Breaking news : सुप्रीम कोर्ट ने बनभूलपुरा मामले में धामी सरकार और रेलवे को जारी किया नोटिस, एक महीने बाद अगली सुनवाई
Banbhoolpura Encroachment Breaking : पीड़ित पक्ष के अधिवक्ताओं ने बनभूलपुरा प्रकरण में राज्य सरकार के बदलते स्टैंड और रेलवे विभाग द्वारा भूमि के दस्तावेजों के साथ ही कथित रेलवे की भूमि पर बने सरकारी स्कूल, वहां बसे लोगों के पास मौजूद भूमि के पट्टे और रजिस्ट्री का हवाला देते हुए रेलवे के सीमांकन को चैलेंज किया था....
Banbhoolpura Breaking news : बनभूलपुरा के 50 हजार से भी ज्यादा लोगों को उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने बस्ती खाली करने का आर्डर दिया था, जिस मामले में दायर याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। बनभूलपुरा प्रकरण में राज्य सरकार और रेलवे विभाग को नोटिस जारी करते हुए अगली सुनवाई एक माह बाद सात फरवरी को करने का आदेश सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया है।
यानी हल्द्वानी के बनभूलपुरा प्रकरण में आज बृहस्पतिवार 5 जनवरी को पीड़ितों को बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ितों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार और रेलवे विभाग से जवाब मांगकर मामले में अगली तिथि नियत कर दी है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गूंज रहे हल्द्वानी के बनभूलपुरा प्रकरण मामले में आज बृहस्पतिवार 5 जनवरी को देश के सर्वोच्च न्यायालय में दोपहर बाद सुनवाई हुई, जहां हाईकोर्ट के फैसले के बाद निराशा के गहरे सागर में डूबे पीड़ितों का पक्ष रखते हुए न्यायालय में देश के जाने माने अधिवक्ता प्रशांत भूषण तथा पूर्व कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने पैरवी की।
सूत्रों के अनुसार पीड़ित पक्ष के अधिवक्ताओं ने बनभूलपुरा प्रकरण में राज्य सरकार के बदलते स्टैंड और रेलवे विभाग द्वारा भूमि के दस्तावेजों के साथ ही कथित रेलवे की भूमि पर बने सरकारी स्कूल, वहां बसे लोगों के पास मौजूद भूमि के पट्टे और रजिस्ट्री का हवाला देते हुए रेलवे के सीमांकन को चैलेंज किया था, जिसके बाद देश में बहुचर्चित हुए हल्द्वानी रेलवे के इस गंभीर मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय कृष्ण कौल और अभय श्रीनिवास ओका ने मामले में उत्तराखंड की राज्य सरकार और रेलवे विभाग को नोटिस जारी कर उनका पक्ष तलब किया है।
हाईकोर्ट द्वारा बनभूलपुरा को उजाड़े जाने के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में शराफत खान, अब्दुल मतीन सिद्दीकी, इक्तिदार उल्लाह, शमीम बानो, भूपेन्द्र आर्या, जन सहयोग सेवा समिति की ओर से अभी तक कुल छह याचिकाएं डाली गयी थी।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि गफूर बस्ती में अतिक्रमण हटाने से करीब 50 हजार परिवार प्रभावित होंगे। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक परिसर एक्ट के तहत यह कार्रवाई मान्य नहीं है। दूसरी ओर उत्तराखंड सरकार का कहना है कि गफूर बस्ती रेलवे की जमीन पर बसी है। यहां रहने वाले लोगों ने रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण किया है।
सात दिन के भीतर कैसे अतिक्रमण हटाने को कह सकते हैं: जस्टिस कौल
सुनवाई के दौरान जस्टिस कौल ने कहा कि इस मामले को मानवीय नजरिए से देखना चाहिए। हम सात दिन के भीतर अतिक्रमण हटाने का आदेश कैसे दे सकते हैं। लोगों के घरों को ध्वस्त करने से पहले पुनर्वास का काम कराया जाना चाहिए। कुछ लोगों के पास 1947 के समय के जमीन पट्टे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि गफूर बस्ती की कितनी जमीन राज्य सरकार की है और कितनी रेलवे की ?