ब्लैक फंगसः झारखंड हाईकोर्ट ने पूछा- सरकार के पास पैसे नहीं तो क्या जमीन बेचकर लोग कराएंगे इलाज
हेमंत सरकार ने ब्लैक फंगस को महामारी घोषित कर रखा है, लेकिन इन बीमारी से पीड़ित मरीजों के इलाज की समुचित व्यवस्था सूबे में दिखायी नहीं देती, ब्लैक फंगस मरीजों के इलाज को लेकर झारखंड हाईकोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है
रांची जनज्वार। झारखंड हाईकोर्ट ने ब्लैक फंगस से संबंधित मामले को लेकर कड़ी टिप्पणी की है. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डॉ. रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की बेंच में ब्लैक फंगस बीमारी से पीड़ित एक मरीज मामले में स्वतः संज्ञान से दर्ज मामले में सुनवाई हुई। इस दौरान उच्च न्यायालय ने राज्य की हेमंत सरकार को कड़ी फटकार लगायी है।
सरकार मदद नहीं करेगी तो कैसे होगा इलाज
झारखंड हाईकोर्ट ने ब्लैक फंगस मामले में स्वतः संज्ञान पर सुनवाई करते हुए कड़ी मौखिक टिप्पणी की है. इस दौरान हाईकोर्ट ने टिप्पणी में कहा है कि मुख्यमंत्री के पीए कहते हैं कि हमारे पास पैसा नहीं है तो क्या हमारे नागरिक अपनी जगह और जमीन बेचकर अपना इलाज कराएं?
चीफ जस्टिस डॉ रविरंजन ने सुनवाई के दौरान आगे कहा कि अगर मेरे पास पैसा होता तो मैं उस पीड़ित को पैसे देकर मदद करता। बता दें कि ब्लैक फंगस से पीड़ित एक महिला के मामले में हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने स्वतः संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार से पूछा है कि पीड़ित महिला के इलाज की क्या व्यवस्था की गई है। कोर्ट ने सरकार को पीड़िता का पूरा इलाज कराने के निर्देश दिये।
मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद रिम्स के डायरेक्टर से अदालत ने पूछा कि क्या आप शपथपत्र दायर कर यह जानकारी दे सकते हैं कि ब्लैक फंगस से जूझ रहे मरीज बाहर से दवा नहीं खरीद रहे ? जिसपर रिम्स डायरेक्टर ने कहा कि दवाइयों की सप्लाई पूरी नहीं है, इसलिए हम शपथपत्र दायर नहीं कर सकते। मामले की सुनवाई के दौरान हेमंत सरकार की तरफ से उपस्थित महाधिवक्ता राजीव रंजन ने कोर्ट को बताया कि रिम्स में ब्लैक फंगस के जितने भी मरीज इलाजरत हैं, उनके लिए हर संभव व्यवस्था की जा रही है।
राज्य सरकार और रिम्स के डायरेक्टर को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने इस बात पर सहमति जताई, कि हर मरीज को एयरलिफ्ट कराकर इलाज के लिए भेजा जाना मुमकिन नहीं है। लेकिन रिम्स में उन्हें बेहतर इलाज मिले, इसकी व्यवस्था जरूर होनी चाहिए। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि अगर ब्लैक फंगस को महामारी घोषित किया गया है, तो इससे निपटने के लिए सरकार के पास क्या पॉलिसी है और सरकार की ओर से क्या कदम उठाए गए हैं। इसकी जानकारी शपथ पत्र के माध्यम से कोर्ट को दी जाए। साथ ही कोर्ट ने रिम्स डायरेक्टर को यह निर्देश दिया कि सुनिश्चित किया जाये कि अदालत को पत्र लिखने वाले परिजन के मरीज और अन्य मरीजों को प्रताड़ित ना किया जाए।
बच्चों ने बेहतर इलाज के लिए लगायी थी गुहार
गौरतलब है कि गिरिडीह जिले के पचंबा की रहने वाली 45 वर्षीय उषा देवी ब्लैक फंगस से पीड़ित हैं। 17 मई को महिला को रिम्स में भर्ती कराया गया है। आरोप है कि महिला का इलाज शुरू होने में दो दिन लग गए। और इलाज में लापरवाही के कारण एक आंख में संक्रमण पूरी तरह से फैल चुका है। जबकि अब संक्रमण ब्रेन में पहुंच गया है। मां की खराब स्थिति को देखकर उषा के बेटे गौरव और बेटी पूजा ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से बेहतर इलाज के लिए गुहार लगायी थी. महिला के बेटे गौरव ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर दूसरी जगह भेजकर इलाज कराने की अपील की थी। पीड़िता के बच्चों ने महिला को केरल या अहमदाबाद भेज कर इलाज कराने की मांग की थी। लेकिन दूसरी जगह इलाज के लिए सरकार ने पैसे नहीं होने की बात कही। मुख्यमंत्री आवास के एक अधिकारी ने कहा है कि इलाज के लिए 50 हजार से एक लाख तक की मदद की जाएगी। इसके बाद गौरव ने झारखंड के चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर सारी बातें बताते हुए मदद करने की गुहार लगाई। इसी पत्र पर कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई कर रही है।