि फैजाबाद-अयोध्या में भाजपा का लोकसभा चुनाव में हारना पहली घटना है, सच नहीं है। ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट की राष्ट्रीय वर्किंग कमेटी की तरफ से राष्ट्रीय अध्यक्ष एसआर दारापुरी ने आंकड़ों के साथ बताया है कि कैसे पहले भी भाजपा अयोध्या से बुरी तरह हारी है।
फैजाबाद-अयोध्या लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार के बाद आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने जो सच सामने रखा है उसके मुताबिक यह क्षेत्र किसान और कम्युनिस्ट आंदोलन का क्षेत्र रहा है। खुद अयोध्या जहां मंदिर स्थित है, वहां भाजपा-आरएसएस विरोधी धारा मजबूत रही है, यहां तक कि वहां के मठों और मंदिरों में भी भाजपा-आरएसएस का बराबर तगड़ा विरोध रहा है। इसलिए यह समझना कि सपा प्रत्याशी अवधेश प्रसाद की जीत अलग-थलग घटना है, सही नहीं होगा। गौर करें यहां संघ और भाजपा की जड़ें कभी बहुत गहरी नहीं रही हैं, वहाँ अगर देखें तो फैजाबाद-अयोध्या में 1989 के बाद लोकसभा चुनावों में भाजपा कई बार पराजित हुई है।
वर्ष 1989 में मित्रसेन यादव सीपीआई के कैंडिडेट के बतौर यहां जीते थे। उसके बाद 1998 में मित्रसेन यादव सपा प्रत्याशी और 2004 में बसपा प्रत्याशी के बतौर जीते थे। 2009 में यहां से निर्मल खत्री कांग्रेस प्रत्याशी के बतौर लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। इसलिए संघर्ष की राजनीति के इलाके फैजाबाद-अयोध्या को महज कथित सोशल इंजीनियरिंग की राजनीति के दायरे में नहीं बांधा जाना चाहिए।
दरअसल इस चुनाव में पश्चिम से लेकर पूर्व तक और पूरे प्रदेश में भाजपा विरोधी माहौल रहा है। खुद बनारस में भी यदि भाजपा-आरएसएस विरोधी सभी ताकतों के साथ अच्छे तालमेल व समझदारी के साथ चुनाव लड़ा गया होता तो प्रधानमंत्री मोदी भी चुनाव हार गए होते और भारतवर्ष में एक नए राजनीतिक अध्याय की शुरुआत होती। बहरहाल अभी भी प्रदेश में भाजपा से मोहभंग और विरोध का माहौल बना हुआ है।
जिन मुद्दों जैसे रोजगार, महंगाई, सामाजिक सुरक्षा, संविधान की रक्षा आदि पर भाजपा के विरुद्ध जनता ने मत दिया है यदि उन मुद्दों पर जनता के सभी हिस्सों का एक बड़ा संयुक्त मोर्चा बनाकर जन राजनीति को मजबूत किया जाए तो आरएसएस की अपनी विचारधारा और राजनीतिक तौर पर भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने के लिए की जा रही डैमेज कंट्रोल की कवायद भी असफल होगी।